ट्रैकिंग की बातें
हमारे गृह नगर देवास में एक पहाड़ी है जिसको माताजी की पहाड़ी कहते हैं। यहां देवी चामुंडा और तुलजा भवानी के अतिरिक्त अन्य भी बहुत सारे मंदिर हैं। ब्रिटिश इतिहासकार ईएम फास्टर ने अपनी पुस्तक हिल आफ देवी में इसका उल्लेख भी किया है। ऊपर एक परिक्रमा मार्ग भी है। पहाड़ी पर जाकर देवास के लोग नित्य व्यायाम की दृष्टि से सुबह की सैर करते हैं। जिनकी आस्था होती है उन्हे देवी के दर्शन भी हो जाते हैं। जिन्हे केवल व्यायाम की दृष्टि से जाना होता है तो उनको सुबह की ताजी हवा के अलावा थोड़ी सी कसरत का लाभ भी मिल जाता है।
पहाड़ी के ऊपर तक जाने के लिए करीब पांच सौ सीढ़ियां रही होंगी। एक रपट मार्ग भी रहा है जिस पर जीप जैसी गाड़ियां उचित अनुमति के बाद ऊपर ले जाई जा सकती थीं। यह मैं अपने बचपन की स्मृति बता रहा हूं। अब तो वहां रोप वे बन गया है और श्रद्धालु टिकिट खरीद कर भी पहाड़ी के ऊपर जाने लगे हैं। बचपन में सीढ़ियों और रपट पर दौड़ते हुए मिनटों में ऊपर चढ़ जाया करते थे। इन दिनों घुम्मकड़ों के ट्रेवल वीडियो देखते हुए उनको ट्रेकिंग करते हुए भी कई रोमांचक वीडियो देखे हैं। हमे लगा कि बचपन में जब हम गृहनगर की पहाड़ी पर चढ़ा करते थे वह भी एक मायने में ट्रेकिंग ही तो था। सीढ़ी मार्ग होने के बावजूद लोगों ने कुछ ऐसे दुर्गम रास्ते खोज लिए थे जिनसे होकर हम लोग ऊपर पहुंचा करते थे। इसे खड़े पहाड़ चढ़ना कहते थे। ट्रेकिंग की परिभाषा भी यही है कि कटीले, गिट्टियों, झाड़ियों भरे दुर्गम कठिन रास्तों से होते हुए पहाड़ों के ऊपर चढ़ते जाना।
हमारे बुजुर्ग लोग हमसे कहा करते थे कि आप नित्य थोड़ा पहाड़ी पर घूम आया करें, एक दो चक्कर लगा लिया करें सुबह शाम। किंतु यह हिदायत देना भी न भूलते कि खड़े पहाड़ न चढ़ना। पर उत्साह और जोश से भरा एक ट्रैकर कहां ऐसी चेतावनियों को सुनता है, हम खड़े पहाड़ चढ़ने का जोखिम उठा ही लेते। अब समझ में आया कि हम भी बचपन में छोटे मोटे ट्रैकर रहे हैं।
स्कूल कॉलेज के दिनों में एनसीसी (राष्ट्रीय छात्र सेना) का कैडेट रहते हुए भी कैंपिंग और ट्रैकिंग के कुछ अनुभव हुए थे। तब उसमें जो कुछ सिखाया जाता था उसमे दशहरा दिवाली की छुट्टी में कैंपिंग होता था, हम खूब आनंद उठाते थे, ट्रैकिंग भी होता था और नकली युद्ध भी लड़ा जाता था। दो ग्रुप बना दिए जाते, जो एक दूसरे ग्रुप पर अटैक के लिए दो तीन किलोमीटर दूर विपरीत दिशाओं से ट्रैकिंग करते आगे बढ़ते रात को निकलते। घमासान युद्ध का अभ्यास होता। आज जब यूट्यूब पर हम घुम्मकड़ों के ट्रैकिंग वीडियो को देखते हैं तो असली ट्रैकिंग के रोमांच से भर उठते हैं।
बहुत सारे ऐसे ट्रेवलर्स हैं जिनको ट्रैकिंग करते देखकर बहुत अच्छा लगता है। मुझे कुछ ब्लॉगर्स के नाम याद आते हैं जिनके वीडियो देखकर मन प्रसन्न हो जाता है, जैसे डेल फिलिप (Dale Phillip ) एक ब्लॉगर हैं, स्कॉटलैंड के हैं, अंग्रेजी में अपने वीडियो बनाते हैं। श्रीलंका में वह दो-तीन बार गए हैं। श्रीलंका के सारे बड़े शहरों में तो घूमते ही हैं लेकिन कुछ ट्रैकिंग में श्रीलंका के पहाड़ों में अकेले निकल जाते हैं, ना तो उनको तमिल आती है न सिंहली, न वहां के पहाड़ी लोगों को अंग्रेजी समझती है। गूगल ट्रांसलेट से भी बात करते हैं लेकिन गूगल ट्रांसलेट भी ऐसी जगह पर काम नहीं करता। हम जानते हैं मुस्कुराहट और सद्भाव की अपनी अलग वैश्विक भाषा होती है, किसी तरह काम निकल ही जाता है। तो वहां इसी तरह से कुछ बच्चो के साथ वे श्रीलंका की पहाड़ियों पर ट्रैकिंग करते हैं। बहुत अच्छा दिलचस्प वीडियो उन्होंने बनाया है। उसमें प्रकृति का वास्तविक सौंदर्य हमको बहुत नजदीक से दिखाई देने लगता है। दरअसल ट्रैकिंग ही एक ऐसा माध्यम है जिसमें हम प्रकृति से सीधे जुड़ जाते हैं, इस दरम्यान हवा, चट्टान, वनस्पति, आकाश, मिट्टी, पानी, बादल, एक दूसरे से गले लगते हैं। मनुष्य और प्रकृति एक दूसरे से आत्मीय संवाद करने लगते हैं। ट्रैकर के माथे और देह को भिगोता संघर्ष का पसीना हम दर्शकों को रोमांचित करने लगता है। वीडियो देखते हुए प्रकृति सीधे हमसे बातचीत करने लगती है और सीधे दिल में उतरती चली जाती है।
ऐसे ही डेल फिलिप एक बार जंगलों में ट्रैकिंग करते हुए रेलवे पटरी के साथ साथ आगे बढ़ रहे होते हैं तो उनका पांव थोड़ा मुड़ जाता है, पांव में चोट आ जाती है। लेकिन यह देखकर बहुत अच्छा लगा कि चोटिल परदेसी ब्लॉगर को एक स्थानीय उनके चाहने वाले ने अपने परिवार के साथ घर में अतिथि की तरह स्थान देकर उनकी सेवा सुश्रा की। उनको कोई 15 दिन वहां रहना पड़ा। पांव में काफी सूजन रही। चलने फिरने में दिक्कत आई। इस घटनाक्रम का भी डेल ने वीडियो बनाया। हमें कई बार चिंता होती है कि ये ब्लॉगर अकेले अकेले अपरिचित क्षेत्रों में भटकते रहते हैं, दुर्भाग्य से कल कहीं कुछ दुर्घटना या अनहोनी घट जाए तो क्या होगा? लेकिन यह दुनिया बहुत खूबसूरत है, यहां के लोग बहुत खूबसूरत हैं, प्रेम, सम्मान और सौहार्द्र की भाषा और आचरण सबसे महत्वपूर्ण होता है, सब एक दूसरे का दुख दर्द जान लेते हैं। ऐसा कभी नहीं होता कि कहीं कोई मनुष्य अकेला पड़ जाए, समय आने पर बहुत लोग उनके साथ होते हैं, शुभचिंतक हो जाते हैं, सहयोग करते हैं। और फिर हम दर्शकों की शुभकामनाएं तो उनके साथ होती ही हैं जिनके लिए वे जोखिम उठाकर हमारे लिए अपने अनुभव साझा करते हैं।
ट्रैकिंग के और भी अनेक व्लॉगरों के वीडियो हमने देखे हैं खासतौर पर नेपाल, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश सहित अन्य देशों में पहाड़ी इलाकों में ग्रेब्रियल ट्रेवलर, दाउद अकुंजादा, बैग्स पैकर्स फैमिली के परिवार के साथ ट्रैकिंग का मानस आनंद लेते रहे हैं।
उधर पाकिस्तान के भारत से लगे हिमालय क्षेत्र भी काफी सुंदर हैं। गिलगिट आदि क्षेत्रों के मनोरम दृश्य को देखते हुए लगता ही नहीं कि यह भारत नहीं है। दाउद अकुंजादा उस खूबसूरत स्थल की यात्रा में सुंदर फिल्मांकन करते हैं।
एक ब्लॉगर के वीडियो में हमने देखा कि कुछ ऐसे नव विकसित कैंपिंग स्थल तो ऐसे भी हैं जहां से पर्यटक पाकिस्तान से भारत के दृश्यों और हलचल को निहार सकते हैं और पाकिस्तान से भारत के मनोरम दृश्य का आनंद उठा पाते हैं। कुछ स्थान ऐसे भी हैं जिनके बीच एक खूबसूरत नदी होती है और दोनों किनारों पर खड़े पर्यटक एक दूसरे का अभिवादन कर सकते हैं।
ट्रैकिंग के बारे में यह सब लिखने पर कुछ मित्र पूछ सकते हैं कि हम ऐसा कैसे कर पा रहे? कई बार यह होता है कि जिस क्षेत्र में हमने कुछ नहीं किया हो उस विषय पर भी हम लिखने की कोशिश करते हैं। हमारे इधर एक कहावत है, शादी नहीं की तो क्या, बारात में तो गए ही हैं। बारात में जाकर भी शादी का अनुमान लगाया जाता रहा है। समझ लीजिए कि हम घुमक्कड़ ना सही परंतु घुम्मकड़ों के बनाए वीडियो तो देखते हैं, उनके अनुभव से एकाकार होकर अनुमान लगाते हैं। कुछ यात्राएं हुईं हैं, भारतीय और पश्चिम की संस्कृति और परिवेश को भी थोड़ा बहुत अपने कनाडा प्रवास से जाना समझा है, इसी से अनुमान लगाने में अधिक कठिनाई नहीं आती। यह बहुत सारे जो हमारे ब्लॉगर मित्र हैं, जो इतने खूबसूरत वीडियो बनाते हैं कि देखते हुए हम उसमें डूब से जाते हैं और हमको लगता है कि बस हम ही घूम रहे हैं। अपनी अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने की आकांक्षा इसे शब्दों में बदलने लगती है। वीडियो बनाने वाले हमारे इन मित्रों को हम बहुत धन्यवाद देते हैं और शुभकामनाएं भी कि वे खूब यात्राएं करें और घर बैठे दुनिया की सैर हमें भी नित्य करवाते रहें।
ब्रजेश कानूनगो