इथियोपिया की अनोखी जनजातियाँ
गत दिनों हमने इथियोपिया के जनजातीय क्षेत्रों की मानस यात्रा की। यूट्यूब के कुछ ट्रैवल विडियोज हमारी इस यात्रा के माध्यम बने।
दक्षिण अफ्रीका का इथियोपिया काफी जैसे लोकप्रिय पेय पदार्थ का जनक रहा है। यहां काफी सेवन को आमतौर पर परंपरागत रूप से सेलिब्रेट भी किया जाता है। ट्रैवलर दावूद अखुंदजादा Davud Akhundzada के साथ हमने सड़क किनारे इथोपियाई महिलाओं द्वारा संचालित स्टाल पर इसकी संपूर्ण प्रक्रिया या रस्म को कुतुहल से देखा। कॉफी बीजों को तवे पर सेका जाना, उसको मूसल से कूटकर पावडर बनाना, परंपरागत केतली में काफी को धीरे धीरे उबाला जाना, कॉफी बीज की धूप देकर उसके धुएं से वातावरण को महकाना, फिर परंपरागत चीनी प्याले में गर्म कॉफी में खुशबूदार वनस्पति डाल के पेश करना। यह सब देखना अद्भुत आनंद और जायके से भर देता है। शहर और ग्रामीण क्षेत्रों में दावूद के संग वहां के जीवन का डिजिटल आनंद लेना सचमुच इथियोपिया पहुंच जाने जैसा ही था। हमने विकसित होते आधुनिक इलाकों, परंपरागत छोटे बड़े बाजारों के अलावा इथियोपिया के जनजातीय क्षेत्रों की भी मानस यात्रा की। दावूद के विडियोज के अलावा एक और प्रिय ट्रैवलर बंसी विश्नोई Bansi Bishnoi vlog के भी कुछ विडियोज का अवलोकन किया। बात आज इथियोपिया की जनजातियां की कर लेते हैं, जो हमने अनेक ट्रैवल विडियोज और इंटरनेट की कुछ वेबसाइटों से जुटाई है।
विश्वभर में जनजातियां पर्यटकों को सदैव आकर्षित करती रहीं हैं। जनजाति पर्यटन, संस्कृति और इतिहास के प्रति जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा देता है। कई जगहें और बस्तियों को विशेष रूप से इस विशेष पर्यटन के लिए विकसित किया गया है, जहाँ पर्यटक जनजातीय जीवनशैली, कला, नृत्य, संगीत और रीति-रिवाजों का अनुभव कर सकते हैं।
इथियोपिया इस जनजातीय दृष्टिकोण से भी अनुभवों और सांस्कृतिक परंपराओं का खजाना है। यह दुनिया के सबसे पुराने देशों में से एक है, जहाँ मानव गतिविधि लाखों साल पुरानी है। जहां अभी भी बड़ी संख्या जनजातियां अपनी पुरानी परंपराओं और परंपरागत जीवनशैली में निवास करती हैं। जनजातियाँ सदियों से इथियोपियाई परिदृश्य का हिस्सा रही हैं, जहाँ उन्होंने अपने चुनौतीपूर्ण परिवेश के अनुकूल ढलने के लिए अपने साधन और उपाय विकसित किए हैं।
इथियोपिया में 80 से अधिक अलग-अलग जातीय समूह हैं, जो विभिन्न जनजातियों के रूप में जाने जाते हैं। अनेक पर्यटन कंपनियों, टूर एजेंसियों सहित स्थानीय स्तर पर भी अनेक गाइड पर्यटकों को इस लोक संस्कृति और इस परिदृश्य से रूबरू करवाने में संलग्न हैं।
खासतौर से ओमो घाटी की गहराई में ये परंपराएँ और समुदाय जीवंत हो उठते हैं। रंग-बिरंगी पृष्ठभूमि, आदिवासी समारोह और कुछ शानदार कला रूपों ने इथियोपिया के इस महत्वपूर्ण क्षेत्र को आकर्षक बना दिया है। मुर्सी, बोडी,सूरी,हमार,दासानाच,कारा आदि कई ऐसी जनजातियां हैं जिनकी अपनी अनूठी संस्कृति और जीवन शैली है। लगभग सभी जनजातियाँ भाषा, कपड़े, भोजन और परंपराओं में भिन्न हैं, जो इथियोपिया में कई सदियों से विद्यमान हैं।
मुर्सी ओमो घाटी की सबसे प्रसिद्ध जनजातियों में से एक है, जिसकी आबादी लगभग 8,000 है। उन्हें पारंपरिक रूप से प्रवासी या घुमंतू समुदाय के रूप में जाना जाता है, ये केवल शुष्क मौसम में ओमो के किनारों को छोड़कर बरसात के मौसम में घास के मैदानों में जाते हैं। मुर्सी मवेशियों को काफी महत्व देते हैं, जिनकी संख्या के आधार पर संपन्नता और आदान-प्रदान से अधिकांश रिश्ते, जैसे विवाह, आदि निर्धारित होते हैं और उनका आहार भी मवेशियों पर ही आधारित होता है। ये लोग सुरमिक भाषा बोलते हैं, जो नीलो-सहारन भाषा परिवार से आती है।
मुर्सी महिलाओं के पहनावे से उनकी पहचान सुनिश्चित होती है। सबसे खास और पहचानी जाने वाली विशेषता उनके निचले होठों में सजावटी मिट्टी की डिस्क (देभिन्या) पहनना है, जो सुंदरता और वयस्कता का प्रतीक है। जब कोई लड़की अपनी किशोरावस्था में होती है, तो उसके निचले होंठ को काट दिया जाता है और मिट्टी की डिस्क के साथ तब तक खुला रखा जाता है जब तक कि यह ठीक न हो जाए। फिर इस कट को हर बार नई और अधिक मिट्टी की डिस्क डालकर कई महीनों तक धीरे-धीरे खींचा जाता है,प्रत्येक महिला यह तय करती है कि उसे अपने होंठ को कितना फैलाना है। पुरुष और महिलाएं अपनी सामर्थ्य और शक्ति सिद्ध करने के लिए द्वंद्व युद्ध जैसी कई पारंपरिक रूढ़ खेल प्रतियोगिताओं का सामना करते हैं। इसमें पुरुष लाठियों और महिलाएं धातु के कंगनों का हथियारों के रूप में उपयोग करती हैं।
बोडी जनजाति मुर्सी जनजाति के पड़ोसी हैं, और दोनों समूह अक्सर व्यापार करते हैं। वे चरवाहे लोग हैं जो मवेशियों को बहुत महत्व देते हैं और आम तौर पर खेती की प्रथाओं में भाग नहीं लेते हैं, इसके बजाय आदिवासी बाजारों में मक्का और अन्य कृषि उत्पादों के लिए व्यापार करना पसंद करते हैं। वे खानाबदोश समुदाय हैं, जो भूमि की कमी को रोकने और अपने मवेशियों के लिए नए चरागाह क्षेत्र खोजने के लिए आगे बढ़ते हैं। उनके जीवन में मवेशियों के महत्व के कारण, बोडी का मुख्य आहार भी मवेशियों पर केंद्रित है। इस जनजाति के लोग छह महीने तक एक कमरे में रहकर खून और दूध का सेवन करते हैं। यहां के आदिवासी लोग जानवर का खून और दूध एक साथ मिलाकर पीते हैं, जिससे यह कम से कम समय में अधिक मोटे हो सके। यह प्रक्रिया पूरे छह महीने तक दोहराई जाती है, जिससे शख्स की अच्छी सेहत बन सके। वहीं, इसके अलावा भी यह अन्य चीजों का सेवन करते हैं। बोडी पुरुष कपड़े की स्कर्ट पहनते हैं, जबकि महिलाएं बकरी की खाल से बने कपड़े पहनती हैं। पुरुष और महिला दोनों ही विशिष्ट रस्म में हिस्सा लेते हैं, जिसका इस्तेमाल व्यक्तियों की सुंदरता और साहस दिखाने के लिए किया जाता है। ये लोग मोटा होना अच्छा मानते हैं और इसके लिए कई उपाय करते हैं। छह माह वसायुक्त भोजन कर शारीरिक श्रम बंद करके अपना वजन बढ़ाते हैं। इस जनजाति में, मोटा होना बहुत आकर्षक माना जाता है और इसलिए महिलाएँ भी संभावित पतियों की तलाश के लिए इस उद्देश्य से आयोजित एक समारोह का उपयोग करती हैं
कारा एक अर्ध-खानाबदोश जनजाति है, कारा पहले चरवाहे थे जो मवेशियों पर निर्भर थे, बाद में परिस्थितियों वश उन्होंने मकई, सेम और कद्दू उगाने के लिए कृषि तकनीक विकसित की। उनके पास मछली पकड़ने का एक अनूठा तरीका भी है, जिसमें मछलियों को छेदने के लिए लंबे भाले का इस्तेमाल किया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि केवल अविवाहित युवा पुरुष ही मछली पकड़ सकते हैं, और उन्हें बाद में शुद्धिकरण अनुष्ठान करना होगा क्योंकि मछली पकड़ना पहले वर्जित माना जाता था।
इनके गांव शंकु के आकार की झोपड़ियों से बने हैं, जो लकड़ी के खंभों को आपस में बुनकर बनाई गई हैं और मिट्टी से ढकी हुई हैं, और छतें पुआल की हैं। झोपड़ियों में लकड़ी के खंभों से बने 'दरवाजे' हैं, जहाँ वे घर के प्रतीकात्मक प्रवेश द्वार के रूप में भैंस के कान या खुर जैसी वस्तुएँ लटकाते हैं। कपड़े साधारण होते हैं। केश सज्जा कारा संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें पुरुषों के बालों को लट में बांधा जाता है, रंगा जाता है और मोतियों, पंखों और फूलों से भिन्न शैलियों में सजाया जाता है।
कारा अपने शरीर को सफेद चाक, काले कोयले और पीले और लाल खनिजों का उपयोग करके डिज़ाइनों से रंगते हैं। वे निशान बनाने की प्रथा भी अपनाते हैं, जिसमें त्वचा को जानबूझकर काटा जाता है ताकि एक उभरा हुआ निशान प्रभाव पैदा हो जो महिलाओं के लिए एक सौंदर्य अपील के रूप में देखा जाता है, और पुरुषों की उपलब्धियों का संकेत देता है जैसे कि किसी दुश्मन या खतरनाक जानवर को मारना।
ओमो घाटी की अधिकांश जनजातियों में कपड़े और अलंकरण महत्वपूर्ण सांस्कृतिक मूल्य रखते हैं। महिलाओं के लिए, सामाजिक स्थिति उनके द्वारा पहने जाने वाले मोतियों के हार की संख्या और रंग से प्रदर्शित होती है, लड़कियों को उनका पहला हार उनके पिता द्वारा दिया जाता है और फिर हर साल नए जुड़ते जाते हैं, जिन्हें कभी नहीं उतारा जाता है। पुरुषों के लिए, नुकीले धातु के छल्ले और कटे हुए किनारों वाले कंगन रक्षात्मक हथियार के रूप में उपयोग के लिए पहने जाते हैं, और निशान योद्धा के रूप में उनकी उपलब्धियों को दर्शाते हैं।
हमारे ट्रैवल विलोगरों के हम जैसे दर्शक हमेशा शुक्रगुजार रहेंगे जिनकी बदौलत घर बैठे इस अनोखी दुनिया के लोगों, रीति रिवाजों और जीवन शैली को जानने समझने का मौका मिल जाता है। शुभकामनाएं है कि वे खूब यात्राएं करें, उनके कैमरों से हमें नई दृष्टि और रचनात्मक समझ भी मिलती रहे।
ब्रजेश कानूनगो