Monday, 5 August 2024

देवदूत जैसे उदार घुम्मकड़

देवदूत जैसे उदार घुम्मकड़ 

अजरबैजान मूल के घुम्मकड़ और ब्लॉगर दावुद अकुंजादा को पहली बार उनके अमृतसर यात्रा के वीडियो में देखा था। कद काठी में पूरे पठान लगते हैं, भारतीय वस्त्रों की दुकानों पर बड़ी मुश्किल उनके नाप का कुर्ता, शूज या जूता मिल पाता है। जहां जाते हैं दुकान में सबसे बड़े नाप का परिधान मांगते हैं।  

बहरहाल, जब वे अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में गए तो अपने सिर पर पगड़ी बंधवाई। गुरु गोविंदसिंह द्वारा स्थापित सिद्धांतों के अनुसार खालसा सिक्खों द्वारा धारण किए जाने वाले पांचों ककार चीजों याने  केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कच्छा के बारे में जानकारी ली, उन्हे रुचिपूर्वक देखा समझा भी।    

कई ब्लॉगरों को हमने पवित्र स्वर्ण मंदिर दर्शन के लिए जाने के पूर्व सिक्ख पुरुषों द्वारा बांधी जाने वाली पगड़ियां बंधवाने की प्रक्रिया को देखा है। इसका वीडियो देखना भी बहुत दिलचस्प होता है। परिसर से पहले कारिडोर में अनेक ऐसी दुकानें हैं जहां से पगड़ी हेतु मनपसंद रंगीन कपड़े खरीद कर वहीं अपनी सेवाएं देते कर्मियों से अपने सिर पर उसे बंधवा सकते हैं। प्रक्रिया का वीडियो बना सकते हैं। दावुद का व्यक्तित्व बहुत प्रभावी है और जब वे अपने सिर पर पगड़ी धारण करते हैं तो पूरे सरदार लगते हैं। उनकी शानदार दाढ़ी उनके इस अवतार को आकर्षण और पूर्णता प्रदान कर देती है। 

अपने विडियोज में उन्होंने स्वर्ण मंदिर की पूरी सैर कराई। लंगर की रसोई का गहनता से दर्शन कराया। लंगर की पंगत में बैठकर भोजन किया। सबसे अंत में दान काउंटर पर जाकर एक बड़ी राशि वहां भेंट की। इन्ही वीडियो को देखते हुए ज्ञात हुआ कि दावुद जहां की सैर करते हैं और वीडियो बनाते हैं उससे होने वाली आय को उसी स्थान के लोगों में या कल्याण कार्यों में दान स्वरूप खर्च कर देते हैं। उनकी यह उदारता उनकी हर यात्रा के विडियोज में देखी जा सकती है। 

अजरबैजान में बहुसंख्यक आबादी इस्लाम धर्म को मानने वालों की है लेकिन वह एक धर्म निरपेक्ष देश है तथा वहां समाज का एक बड़ा वर्ग किसी धर्म का अनुयाई नहीं है। एकाध वीडियो में दावुद भी इसी बात को स्वीकारते दिखाई देते हैं। दावुद मनुष्यता को धर्म मानते हैं। सभी धर्मों,समुदायों का सम्मान उनके मन में है। सब जगह जाते हैं, सम्मान व्यक्त करते हैं और वीडियो में यह सब सहजता से देखा जा सकता है। अपनी उदारता से वे दर्शकों का मन जीत लेते हैं। किसी सांता क्लाज या देवदूत की तरह वे वृद्ध,  बच्चों, कमजोर और जरूरतमंद के लिए अकस्मात देवदूत की तरह प्रकट हो जाते हैं।  

दावुद ने भी यूट्यूब माध्यम में पूर्णतः ट्रवेलर ब्लॉगर के रूप में प्रवेश अपनी नौकरी छोड़कर किया है। वे सामान्यतः अच्छी होटलों में ठहरते हैं। कई बार उस जगह की सबसे लग्जरी होटल में रुकते हैं। वीडियो टूर देते हैं। नाश्ता, लंच, डिनर, स्विमिंग पूल, टेरेस, जिम आदि सभी पक्षों का आस्वाद अपने दर्शकों को कराते हैं। लेकिन यह केवल एक पक्ष है, बड़ा महत्वपूर्ण दूसरा पक्ष यह है कि वे सामान्य लोगों के बीच अपना अधिकांश समय सामान्य परिदृश्य में गहरे से उतरते जुड़ते हुए बिताते हैं। 

ज्यादातर वे खाना बाजार में स्थानीय रेस्टोरेंट में करते हैं और उसमें भी स्ट्रीट फूड और छोटे छोटे स्टाल्स उनकी प्राथमिकता में होते हैं। बाजार में घूमते हुए जब देखते हैं कि कोई बहुत अच्छा स्थानीय शरबत मिल रहा है तो वह अवश्य उसका आनंद उठाएंगे। ऐसे में उनके आसपास लोगों की भीड़ जुट जाती है तो  दुकानदार से बोलते हैं कि इन सबको भी यह दे दीजिए, उसका पूरा पेमेंट वही कर देते हैं। 

किसी दुकानदार की कमजोर स्थिति देखकर वे भावुक भी हो जाते हैं ,पूछते हैं, भाई आप दिन भर में कितना कमा लेते हैं?  मान लीजिए वह व्यक्ति  बता देता है कि मैं दिन भर में  500 रुपए कमा लेता हूं तो दाऊद उससे उसके स्टाल का पूरा सामान फ्री लोगों में वितरित करने का कह देते हैं,  सब लोगों को आप मेरी तरफ से फ्री बांट दीजिए, और आप आज के लिए कुछ नहीं करें, आप घर जाकर आराम करें।  यह दया भाव एक जरूरतमंद छोटे कारोबारी व्यक्ति के लिए देखकर बहुत अच्छा लगता है। 

एक बार शायद कोलकाता या बांग्लादेश में कहीं घूम रहे थे।  सब्जी मंडी में एक बूढ़ी महिला अपनी छोटी सी बास्केट में लहसुन रखकर सड़क किनारे बैठी थी। वे उससे स्नेहपूर्वक बातें करते हैं, खैरियत पूछते हैं, उसकी सारी लहसुन खरीद लेते हैं। वह लहसुन आगे जाकर उन्होंने और किसी गरीब जरूरतमंद परिवार को भेंट कर दी।  लहसुन के पूरे दाम चुका के कुछ और राशि अतिरिक्त देकर उन्होंने कहा कि आज आप आगे काम नहीं करेंगे, आप घर जाइए आराम करिए।  

दावुद अकुंजादा की उदारतापूर्ण मार्मिक अनुभूतियों से गुजरना चाहते हैं तो उनकी श्रीलंका सीरीज के विडियोज को अवश्य देखा जाना चाहिए। स्कूटर से उनको ग्रामीण क्षेत्रों में घूमते, ग्रामीणों, खेत में काम करते मजदूरों से वार्तालाप करना, छोटे छोटे ग्रामीण स्टालों, टापरियों पर जाकर खाना पीना, आत्मीयता से सुख दुख की बातें करना फिर उन सबकी मदद करना। निर्धन परिवारों और बच्चों की संस्थाओं में जाकर उनसे मेल मुलाकात, सहयोग का हाथ बढ़ाना और आर्थिक सहयोग करना, बहुत अद्भुत और मानवीय संवेदनाओं का प्रेरक गुलदस्ता सा बन जाते हैं ट्रेवल ब्लॉगर दावुद अकुंजादा।

ट्रेवल वीडियो देखते हुए यदि ब्लॉगर की अनुभूतियां हमारी अनुभूति में रूपांतरित होकर  संवेदनाओं और नैतिक मूल्यों का थोड़ा भी प्रस्फुटन करती हैं तो क्यों न हमें इनका भरपूर स्वागत और आभार व्यक्त करना चाहिए ! साधुवाद दावुद!

ब्रजेश कानूनगो

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