Saturday, 12 October 2024

समुद्र में डूबते देश की अर्थ व्यवस्था का आधार

समुद्र में डूबते देश की अर्थ व्यवस्था का आधार


किसी भी देश का जनजीवन और लोगों की खुशहाली वहां की अर्थव्यवस्था पर निर्भर करती है। यद्यपि प्रति व्यक्ति आय जैसे आंकड़े का भी बहुत महत्व होता है बल्कि कुछ अधिक ही होता है। सकल घरेलू आय का समान वितरण आबादी के बीच समान रूप से नही होने से समाज में निर्धन और संपन्न वर्गों के खांचे बन जाते हैं तो बड़े देशों में खुशहाली में भी असमानता दिखाई देती है।  लेकिन जब देश बहुत छोटे हों तो अमीरी  गरीबी के बीच की यह खाई उतनी गहरी दिखाई नहीं दे पाती। जिनकी अर्थव्यस्था कमजोर है तो गरीब होते ही हैं। जिन छोटे देशों की अर्थ व्यवस्था बेहतर होगी तो लोगों में खुशहाली भी बेहतर हो जाती है।
यदि क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व के चार सबसे छोटे देशों की बात करें तो मात्र 0.44 वर्ग किलोमीटर वाला वेटिकन सिटी सबसे छोटा देश है, इसके बाद मीनाको 2.10 वर्ग किलोमीटर, नाउरू 21 वर्ग किलो मीटर के बाद तुवालू 26 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ चौथा सबसे छोटा देश है। तुवालू की अर्थ व्यवस्था में जिस चीज का महत्वपूर्ण योगदान है वह हमारी सामान्य समझ को चौंका देती है।

तुवालु दक्षिण प्रशांत महासागर में नौ छोटे द्वीपों का एक समूह है, जिसने 1978 में यूनाइटेड किंगडम से स्वतंत्रता प्राप्त की थी। इनमें से पांच द्वीप प्रवाल द्वीप हैं, जबकि अन्य चार समुद्र तल से ऊपर उठी भूमि से बने हैं। पूर्व में एलिस द्वीप के नाम से जाने जाने वाले ये सभी द्वीप निचले इलाके में हैं, और तुवालु की समुद्र तल से ऊंचाई 4.5 मीटर से अधिक नहीं है। ग्लोबल वार्मिक के कारण समुद्र का जल स्तर ऊपर उठ रहा है, ऐसे में यह खतरा भी यहां पैदा हुआ है कि कुछ ही वर्षों बाद ये द्वीप डूबकर विलुप्त हो सकते हैं। ट्रेवल व्लॉगरों को तुवालू की यात्रा करने में काफी दिलचस्पी रहती है। पिछले दिनों पैसेंजर परमवीर और डॉक्टर यात्री व्लाग के परमवीर और नवांकुर के यूट्यूब वीडियो हमने देखे और यहां के जनजीवन को जाना समझा है।

तुवालू की राजधानी फुनाफ़ुटि है जहां एक मात्र अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट है जहां प्रति सप्ताह दो तीन फ्लाइट का संचालन होता है, एयर कनेक्टिविटी केवल फिजी के जरिए ही होती है। बाकी समय यहां के रन वे का उपयोग खेल के मैदान के रूप में होता है। बच्चे और अन्य लोग इसका आनंद उठाते हैं। परिवहन के रूप में एक सिरे से दूसरे सिरे तक बस सड़क बनी हुई है, लोग पैदल ही यात्रा कर लेते हैं, कुछ दुपहिया वाहन भी हैं। सरकारी अधिकारियों के पास कुछ कारें भी हैं किंतु उनका उपयोग बहुत कम किया जाता है। यहां की आबादी ही केवल 11,500 है जो 26 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैली है तो यहाँ की आवश्यकताओं को आसानी से समझा जा सकता है।
हमने देखा कि इन द्वीपों पर जीवन सरल किंतु बहुत कठिन होता है। यहां कोई नदी या अन्य जल स्रोत नहीं हैं, इसलिए बारिश के पानी के संग्रहण से ही लोगों का काम चलता है। नारियल तथा ताड़ के पेड़ ज़्यादातर द्वीपों पर फैले हुए हैं, खोपरा,सूखे नारियल की गिरी आदि ही व्यावहारिक रूप से निर्यात करने योग्य उपज है। यहां की मिट्टी में बढ़ती हुई लवणता के कारण पारंपरिक खेती करना जोखिमपूर्ण है।

तुवालू ने आय के अन्य नवोन्मेषी स्रोत का दोहन करके चतुराई दिखाई है। हम सब जानते हैं कि आधुनिक विश्व एक ग्लोबल समाज बन गया है, जिसकी सारी संरचनाएं, एकजुटता इंटरनेट जैसी आधुनिकतम तकनीक पर निर्भर है। दुनिया की रक्तवाहिनियों में इंटरनेट के प्रवाह से धड़कने बनी हुई हैं। हर संस्था, कंपनी,व्यक्ति या सरकारों की अपनी अलग अलग वेब साइट होती हैं, जो अपने डोमेन के जरिए अंतरराष्ट्रीय रूप से संजाल से जुड़ पाती हैं। ईमेल, वेब सर्च और अन्य कई गतिविधियों के लिए टॉप लेवल डोमेन बनाया जाता है। यह वह हिस्सा होता है जो डोमेन नेम के बिलकुल आखिर में होता है। जिसे हम डॉट कॉम या डॉट इन आदि से जानते हैं।

डॉट कॉम का मतलब होता है यह वेब साइट कमर्शियल उपयोग के लिए है। डॉट ओआरजी का मतलब है यह संस्थागत वेब साइट है।  डॉट जीओवी का मतलब है यह गवर्नमेंट साइट है।
इसी तरह देश का कोड भी होता है। कंट्री कोड टॉप लेवल डोमेन। इससे पता चल जाता है कि यह किस देश का डोमेन है। जैसे भारत के लिए डॉट इन, अमेरिका के लिए डॉट यू एस और ब्रिटेन के लिए डॉट यू के। इसी तरह तुवालू का डोमेन बनता है डॉट टीवी।  जोकि टेलीविजन शब्द का लघु रूप हो जाने से महत्वपूर्ण हो गया है। तुवालू में न तो इंटरनेट है न ही ऑनलाइन कोई संरचना, उसने अपने इंटरनेट कंट्री कोड डोमेन डॉट टीवी को (.tv ) कैलिफोर्निया की एक कंपनी को कई मिलियन डॉलर प्रति वर्ष की निरंतर आय के लिए बेच दिया है। कंपनी इस डोमेन को टेलीविजन प्रसारकों को बेचती है। तुवालू की आय का यह बड़ा स्रोत बन गया है। तुवालू की अर्थ व्यवस्था का यही वह राज है जिससे वहां का जीवन थोड़ा सुगम हुआ है। 

द्वीप के डूबने के खतरे को लेकर ऑस्ट्रेलिया सरकार ने बड़े उपाय किए हैं, अपने यहां तुवालू के नागरिकों को बसने के लिए काफी सुविधाएं और स्थान उपलब्ध कराने के बहुतेरे प्रयास जारी हैं।
तुवालू के बारे में इतनी अनजानी जानकारी जुटाने की प्रेरणा में यूट्यूब के ट्रेवल व्लॉगरों के योगदान को हम भुला नहीं सकते। किताबों की तरह घुमक्कड़ों के कैमरों से दुनिया को देखने का भी अपना एक सुख है। 

ब्रजेश कानूनगो    

Tuesday, 1 October 2024

हाट बाजार में घुमक्कड़

हाट बाजार में घुमक्कड़


गत दिनों हमने नोमेडिक टूर व्लॉग में तोरवशु के एक यात्रा वीडियो को देखा। इसमें वह सूरीनाम देश में यात्रा कर रहे हैं। और भी कई ट्रेवलर्स और घुमक्कड़ों ने इस देश की यात्राएं की है। 
सुरीनाम  दक्षिण अमरीका महाद्वीप के उत्तर में स्थित एक गणराज्य है। सूरीनाम के पूर्व में फ्रेंच गुयाना और पश्चिमी गयाना स्थित है। देश की दक्षिणी सीमा ब्राज़ील और उत्तरी सीमा अंध महासागर से मिलती है।  यह देश दक्षिण अमरीका में क्षेत्रफल और आबादी की दृष्टि से सबसे छोटा संप्रभु देश है। यह पश्चिमी गोलार्ध पर एकलौता डच भाषी क्षेत्र है, जो नीदरलैंड साम्राज्य का हिस्सा नहीं रहा है। सूरीनाम का समाज बहुसांस्कृतिक है, जिसमें अलग-अलग जाति,भाषा और धर्म वाले लोग निवास करते हैं। बरसों पहले दक्षिणी एशिया के देशों से खासतौर से भारत से कई लोगों को मजदूरी के लिए  यहां लाया गया था, वे यहां बसे तो उनकी अनेक पीढ़ियां यहां की होकर रह गईं किंतु उनमें भारत की संस्कृति, परंपराएं और भाषाएं भी बनी रहीं। यद्यपि स्थानीयता का थोड़ा प्रभाव तो बढ़ता गया। 

तोरवशु के वीडियो में हम देखते हैं कि जब वे एक स्थानीय बस में बैठते हैं तो उस बस पर भारतीय देवी देवताओं के चित्र और उनके प्रति श्रद्धा के पद लिखे होते हैं। जय शिवशंकर, हर हर महादेव के अलावा बस कंपनियों के नाम भी इसी तरह के लिखे दिखाई देते हैं। इसके अलावा कई यात्री बसों के आगे बॉलीवुड के कलाकारों के चित्र भी खूबसूरती से पेंट किए नजर आते हैं। ड्राइवर और यात्री हिंदी फिल्मों के पुराने गाने तोरवशु को सुनाने लगते हैं।  हमने देखा कि वहां हिंदुस्तानी लोग जो बरसों पहले भारत से गए थे उनकी संतानों में आज भी भारतीयता नजर आती है, वे लोग अपने मूल स्थान को भारत जाकर देखना चाहते हैं, जहां उनकी कभी जड़ें रही होंगी।  ज्यादातर घुमक्कड़ स्थानीय बाजारों में घूमना फिरना, खरीददारी करना बहुत पसंद करते हैं। चाहे दीपांशु सांगवान हो या दावूद अखुनजादा, यह लोग वहां के स्थानीय सब्जी बाजार में अवश्य जाते हैं। दुकानदारों और ग्राहकों से दिलचस्प बातचीत करते हैं। तोरवशु भी ऐसे ही एक बाजार में घूमते हैं, सब्जी विक्रेताओं से बातचीत करते हैं, भारत के बारे में पूछते हैं।  बहुत दिलचस्प है इसको देखना। उनकी सांस्कृतिक, धार्मिक परंपराओं और राजनीतिक चेतना देख सुनकर हमें बहुत सुख मिलता है।  

अनेक व्लागर्स के हमने बाजार भ्रमण के कई विडियोज देखें हैं, यूरोप, अरब देशों, अफगानिस्तान आदि के पारंपरिक बाजारों को देखना अद्भुत होता है। पूर्व सोवियत देशों और पश्चिम देशों के शीतकालीन बाजारों की विशिष्ठता भी बहुत अलग तरह से मुग्ध करती है। लेकिन  हम यहां उन हाट बाजारों पर अपनी बात केंद्रित रखना चाहते हैं जिनकी दक्षिण एशियाई देशों में खास पहचान और महत्व होता है। कुछ इसी तरह के हाट बाजार हमने अफ्रीका के कुछ देशों में भी कुछ व्लागर्स के माध्यम से देखे हैं जो आदिवासी इलाकों के गांवों और कस्बों में लगते हैं। उनके दृश्य देखकर हमें अपने 50 साल पुराने भारत के ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों की याद आ जाती है। तंजानिया, युगांडा,केन्या,नाइजीरिया आदि जैसे अनेक देशों के ग्रामीण और परंपरागत बाजारों के नजारे ठीक    हाट बाजारों की तरह ही होते हैं। 
इसी तरह हमने ताइवान के कुछ वीडियो भी देखे हैं।  वहां के लोकल किस तरह से सब्जी उगाते हैं, उसकी देखभाल करते हैं, ग्राहकों को विक्रय हेतु तैयार करते हैं, बाजार ले जाते हैं, ज्यादातर देशों में हम इन बाजारों पर महिलाओं का आधिपत्य देखते हैं। हाट बाजारों का अधिकतम कामकाज महिलाएं संभालती हैं। हमारे देश के उत्तर पूर्वी याने सेवन सिस्टर राज्यों में यह सहजता से देखा जा सकता है। नोमेडिक इंडियन के दीपांशु सांगवान के विडियोज के साथ हमने इन क्षेत्रों का खूब आनंद लिया है। 

जो हम बचपन से देखते आए उससे कहा जा सकता है कि गांवों और कस्बों में लगने वाले स्थानीय बाज़ार को हाट बाज़ार कहते हैं। यहां सब्ज़ी, फल, खाद्यान्न, और परचून सामग्री मिलती है। गाँव के लोगों की रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी करने में हाट बाज़ार की अहम भूमिका होती है। कुछ दैनिक तो कुछ बाजार साप्ताहिक रूप से भरते हैं, अब हम हमारे शहर की बात करें तो हमारे यहां एक सोमवारिया हाट लगता था, इसी तरह शुक्रवार के दिन किसी और जगह पर हाट भरता था, दिन के आधार पर ही इन हाटों का नाम ख्यात हो जाता है। दिल्ली जैसे महानगर में जनकपुरी की सड़कों पर हमने इसी तरह का शनिवारी बाजार लगते देखा है। उस दिन वहां जाम जैसा लग जाता है, लेकिन उसका भी अपना आनंद है।
  
बहुत से बाजारों में सेकंड हैंड सामान की दुकानें लगती हैं, इन बाजारों को दक्षिण एशिया में, टर्मिनल बाज़ार या सेकेंड हैंड सामान का बाज़ार , लांडा बाज़ार भी कहते हैं। गैर लाभकारी संस्थानों के उत्पादों या सेवा कार्यों को रेखांकित करने के लिए जो प्रदर्शनी लगती है उसे मीना बाज़ार कहा जाता है लेकिन हाट बाजार की झलक भी इन मीनाबाजारों में मिल जाती है। मलेशिया, इंडोनेशिया और सिंगापुर जैसे कुछ देशों में शाम को खुलने वाले रात्रि कालीन बाज़ार को पासार मालम कहते हैं। सुबह के बाजारों को  पासार पागी कहते हैं। ये आमतौर पर आवासीय इलाकों की सड़कों पर लगते हैं, खाने पीने के भी स्टाल लगते हैं। सुबह से दोपहर तक इनमें खरीदारी की जा सकती है। कई बार बाजारों की सड़कें वाहनों के आवागमन के लिए बंद रहती हैं। 

कुछ हाटबाजार विशेष अवसरों और पर्वों पर भी लगते हैं। कुछ हाट गांवों और आदिवासी क्षेत्रों में भी होते हैं जिनका काफी सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व होता है, ये कई पुरानी परंपराओं और रीति रिवाज का हिस्सा बन चुके होते हैं। जैसे हमारे मध्य प्रदेश में झाबुआ जिले में होली के अवसर पर लगने वाले हर्षोल्लास से परिपूर्ण भगोरिया हाट।  इन हाटों मेलों में आदिवासियों के रिश्ते बनते हैं। ऐसे ही पर्वों पर लगने वाले हाट बाजार और मेले जिन्हे जतरा भी बोला जाता है पर्यटकों की खास रुचि का हिस्सा बन जाते हैं।  मध्य प्रदेश के देवास शहर में  आषाढ़ी पूर्णिमा पर तीन दिवसीय मेला या जतरा लगती है जिसमे आसपास के ग्रामीण स्त्री पुरुष, बच्चे बड़े उत्साह से शामिल होकर आनंद उठाते हैं। मेले की यह सतरंगी छटा और गहमा गहमी देखते ही बनती है।  कहीं शिवरात्रि पर लगता है तो कहीं दशहरे पर। ये मेले भी कहीं न कहीं ग्रामीण हाट का ही विस्तृत रूप होते हैं। 

अब इन बाजारों का महत्व सरकारों द्वारा भी समझ लिया गया है और इनका उपयोग क्षेत्र के सामाजिक, आर्थिक विकास के लिए भी होने लगा है। हाट बाजारों का अपना सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक महत्व है।  सरकारों ने अपनी गतिविधियों को भी जोड़ दिया है।  मेलों  में आसपास के ग्रामीण लोग एक साथ इकट्ठा होते हैं, अपने परंपरागत परिधानों में आते हैं, वहां लोक कलाएं, लोकगीत के आयोजन होते हैं।   हाट बाजारों में हर समाज के हर क्षेत्र के हर वर्ग के ग्रामीण लोग, स्थानीय लोग, आसपास के लोग एक दूसरे के संपर्क में आते हैं। व्यापारी किसान से मिल रहा है, किसान दिहाड़ी मजदूर से। शिल्पकार, कारीगर, श्रमिक, पुजारी, शिक्षक, सरकारी आदमी, पटवारी सब एक दूसरे से मिल रहे हैं। पशुपालक है यहां तो पशु चिकित्सक भी मिल जाता है।  सामाजिक समरसता और एकजुटता की राह इधर से बनने की गुजाईश निर्मित होती है। 

स्थानीय व्यापारियों, छोटे दुकानदारों, किसानों के बीच खरीद बेच से स्थानीय स्तर पर पूंजी का प्रवाह स्थानीय समाज में ही होता है। यहीं की अर्थ व्यवस्था को सुदृढ़ होने में आसानी होने लगती है। स्थानीय हुनरमंद कलाकारों ,उद्यमियों, बुनकरों, शिल्पकारों कारीगरों को स्थानीय स्तर पर बाजार उपलब्ध हो पाता है।  इस तर्ज पर अब शिल्पग्राम, क्राफ्ट बाजार, हाथ कराघा बाजार, बांस की टोकरियों बनाने वाले लोगों के उत्पादों, लोहे के शिल्प और औजार  बनाने वालों के उद्योगों को भी इन हाट बाजार के जरिए महत्व दिया जा रहा है। 

हमारे देश में स्वयं सहायता समूह अवधारणा का जो व्यापक माध्यम आया है, जिसमें समूह बनाकर ग्रामीण महिलाएं अपनी उत्पाद गतिविधियों में जुटी हैं, विशेष कर ग्रामीण महिलाओं के समूह है जो गृह उद्योगों में आगे बढ़ी हैं, मसलन मसाला उद्योग, लघु उद्योग में प्रोडक्ट बनाती हैं, साबुन, अगरबत्ती या अन्य जीवनोपयोगी वस्तुएं, इन सब चीजो के विक्रय के लिए इन बाजारों का भी उपयोग होने लगा है।   कहीं कहीं इनके लिए  अलग से हाट बाजार बनाए गए हैं, सुविधाएं दी गई हैं। हाट बाजार का एक अपना अलग महत्व होता है और एक तरह से देखा जाए तो सारे ही बाजार एक दूसरे पर अब निर्भर करते हैं।  
 
दुनिया के विभिन्न बाजारों को घुमंतुओं के यूट्यूब वीडियो में देखने पर एक अलग ही आनंद आता है। हमे लगता है दुनिया को घर बैठे देखने का यह भी एक अच्छा तरीका हो सकता है।  विचार करें! 

ब्रजेश कानूनगो 

हिरोशिमा के विनाश और विकास की करुण दास्तान

हिरोशिमा के विनाश और विकास की करुण दास्तान  पिछले दिनों हुए घटनाक्रम ने लोगों का ध्यान परमाणु ऊर्जा के विनाशकारी खतरों की ओर आकर्षित किया है...