मंगोलिया का गोबी रेगिस्तान
नोमेडिक इंडियन के दीपांशु और नोमेडिक शुभम के शुभम के साथ हमने यूट्यूब वीडियो के माध्यम से विश्व के पांचवे सबसे बड़े रेगिस्तान में से एक गोबी रेगिस्तान की रोमांचक यात्रा की है।
गोबी रेगिस्तान है कहां ? दरअसल यह विशाल गोबी रेगिस्तान पूर्व और मध्य एशिया में लैंडलॉक देश मंगोलिया में स्थित है। उत्तर में रूस,दक्षिण पूर्व और पश्चिम में चीन से घिरा है। देश की कुल जनसंख्या के 38 प्रतिशत लोग राजधानी उलान बटोर में निवास करते हैं। पूर्व दिशा में मात्र 38 किलोमीटर दूर खूबसूरत कजाकिस्तान स्थित है।
ऐतिहासिक योद्धा चंगेज खान का नाम तो आपने जरूर सुना होगा। मंगोल साम्राज्य के विस्तार में उसकी बड़ी जबरदस्त भूमिका रही है। घुमंतू जाति के इस व्यक्ति ने अन्य घुमंतू जातियों को एकजुट करके सत्ता हासिल की थी। अपनी अद्भुत संगठन क्षमता, असीम शक्ति और बर्बरता के लिए विख्यात, कुख्यात चंगेज अपने बड़े साम्राज्य विस्तार के लिए जाना जाता है। मंगोल साम्राज्य ने मध्य एशिया और चीन के महत्वपूर्ण हिस्सों पर उसके नेतृत्व में कब्जा कर लिया था। सन 1221 से 1327 के दौरान मंगोल साम्राज्य ने भारतीय उपमहाद्वीप पर भी आक्रमण किए थे। इल्तुतमिश के शासनकाल के दौरान चंगेज खान के अधीन मंगोल साम्राज्य ने भारत पर बहुत से आक्रमण किए थे।
ऐसा नहीं है कि चंगेज खान ने सिर्फ बर्बर काम ही किए,बहुत से अच्छे काम भी उसके शासन में होते रहे। लेखन पठन के लिए विशेष उईधूर लिपि को अपनाया उसका विकास किया। धार्मिक सहिष्णुता को प्रोत्साहित करने के प्रयास किए। जो विश्व प्रसिद्ध सिल्क रूट था, जो एक ऐतिहासिक व्यापार मार्ग रहा है, जिसका उपयोग दूसरी शताब्दी से 14 वीं शताब्दी तक मुख्यरूप से हुआ करता था, एशिया से लेकर भूमध्य सागर तक इसका विस्तार था, तथा चीन, भारत, फारस,अरब, ग्रीस और इटली से होकर गुजरता था, उस समय इसमें ज्यादातर रेशम का व्यापार होता था इसलिए उसे सिल्क मार्ग कहा गया था तो इस सिल्क मार्ग को राजनीतिक तौर पर संचार व व्यापार हेतु एकरूपता और स्वीकार्यता देने में भी चंगेज खान को याद किया जाता है। उसने यह एक बड़ा अच्छा काम किया था।
सोलहवी सत्रहवीं शताब्दी में मंगोलिया तिब्बतीय बौद्ध धर्म के प्रभाव में आया। सन 1911 में किंग राजवंश के पतन के साथ मंगोलिया ने अपने को स्वतंत्र देश घोषित किया और 1945 में लंबे इंतजार के बाद इसे संपूर्ण अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिल गई। अब यह एक संसदीय गणराज्य है।
बहरहाल, जहां तक हमारी गोबी रेगिस्तान की यात्रा का सवाल है, जब हमने अपने प्रिय ब्लॉगर्स के माध्यम से अनुभव किया तो आगे और चीजों को जानने समझने की उत्कंठा और बढ़ती गई।
मंगोलिया के बारे में एक बात और प्रसिद्ध है कि यहां की संस्कृति भारत के बहुत करीब है। भारत से कई बौद्ध धर्माचार्य और यात्री छठवीं शताब्दी से ही मंगोलिया का भ्रमण करते रहे। यहां संस्कृत का इतना प्रभाव है कि यहां का राष्ट्रीय ध्वज 'स्वयंभू ' कहलाता है स्थानीय भाषा में इसको सोयुंब कहते हैं। यहां आयुर्वेद का प्रचलन है। महीनो के नाम भी और दिनों के नाम भी भारतीय संस्कृति से निकलकर आते हैं। सोमवार को सोमिया ,रविवार को आदित्यवार, मंगलवार के लिए संस्कृत में अंगारक शब्द है, बुधवार को बुद्ध, ब्रीहसपत गुरुवार के लिए, शुक्र शुक्रवार के लिए, साचिर शनिवार के लिए। यहां के बौद्ध विहारों में अनेक भारतीय पुस्तकों, संस्कृत के ग्रंथों, श्लोक और मंत्रों को खूब देखा, पढ़ा व सुना जा सकता है। भारतीय महापुरुषों के प्रति यहां बहुत आदर और सम्मान है।
गोबी रेगिस्तान मंगोलिया में तो स्थित है लेकिन इसका विस्तार चीन और मंगोलिया दोनों तक फैला हुआ है। यह एक ऐसा रेगिस्तान है जिसकी गिनती ठंडे रेगिस्तानो में की जाती है। यहां का तापमान शून्य से नीचे माइनस 40 डिग्री तक गिर जाता है। मंगोलियन भाषा में गोबी का अर्थ जल रहित स्थान होता है। यहां जल बहुत कम है, वर्षा केवल बारिश के कुछ दिनों में ही होती है। 50 से 100 मिली मीटर तक ही बारिश हो पाती है। नदी नाले केवल वर्षा ऋतु में ही थोड़े बहुत पानी भरे दिखाई देते हैं।
अधिकांशतः गोबी डेजर्ट रेत की तुलना में चट्टानों से अधिक बना है। यद्यपि हमने जो मानस यात्रा की वह रेतीले गोबी रेगिस्तान की ही दीपांशु और शुभम ब्लॉगर मित्रों के साथ की।
कहा जाता है इस पांचवे सबसे विशाल रेगिस्तान में पहले कभी समृद्धशाली भारतीयों की बस्ती हुआ करती थी। यह डेजर्ट इतना बड़ा है कि इसको तीन भागों में विभक्त करके देखा जाता है, तकला माकन, अलशान और ऑर्डिश रेगिस्तान। यहां की आबादी बहुत विरल है। उत्तर और दक्षिण के घास के मैदानों में कुछ जनजातियां निवास करती हैं। जिस क्षेत्र में जहां पानी है, वहां बकरियां और अन्य पशु पाले जाते हैं। थोड़ी बहुत खेती भी होती है। लेकिन यहां बेकेटेरियन ऊंट (दो कूबड़ वाले) होते हैं, हमारे भारत में जो उंट होते हैं उनसे थोड़ा अलग है , इनके दो कूबड़ निकले होते हैं। कुछ जंगली गधे, विशेष तरह के भालू हालांकि अब यह लुप्त प्रायः हो गए हैं, इस रेगिस्तान में पाए जाते हैं। पत्ती विहीन घास ही सामान्यतः यहां दिखाई देती है जिससे मिट्टी का थोड़ा बहुत क्षरण रुक पाता है।
दीपांशु और शुभम ने इस रेतीले रेगिस्तान की रोमांचक पैदल यात्रा की तो उन्होंने बहुत संघर्ष किया। तेज हवाओं रेतीले तूफानों से बचते बचाते विडियो बनाते हुए उन्होंने यह यात्रा की। बहुत संघर्ष किया। पानी की बोतले उनकी समाप्त हो गई तो जैसे खुद उनके शरीर रेगिस्तान में बदलते जा रहे थे। मरणासन्न से हो गए थे। रात को ही उनको अंधेरे में कहीं कुत्तों के भौंकने की आवाज भी सुनाई देती है तो वे आश्रय की तलाश में उधर जाते हैं। एक खानाबदोश के घर में उनको थोड़ा सा स्थान मिल जाता है, किसी तरह वे रात बिताते हैं। यह उनकी बहुत अद्भुत यात्रा थी। उनके लोकप्रिय और दर्शनीय वीडियो की सूची में यह सीरीज बहुत याद की जाती रहेगी। इसे बार बार देखा जाता रहेगा।
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ब्रजेश कानूनगो
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