Friday, 30 August 2024

ट्रैकिंग की बातें

ट्रैकिंग की बातें


हमारे गृह नगर देवास में एक पहाड़ी है जिसको माताजी की पहाड़ी कहते हैं।  यहां देवी चामुंडा और तुलजा भवानी के अतिरिक्त अन्य भी बहुत सारे मंदिर हैं। ब्रिटिश इतिहासकार ईएम फास्टर ने अपनी पुस्तक हिल आफ देवी में इसका उल्लेख भी किया है। ऊपर एक परिक्रमा मार्ग भी है। पहाड़ी पर जाकर देवास के लोग नित्य व्यायाम की दृष्टि से सुबह की सैर करते हैं। जिनकी आस्था होती है उन्हे देवी के दर्शन भी हो जाते हैं। जिन्हे  केवल व्यायाम की दृष्टि से जाना होता है तो उनको सुबह की ताजी हवा के अलावा थोड़ी सी कसरत का लाभ भी मिल जाता है। 

पहाड़ी के ऊपर तक जाने के लिए करीब पांच सौ सीढ़ियां रही होंगी। एक रपट मार्ग भी रहा है जिस पर जीप जैसी गाड़ियां उचित अनुमति के बाद ऊपर ले जाई जा सकती थीं। यह मैं अपने बचपन की स्मृति बता रहा हूं। अब तो वहां रोप वे बन गया है और श्रद्धालु टिकिट खरीद कर भी पहाड़ी के ऊपर जाने लगे हैं। बचपन में सीढ़ियों और रपट पर दौड़ते हुए मिनटों में ऊपर चढ़ जाया करते थे।  इन दिनों घुम्मकड़ों के ट्रेवल वीडियो देखते हुए उनको ट्रेकिंग करते हुए भी कई रोमांचक वीडियो देखे हैं। हमे लगा कि बचपन में जब हम गृहनगर की पहाड़ी पर चढ़ा करते थे वह भी एक मायने में ट्रेकिंग ही तो था। सीढ़ी मार्ग होने के बावजूद लोगों ने कुछ ऐसे दुर्गम रास्ते खोज लिए थे जिनसे होकर हम लोग ऊपर पहुंचा करते थे। इसे खड़े पहाड़ चढ़ना कहते थे। ट्रेकिंग की परिभाषा भी यही है कि कटीले, गिट्टियों, झाड़ियों भरे दुर्गम कठिन रास्तों से होते हुए पहाड़ों के ऊपर चढ़ते जाना। 

हमारे बुजुर्ग लोग हमसे कहा करते थे कि आप नित्य थोड़ा पहाड़ी पर घूम आया करें, एक दो चक्कर लगा लिया करें सुबह शाम। किंतु यह हिदायत देना भी न भूलते कि खड़े पहाड़ न चढ़ना। पर उत्साह और जोश से भरा एक ट्रैकर  कहां ऐसी चेतावनियों को सुनता है, हम खड़े पहाड़ चढ़ने का जोखिम उठा ही लेते। अब समझ में आया कि हम भी बचपन में छोटे मोटे ट्रैकर रहे  हैं। 

स्कूल कॉलेज के दिनों में एनसीसी (राष्ट्रीय छात्र सेना) का कैडेट रहते हुए भी कैंपिंग और ट्रैकिंग के कुछ अनुभव हुए थे। तब उसमें जो कुछ सिखाया जाता था उसमे दशहरा दिवाली की छुट्टी में कैंपिंग होता था, हम खूब आनंद उठाते थे, ट्रैकिंग भी होता था और नकली युद्ध भी लड़ा जाता था।  दो ग्रुप बना दिए जाते, जो एक दूसरे ग्रुप पर अटैक के लिए  दो तीन किलोमीटर दूर विपरीत दिशाओं से ट्रैकिंग करते आगे बढ़ते रात को निकलते। घमासान युद्ध का अभ्यास होता। आज जब यूट्यूब पर हम घुम्मकड़ों के ट्रैकिंग वीडियो को देखते हैं तो असली ट्रैकिंग के रोमांच से भर उठते हैं। 

बहुत सारे ऐसे ट्रेवलर्स हैं जिनको ट्रैकिंग करते देखकर बहुत अच्छा लगता है। मुझे कुछ ब्लॉगर्स के नाम याद आते हैं जिनके वीडियो देखकर मन प्रसन्न हो जाता है, जैसे डेल फिलिप (Dale Phillip ) एक ब्लॉगर हैं, स्कॉटलैंड के हैं, अंग्रेजी में अपने वीडियो बनाते हैं। श्रीलंका में वह दो-तीन बार गए हैं।  श्रीलंका के सारे बड़े शहरों में तो घूमते ही हैं लेकिन कुछ ट्रैकिंग में श्रीलंका के पहाड़ों में अकेले निकल जाते हैं, ना तो उनको तमिल आती है न सिंहली, न वहां के पहाड़ी लोगों को अंग्रेजी समझती है। गूगल ट्रांसलेट से भी बात करते हैं लेकिन गूगल ट्रांसलेट भी ऐसी जगह पर काम नहीं करता। हम जानते हैं मुस्कुराहट और सद्भाव की अपनी अलग वैश्विक भाषा होती है, किसी तरह काम निकल ही जाता है।  तो वहां इसी तरह से कुछ बच्चो के साथ वे श्रीलंका की पहाड़ियों पर ट्रैकिंग करते हैं। बहुत अच्छा दिलचस्प वीडियो उन्होंने बनाया है।  उसमें प्रकृति का वास्तविक सौंदर्य हमको बहुत नजदीक से दिखाई देने लगता है। दरअसल ट्रैकिंग ही एक ऐसा माध्यम है जिसमें हम प्रकृति से सीधे जुड़ जाते हैं, इस दरम्यान हवा, चट्टान, वनस्पति, आकाश, मिट्टी, पानी, बादल, एक दूसरे से गले लगते हैं। मनुष्य और प्रकृति एक दूसरे से आत्मीय संवाद करने लगते हैं।  ट्रैकर के माथे और देह को भिगोता संघर्ष का पसीना हम दर्शकों को रोमांचित करने लगता है।  वीडियो देखते हुए प्रकृति सीधे हमसे बातचीत करने लगती है और सीधे दिल में उतरती चली जाती है।  

ऐसे ही डेल फिलिप एक बार जंगलों में ट्रैकिंग करते हुए रेलवे पटरी के साथ साथ आगे बढ़ रहे होते हैं तो उनका पांव थोड़ा मुड़ जाता है, पांव में चोट आ जाती है। लेकिन यह देखकर बहुत अच्छा लगा कि चोटिल परदेसी ब्लॉगर को एक स्थानीय उनके चाहने वाले ने अपने परिवार के साथ घर में अतिथि की तरह स्थान देकर उनकी सेवा सुश्रा की।  उनको कोई 15 दिन वहां रहना पड़ा।  पांव में काफी सूजन रही। चलने फिरने में दिक्कत आई। इस घटनाक्रम का भी डेल ने वीडियो बनाया। हमें कई बार चिंता होती है कि ये ब्लॉगर अकेले अकेले अपरिचित क्षेत्रों में भटकते रहते हैं, दुर्भाग्य से कल कहीं कुछ दुर्घटना या अनहोनी घट जाए तो क्या होगा?  लेकिन यह दुनिया बहुत खूबसूरत है, यहां के लोग बहुत खूबसूरत हैं, प्रेम, सम्मान और सौहार्द्र की भाषा और आचरण सबसे महत्वपूर्ण होता है, सब एक दूसरे का दुख दर्द जान लेते हैं। ऐसा कभी नहीं होता कि कहीं कोई मनुष्य अकेला पड़ जाए, समय आने पर बहुत लोग उनके साथ होते हैं, शुभचिंतक हो जाते हैं, सहयोग करते हैं। और फिर हम दर्शकों की शुभकामनाएं तो उनके साथ होती ही हैं जिनके लिए वे जोखिम उठाकर हमारे लिए अपने अनुभव साझा करते हैं।  
 
ट्रैकिंग के और भी अनेक व्लॉगरों के वीडियो हमने देखे हैं खासतौर पर नेपाल, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश सहित अन्य देशों में  पहाड़ी इलाकों में ग्रेब्रियल ट्रेवलर, दाउद अकुंजादा, बैग्स पैकर्स फैमिली के परिवार के साथ ट्रैकिंग का मानस आनंद लेते रहे हैं। 
उधर पाकिस्तान के भारत से लगे हिमालय क्षेत्र भी काफी सुंदर हैं। गिलगिट आदि क्षेत्रों के मनोरम दृश्य को देखते हुए लगता ही नहीं कि यह भारत नहीं है। दाउद अकुंजादा उस खूबसूरत स्थल की यात्रा में सुंदर फिल्मांकन करते हैं।
 
एक ब्लॉगर के वीडियो में हमने देखा कि कुछ ऐसे नव विकसित कैंपिंग स्थल तो ऐसे भी हैं जहां से पर्यटक पाकिस्तान से भारत के दृश्यों और हलचल को निहार सकते हैं और पाकिस्तान से भारत के मनोरम दृश्य का आनंद उठा पाते हैं। कुछ स्थान ऐसे भी हैं जिनके बीच एक खूबसूरत नदी होती है और दोनों किनारों पर खड़े पर्यटक एक दूसरे का अभिवादन कर सकते हैं।  

ट्रैकिंग के बारे में यह सब लिखने पर कुछ मित्र पूछ सकते हैं कि हम ऐसा कैसे कर पा रहे? कई बार यह होता है कि जिस क्षेत्र में हमने कुछ नहीं किया हो उस विषय पर भी हम लिखने की कोशिश करते हैं। हमारे इधर एक कहावत है, शादी नहीं की तो क्या, बारात में तो गए ही हैं।   बारात में जाकर भी शादी का अनुमान लगाया जाता रहा है। समझ लीजिए कि हम घुमक्कड़ ना सही परंतु घुम्मकड़ों के बनाए वीडियो तो देखते हैं, उनके अनुभव से एकाकार होकर अनुमान लगाते हैं। कुछ यात्राएं हुईं हैं, भारतीय और पश्चिम की संस्कृति और परिवेश को भी थोड़ा बहुत अपने कनाडा प्रवास से जाना समझा है, इसी से अनुमान लगाने में अधिक कठिनाई नहीं आती। यह बहुत सारे जो हमारे ब्लॉगर मित्र हैं, जो इतने खूबसूरत वीडियो बनाते हैं कि देखते हुए हम उसमें डूब से जाते हैं और हमको लगता है कि बस हम ही घूम रहे हैं। अपनी अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने की आकांक्षा इसे शब्दों में बदलने लगती है। वीडियो बनाने वाले हमारे इन मित्रों को हम बहुत धन्यवाद देते हैं और शुभकामनाएं भी कि वे खूब यात्राएं करें और घर बैठे दुनिया की सैर हमें भी नित्य करवाते रहें।

ब्रजेश कानूनगो 

Wednesday, 28 August 2024

माखन मिश्री का आभासी आनंद

माखन मिश्री का आभासी आनंद

घुम्मकड़ो द्वारा बनाए विडियोज को यूट्यूब पर देखते हुए अक्सर कई ब्लॉगरों से गहरी आत्मीयता हो जाती है। इस जुड़ाव के कई कारण होते हैं। कभी उनकी बातचीत अच्छी लगती है तो कभी उनका संवेदनशील व्यवहार और उदारता। हर व्लॉगर की अपनी विशिष्टता होती है। जो क्रमशः उसके प्रति हमारे लगाव का कारण बनती जाती है।

अमरीकन व्लॉगर क्रिस लेविस ( Chris Lewis) उनकी सहजता, सरलता तथा अंग्रेजी, हिंदी और उर्दू बोलने वाले घुम्मकड़ के तौर पर हमें बहुत पसंद हैं। भारत के शहरों में घूमते हुए वे खानपान के अनुभव के भी वीडियो बनाते रहते हैं। खासतौर से दिल्ली के चांदनी चौक और मुंबई, गुजरात आदि के उनके ऐसे वीडियो अलग सुख देते हैं। कई जगह डेल मैक्स जैसे अपने मित्र व्लॉगर के साथ भी वे दिखाई दे जाते हैं।

मूलतः लेविस ऐसे घुम्मकड़ व्लॉगर हैं जिसमे वे लोक जीवन का चित्रण स्थानीय निवासियों से गहरी संवेदनाओं के साथ करते चले जाते हैं। एकत्रित लोग उनकी टूटी फूटी हिंदी और उर्दू सुनकर काफी प्रभावित होते हैं और अपनेपन की एक अदृश्य स्नेह डोर सबको जोड़े रखती है। उनके वीडियो से ही पता चला कि क्रिस लेविस ने अपनी कामचलाऊ हिंदी उर्दू ताइवान में उनके एक पाकिस्तानी मित्र से सीखी है, दिलचस्प यह है कि कई बार उनका वार्तालाप स्थानीय आम लोगों से बेहद घरेलू और आत्मीय हो जाता है।

कई बार वीडियो देखते हुए जब लगता है कि हमारे प्रिय व्लॉगर के साथ कुछ गलत हो रहा है या उसके कहे को कोई समझ नहीं रहा, भ्रम और असमंजस की स्थिति बन रही है तो एक दर्शक के रूप में हम कोई सहायता उनकी नहीं कर पाते। जैसे मुंबई में कोई क्रिस के साथ ठगी का प्रयास करता है या मथुरा जैसी जगह पर माखन मिश्री के स्वाद के आनंद की उनकी इच्छा अधूरी रह जाती है। एक दर्शक के रूप में हम मात्र बेबस व्यक्ति की मनःस्थिति से भर जाने और व्यथित होने के अलावा क्या कर सकते हैं।

जब एक विदेशी पर्यटक और व्लॉगर यूट्यूब के लिए विडियो बनाता है। हिंदी सीखकर हिंदुस्तान को समझने के लिए हिंदुस्तान आया है। वह हिंदी बोलता है तो हर व्यक्ति के मन में खुशी और गौरव की लहर दौड़ जाती है। मुस्कुराहटें बिखर जाती हैं। और जब कोई असहज करने वाली बात दिखाई देने लगती है तो मन का दुखी हो जाना  स्वाभाविक है।

व्लॉगर बाजार में चहलकदमी करते हुए दर्शकों को श्रीकृष्ण और कंस की कहानी सुनाता हुआ कृष्ण की प्रिय वस्तु 'माखन मिश्री' की बात भी करता है। उसका स्वाद लेना चाहता है  किंतु उसे पता नहीं है कि यह क्या चीज होती है। हर दुकान पर वह इसके बारे में पूछता जाता है। एक जगह वह इसे मांगता है तो उसे मिश्री पकड़ा दी जाती है। दुकानवाला मक्खन के लिए आगे की किसी दुकान का पता बता देता है। व्लॉगर वहां पहुंचकर माखन मांगता है। यह दूध की दुकान है। माखन मांगने पर दूधवाला आधा किलो गर्म दूध पॉलिथीन की थैली में पैक कर दे देता है। पर्यटक इसे मक्खन ही समझता है। वीडियो देखते हुए हमें बहुत दुख और अफसोस होता है। कैसे व्लॉगर की मदद करें?

होटल पहुंचकर व्लॉगर क्रिस लेविस किसी तरह मिनरल वाटर की खाली बोतल में तथाकथित माखन (दूध) भरता है। मिश्री के कुछ टुकड़े उसमें घोलने की कोशिश करता है। हम दुखी होते जा रहे हैं। विदेशी व्लॉगर असीम उत्साह और खुशी से भरा है। उसके चेहरे पर संतुष्टि का भाव है। बोतल से मुंह लगाकर सारा दूध मिश्री एक सांस में गटक जाता है। भगवान श्रीकृष्ण की मनपसंद वस्तु का सेवन करने का सुख सहज उसके चेहरे पर देखा जा सकता है।

विडियो देखते हुए हमे आत्मग्लानि सी होने लगती है। काश कोई उसे वहां बता पाता कि 'माखन मिश्री' क्या होती है। मन को दिलासा देते हैं,भगवान तो बस भाव को ग्रहण करते हैं। हो सकता है उस व्लॉगर को दूध मिश्री में भी वही स्वाद और आनंद मिला होगा जो सचमुच श्रीकृष्ण को मिलता था।

विडियो खत्म हो जाता है। पर्यटक महंगे होटल के बिस्तर में चादर तान कर सो जाता है। इधर स्मार्ट टीवी बंद करने के बाद भी हमारी आंखों में नींद नहीं उतर पा रही। भीतर कुछ भीगता रहता है।

घुम्मकड़ो के ऐसे वीडियो लंबे समय तक हमे झकझोरते रहते हैं।

ब्रजेश कानूनगो

Saturday, 24 August 2024

हज्जाम की दुकान पर घुम्मकड़

हज्जाम की दुकान पर घुम्मकड़

निर्माण कार्य और सृजन प्रक्रिया को निहारने का अपना अलग सुख होता है। बात चाहे वैज्ञानिक प्रक्रिया की हो, किस्सागोई की हो, भवन निर्माण की हो या सड़क निर्माण के लिए भूमि समतलीकरण की, लोग जमा होकर पल पल में घटने वाली गतिविधि को जानने को उत्सुक हो जाते हैं। ठीक उसी तरह केश कर्तनालय में हेयर कटिंग प्रक्रिया को देखना भी हमेशा से सबको मोहता रहा है। यूट्यूब पर घुम्मकड़ो द्वारा बनाए विडियोज में बारबर शॉप या सैलून में उनको अपने केश कटवाते देखना भी बड़ा आनंददायी होता है।

जिन लोगों ने घुम्मक्कड़ी को ही अपने जीवन का मुख्य ध्येय बना लिया है, उनके बनाए यूट्यूब वीडियो ब्लॉग्स को देखकर महसूस किया है कि वे कई कई महीनों तक अपने घर या अपने वतन से दूर रहते हैं। एक देश से दूसरे देश की यात्राएं करते हुए ही उनका जीवन आगे बढ़ता रहता है। यही उनका प्रोफेशन हो जाता है,और प्रायः विडियो निर्माण या यूट्यूब आदि पर उनके ब्लॉग्स से होने वाली आय ही उनका आर्थिक सहारा हो जाता है।

सामान्य दर्शकों और अपने फॉलोअर्स को दुनिया भर की मानस यात्रा और पर्यटन का आभासी सुख देने वाले इन युट्यूबर्स की रोजमर्रा की अनेक गतिविधियों, उनकी जरूरतों, कठिनाइयों को भी हम इनके विडियोज के जरिए महसूस कर  पाते हैं। इनका होस्टलों, गुरुद्वारों, महंगी होटलों से लेकर किसी मेहमान या काउच सरफर के घर रुकना,ठहरना, खाना बनाना, खाना पीना भी पूरक रूप से हमारा खूब मनोरंजन करता है। 

लंबे समय तक जब केवल घुम्मकड़ी करते हुए भटकते रहते हैं, तब अचानक इन्हे एक दिन परदेस के अजनबी शहर में इस बात का भान होता है कि इनके विडियोज की तरह इस दौरान सिर और दाढ़ी के बाल भी बढ़ते चले गए हैं तो ये लोग भी किसी स्थानीय बारबर या सैलून की तलाश करते नजर आते हैं। हमने महसूस किया है कि लगभग सभी ट्रेवल ब्लॉगर्स बारबर शॉप पर जाकर अपने बालों को कटवाने, हजामत बनवाने, मसाज करवाने के विडियोज बहुत रुचि से बनाते हैं। ये विडियोज भी बहुत दिलचस्प होते हैं, इनको देखना भी बहुत अच्छा लगता है। अनावश्यक को हटा देना ही सौंदर्य की प्राथमिक शर्त होती है। एक दो घंटे सैलून में बिताकर ये घुम्मकड़ पुनः बाहर निकलते हैं तब उनकी आभा देखते ही बनती है।

यों देखा जाए तो आम आदमी के जीवन और समाज में हज्जाम, बारबर या नाई की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। जिन कलाकारों के बगैर हमारी दैनंदिनी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो सकती, उनमें हमारे व्यक्तित्व की सज्जा करने वाला यह भी एक प्रमुख प्राणी होता है।  कई फिल्मों, नाटकों, टीवी शो में भी बारबर या नाई को केंद्र में रखकर कई दृश्य रचे गए हैं। ख्यात फिल्म शोले की जेल  के खबरी हरिराम नाई को याद कीजिए, जो जेलर को पल पल की खबरें पहुंचाता रहता है। ख्यात हास्य चरित्र मिस्टर बीन के उस दिलचस्प दृश्य को याद कीजिए जहां खुद हजामत बनवाने जाते हैं और सैलून में हज्जाम की अनुपस्थिति में अन्य लोगों के अजीबो गरीब हरकतों के साथ बाल काटते हुए दर्शकों को खूब हंसाते हैं। घुम्मकड़ो द्वारा बारबर शॉप या सैलून में बाल कटवाने और मसाज के ये विडियो भी बहुत दिलचस्प और रुचिकर होते हैं।

कई बार ब्लॉगर और हज्जाम दोनों ही एक दूसरे की भाषाएं नहीं जानते। तब बड़ी मुश्किल से यूट्यूबर अपनी पसंद बता पाता है। कई बार बड़ी हास्यास्पद कटिंग और हेयर स्टाइल बन जाती है।  कई सैलून में घंटो प्रतीक्षा के बाद मुख्य नाई ग्राहक के सिर को संवारता है, इसके पूर्व अन्य कई नौसिखिया स्त्री पुरुष सिर का खेत जोत चुके होते हैं। लेकिन शानदार फेस मसाज और हेड मसाज के बाद हर यूट्यूबर के चेहरे पर खुशी चमकने लगती है। एक शानदार और रोचक कंटेंट वाला वीडियो हमारे लिए बनकर तैयार हो चुका होता है।

घुमक्कड़ी में बाल कटवाने वाले विडियोज में मुझे अजरबैजान के दाऊद अकुंदजादा के ब्लॉग्स सबसे अलग और संवेदनाओं से भरपूर लगे। उनकी प्रस्तुतियों में कई बार बड़ी मार्मिकता और उदारता के दर्शन होते हैं।  दाऊद बहुत उदार, दयालु और संवेदनशील प्रकृति के घुम्मक्कड़ हैं।  दाढ़ी रखते हैं, कई विडियोज में उन्हें बारबर शॉप पर जाकर बाल कटवाते, दाढ़ी संवरवाते, मसाज करवाते देखा जा सकता है।

विकासशील देश के एक कस्बे के भ्रमण के दौरान वे हेयर कट करवाने बेहद खस्ताहाल शॉप में पहुंचते हैं। बारबर को अंग्रेजी भाषा नहीं आती, दाऊद को स्थानीय बोली नहीं आती। किंतु इशारों और मुस्कुराहटों से बात बन ही जाती है। दाढ़ी की मात्र स्ट्रीमिंग कराने गए दाऊद उसके काम से इतने प्रभावित हो जाते हैं कि न सिर्फ हेड मसाज कराते हैं बल्कि फेस मसाज और बॉडी मसाज भी उस बेहद साधारण से सैलून में करवाकर प्रफुल्लित हो जाते हैं। बाद में उस कलाकार को मेहनताना तो देते ही हैं किंतु इससे आगे बढ़कर एक बहुत बड़ी राशि उसकी शॉप के नवीनीकरण के लिए भी भेंट कर देते हैं। इस बार दाउद के चेहरे की ताजगी से कहीं अधिक चमक बारबर की आंखों में दिखाई पड़ती है। यूट्यूबर की दयालुता देखकर हम जैसे भावुक दर्शकों की आंखे भर आती हैं। ऐसे ही सड़क किनारे किसी पेड़ की छांव में दुकान लगाए एक आम और गरीब नाई से दाढ़ी संवारने पहुंचने में उन्हें कोई झिझक नहीं होती। जरा सी लाइनिंग करवाने के बहाने वे अफगानिस्तान, बांग्ला देश, श्रीलंका,भारत आदि देशों में शहरों की सड़कों की पटरी पर बैठे कारीगर, कलाकारों की मदद करते हैं, उन्हे प्रेम से गले लगाते हैं, परिवार के दुख दर्द जानने की आत्मीयता दिखाते हैं। मन भाव विभोर हो उठता है। वीडियो किसी सार्थक और मार्मिक कविता में बदलता जाता है। एक आम यूट्यूबर किसी रचनाकार में रूपांतरित हो जाता है। सृजनात्मकता की यही उपस्थिति हमारे वीडियो ब्लॉग्स अवलोकन को संतुष्टि से भर जाती है।

ब्रजेश कानूनगो

Monday, 5 August 2024

देवदूत जैसे उदार घुम्मकड़

देवदूत जैसे उदार घुम्मकड़ 

अजरबैजान मूल के घुम्मकड़ और ब्लॉगर दावुद अकुंजादा को पहली बार उनके अमृतसर यात्रा के वीडियो में देखा था। कद काठी में पूरे पठान लगते हैं, भारतीय वस्त्रों की दुकानों पर बड़ी मुश्किल उनके नाप का कुर्ता, शूज या जूता मिल पाता है। जहां जाते हैं दुकान में सबसे बड़े नाप का परिधान मांगते हैं।  

बहरहाल, जब वे अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में गए तो अपने सिर पर पगड़ी बंधवाई। गुरु गोविंदसिंह द्वारा स्थापित सिद्धांतों के अनुसार खालसा सिक्खों द्वारा धारण किए जाने वाले पांचों ककार चीजों याने  केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कच्छा के बारे में जानकारी ली, उन्हे रुचिपूर्वक देखा समझा भी।    

कई ब्लॉगरों को हमने पवित्र स्वर्ण मंदिर दर्शन के लिए जाने के पूर्व सिक्ख पुरुषों द्वारा बांधी जाने वाली पगड़ियां बंधवाने की प्रक्रिया को देखा है। इसका वीडियो देखना भी बहुत दिलचस्प होता है। परिसर से पहले कारिडोर में अनेक ऐसी दुकानें हैं जहां से पगड़ी हेतु मनपसंद रंगीन कपड़े खरीद कर वहीं अपनी सेवाएं देते कर्मियों से अपने सिर पर उसे बंधवा सकते हैं। प्रक्रिया का वीडियो बना सकते हैं। दावुद का व्यक्तित्व बहुत प्रभावी है और जब वे अपने सिर पर पगड़ी धारण करते हैं तो पूरे सरदार लगते हैं। उनकी शानदार दाढ़ी उनके इस अवतार को आकर्षण और पूर्णता प्रदान कर देती है। 

अपने विडियोज में उन्होंने स्वर्ण मंदिर की पूरी सैर कराई। लंगर की रसोई का गहनता से दर्शन कराया। लंगर की पंगत में बैठकर भोजन किया। सबसे अंत में दान काउंटर पर जाकर एक बड़ी राशि वहां भेंट की। इन्ही वीडियो को देखते हुए ज्ञात हुआ कि दावुद जहां की सैर करते हैं और वीडियो बनाते हैं उससे होने वाली आय को उसी स्थान के लोगों में या कल्याण कार्यों में दान स्वरूप खर्च कर देते हैं। उनकी यह उदारता उनकी हर यात्रा के विडियोज में देखी जा सकती है। 

अजरबैजान में बहुसंख्यक आबादी इस्लाम धर्म को मानने वालों की है लेकिन वह एक धर्म निरपेक्ष देश है तथा वहां समाज का एक बड़ा वर्ग किसी धर्म का अनुयाई नहीं है। एकाध वीडियो में दावुद भी इसी बात को स्वीकारते दिखाई देते हैं। दावुद मनुष्यता को धर्म मानते हैं। सभी धर्मों,समुदायों का सम्मान उनके मन में है। सब जगह जाते हैं, सम्मान व्यक्त करते हैं और वीडियो में यह सब सहजता से देखा जा सकता है। अपनी उदारता से वे दर्शकों का मन जीत लेते हैं। किसी सांता क्लाज या देवदूत की तरह वे वृद्ध,  बच्चों, कमजोर और जरूरतमंद के लिए अकस्मात देवदूत की तरह प्रकट हो जाते हैं।  

दावुद ने भी यूट्यूब माध्यम में पूर्णतः ट्रवेलर ब्लॉगर के रूप में प्रवेश अपनी नौकरी छोड़कर किया है। वे सामान्यतः अच्छी होटलों में ठहरते हैं। कई बार उस जगह की सबसे लग्जरी होटल में रुकते हैं। वीडियो टूर देते हैं। नाश्ता, लंच, डिनर, स्विमिंग पूल, टेरेस, जिम आदि सभी पक्षों का आस्वाद अपने दर्शकों को कराते हैं। लेकिन यह केवल एक पक्ष है, बड़ा महत्वपूर्ण दूसरा पक्ष यह है कि वे सामान्य लोगों के बीच अपना अधिकांश समय सामान्य परिदृश्य में गहरे से उतरते जुड़ते हुए बिताते हैं। 

ज्यादातर वे खाना बाजार में स्थानीय रेस्टोरेंट में करते हैं और उसमें भी स्ट्रीट फूड और छोटे छोटे स्टाल्स उनकी प्राथमिकता में होते हैं। बाजार में घूमते हुए जब देखते हैं कि कोई बहुत अच्छा स्थानीय शरबत मिल रहा है तो वह अवश्य उसका आनंद उठाएंगे। ऐसे में उनके आसपास लोगों की भीड़ जुट जाती है तो  दुकानदार से बोलते हैं कि इन सबको भी यह दे दीजिए, उसका पूरा पेमेंट वही कर देते हैं। 

किसी दुकानदार की कमजोर स्थिति देखकर वे भावुक भी हो जाते हैं ,पूछते हैं, भाई आप दिन भर में कितना कमा लेते हैं?  मान लीजिए वह व्यक्ति  बता देता है कि मैं दिन भर में  500 रुपए कमा लेता हूं तो दाऊद उससे उसके स्टाल का पूरा सामान फ्री लोगों में वितरित करने का कह देते हैं,  सब लोगों को आप मेरी तरफ से फ्री बांट दीजिए, और आप आज के लिए कुछ नहीं करें, आप घर जाकर आराम करें।  यह दया भाव एक जरूरतमंद छोटे कारोबारी व्यक्ति के लिए देखकर बहुत अच्छा लगता है। 

एक बार शायद कोलकाता या बांग्लादेश में कहीं घूम रहे थे।  सब्जी मंडी में एक बूढ़ी महिला अपनी छोटी सी बास्केट में लहसुन रखकर सड़क किनारे बैठी थी। वे उससे स्नेहपूर्वक बातें करते हैं, खैरियत पूछते हैं, उसकी सारी लहसुन खरीद लेते हैं। वह लहसुन आगे जाकर उन्होंने और किसी गरीब जरूरतमंद परिवार को भेंट कर दी।  लहसुन के पूरे दाम चुका के कुछ और राशि अतिरिक्त देकर उन्होंने कहा कि आज आप आगे काम नहीं करेंगे, आप घर जाइए आराम करिए।  

दावुद अकुंजादा की उदारतापूर्ण मार्मिक अनुभूतियों से गुजरना चाहते हैं तो उनकी श्रीलंका सीरीज के विडियोज को अवश्य देखा जाना चाहिए। स्कूटर से उनको ग्रामीण क्षेत्रों में घूमते, ग्रामीणों, खेत में काम करते मजदूरों से वार्तालाप करना, छोटे छोटे ग्रामीण स्टालों, टापरियों पर जाकर खाना पीना, आत्मीयता से सुख दुख की बातें करना फिर उन सबकी मदद करना। निर्धन परिवारों और बच्चों की संस्थाओं में जाकर उनसे मेल मुलाकात, सहयोग का हाथ बढ़ाना और आर्थिक सहयोग करना, बहुत अद्भुत और मानवीय संवेदनाओं का प्रेरक गुलदस्ता सा बन जाते हैं ट्रेवल ब्लॉगर दावुद अकुंजादा।

ट्रेवल वीडियो देखते हुए यदि ब्लॉगर की अनुभूतियां हमारी अनुभूति में रूपांतरित होकर  संवेदनाओं और नैतिक मूल्यों का थोड़ा भी प्रस्फुटन करती हैं तो क्यों न हमें इनका भरपूर स्वागत और आभार व्यक्त करना चाहिए ! साधुवाद दावुद!

ब्रजेश कानूनगो

हिरोशिमा के विनाश और विकास की करुण दास्तान

हिरोशिमा के विनाश और विकास की करुण दास्तान  पिछले दिनों हुए घटनाक्रम ने लोगों का ध्यान परमाणु ऊर्जा के विनाशकारी खतरों की ओर आकर्षित किया है...