जागरूक घुम्मकड़ के बहाने फिटनेस की बातें
घुमक्कड़ी का जुनून लिए दुनिया की सैर को निकले घुम्मकड़ व्लॉगरों के लिए सबसे जरूरी होता है अपनी सेहत का खयाल रखना। अपनी यात्राओं के दौरान इन्हे अनेक प्राकृतिक और पारिस्थितिक स्थितियों से गुजरना होता है। समय चक्र में परिवर्तन के अलावा मौसम और तापमान में बदलाव, खान पान की भिन्नता के अलावा स्थानीय जन जीवन की जीवन शैली का भी घुम्मकड़ों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। ऐसे में अपनी सेहत का पर्याप्त ध्यान रखना भी इनके लिए बेहद जरूरी हो जाता है। आमतौर पर घुम्मकड़ ऐसा करते भी हैं और तन और मन को सक्रिय व स्वस्थ बनाए रखने के उपाय भी करते हैं। जरूरी विश्राम और मनोरंजन के साथ कसरत अर्थात व्यायाम या आज की भाषा में शारीरिक वर्क आउट को भी अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लेते हैं। कुछ यात्री योगाभ्यास को भी दिन की शुरुआत का हिस्सा बना लेते हैं।
घुमक्कड़ी के दौरान फिटनेस की चर्चा से पहले उचित होगा कि हम फिटनेस के इतिहास पर भी थोड़ी नजर डाल लें। सच तो यह है कि मनुष्य और उसके जीवन के विकास के साथ ही आदिम काल में ही फिटनेस की अवधारणा भी फलीफूत होती गई है। शारीरिक बलिष्ठता को लक्ष्य में न रखते हुए भी आदिम काल का इंसान केवल अपनी जान बचाने के प्राथमिक उद्देश्य से अनायास ही फिटनेस की ओर उन्मुख हुआ। खतरों से बचने के लिए उसके सामने एक ही उपाय था, भागो, दौड़ते जाओ। इस उपक्रम में अपनी जान बचाने के लिए वह पेड़ पर चढ़ जाता, पहाड़ों और चट्टानों पर चढ़ता, छलांग लगाता, भारी पत्थरों को उठाता, शत्रु की ओर फेंकता वही सब करता जो आज बलिष्ठता के लिए व्यायाम शालाओं, खेल के मैदानों में या आधुनिक जीमों की मशीनों पर किया जाता है, या करवाया जाता है किसी प्रशिक्षक द्वारा।
और जब मनुष्य ने खेती करना शुरू की तो कृषि और उससे जुड़े कार्यों में उसे श्रम करना जरूरी हो गया। खेत जोतने से लेकर खेती कार्यों में मेहनत करके अपना पसीना बहाने लगा, उसकी बलिष्टता और फिटनेस का आधार शारीरिक श्रम बन गया। आगे चलकर समूह बने, अपनी सीमाओं का निर्माण हुआ, राज्य,देश बने तो आधिपत्य के संघर्ष हुए, युद्ध होने लगे। तब सैन्य बलों और सैनिकों को तंदुरुस्त और शक्तिशाली बनाने की दृष्टि से प्रशिक्षणों में फिटनेस के उपाय किए जाने लगे। प्राचीन एथलेटिक खेलों की शुरुआत भी यूनान में इसी उद्देश्य से हुई।
लगभग 14 वीं 16 वीं सदी के आसपास पुनर्जागरण काल में समाज में मनुष्य के शरीर, शरीर विज्ञान, शारीरिक प्रशिक्षण में रुचियां पैदा हुईं। पुस्तकें लिखीं गईं, स्कूल खुले मिस्र के साथ साथ स्पेन,जर्मनी, इंग्लैंड, आदि में भी इस अवधारणा की दिशा में अध्ययन और उपाय आगे बढ़ते गए।
सन 1796 में पहली आधुनिक फिटनेस मशीन का आविष्कार हो गया। वजन आधारित और ताकत उन्मुख जिमों में व्यक्ति की बलिष्ठता और तंदुरुस्ती को केंद्र में रखते हुए बीसवीं सदी में तो फिर फिटनेस उपकरणों का उपयोग बढ़ता ही चला गया।
घुम्मकड़ों के यूट्यूब वीडियो देखते हुए हमने यह भी देखा कि बहुत से ट्रेवलर आधुनिक जिम में जाकर कसरत करते हैं, अपना पसीना बहाते हैं। लेकिन जिन लोगों को हमने प्रायः ऐसा करते देखा उनमें हरियाणा के परमवीर सिंह बेनीवाल ने हमे बहुत प्रभावित किया। पैसेंजर परमवीर नाम से वे अपने ट्रेवल वीडियो बनाते हैं। लगभग सौ देशों में पर्यटन कर चुके हैं। छब्बीस सताइस वर्ष के युवा हैं, ऊंची कद काठी है, देखने से ही बॉडी बिल्डर लगते हैं। समझदार हैं और घुम्मकड़ी के जुनून में ज्यादातर जोखिम वाली जगहों की यात्रा करने में इन्हे बहुत आनंद आता है। अफ्रीका और लेटिन अमेरिका के कुछ खतरनाक इलाकों और देशों के अलावा सीरिया, इसराइल, फिलिस्तीन, गाजा, यूक्रेन,सोमालिया आदि जैसे देशों में जहां की कई तस्वीरें हम जैसे दर्शकों को विचलित कर देती हैं, वहां भी हर स्थिति में हमे उनका उत्साह और मुस्कुराहट कम होती दिखाई नहीं देती। हमारे लिए विडियो बनाते हैं और अखबारों में पढ़ी खबरों को स्क्रीन पर हमारे लिए जीवंत कर देते हैं। हाल ही में म्यांमार की उन्होंने रोमांचक यात्रा की है।
बहरहाल, यहां हम उनकी ब्लागिंग की बजाए उनके वर्क आउट याने कसरत के प्रति गहन लगाव की चर्चा करना चाहते हैं। परमवीर ऐसे ट्रेवलर हैं जिनके लिए जिम जाए बगैर ट्रेवलिंग को आगे बढ़ाना शायद संभव ही नहीं है। अजनबी शहर में भी वे कसरत के लिए जिम खोजते रहते हैं। इसके लिए खर्च की वे परवाह भी नहीं करते। जिम भले कितनी ही दूर हो, टैक्सी का ज्यादा किराया देना पड़े, लंबी पैदल दूरी तय करना पड़े, वे जिम पहुंच ही जाते हैं और भारी शुल्क चुकाकर भी अपना पसीना बहा आते हैं। अपनी फिटनेस के प्रति उनकी यह चेतना सचमुच प्रेरक है।
परमवीर सिंह को यदि कहीं आधुनिक जिम नहीं मिल पाता तो उन्हे सड़क किनारे के या जुगाड के जिम के साधनों का उपयोग करने में कोई गुरेज नहीं होता। उद्देश्य यही रहता है कि कोई दिन बिना व्यायाम किए नहीं गुजरे। जिस दिन वे कसरत नहीं कर पाते उनके चेहरे की उदासी वीडियो में भी नजर आ ही जाती है।
यदि भारत के संदर्भ में फिटनेस के इतिहास और वर्तमान की बात करें तो यहां की धार्मिक सांस्कृतिक मान्यताओं ने हमेशा से आध्यात्मिकता पर जोर दिया। हमारे यहां फिटनेस की यात्रा मन से शरीर की ओर रही है। पहले मन फिर तन की स्वस्थता। हालाँकि, चीनी कांग फू जिम्नास्टिक के समान एक व्यायाम कार्यक्रम विकसित हुआ, जो सांस्कृतिक मान्यताओं के अनुरूप था, जिसे योग के रूप में जाना जाता है। माना जाता है योग कम से कम पिछले 5000 वर्षों से अस्तित्व में है। योग का अर्थ है मिलन, और यह भारतीय दर्शन की क्लासिक प्रणालियों में से एक को संदर्भित करता है जो शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने और व्यक्तिगत रूप से विकसित करने का प्रयास करता है। योग मूल रूप से धर्माचार्यों द्वारा विकसित किया गया था जो अनुशासन और ध्यान की विशेषता वाली मितव्ययी जीवन शैली जीते थे। विभिन्न जीवों की गतिविधियों और पैटर्न को देखने और अनुकरण से, योगाचार्यों को प्रकृति के साथ वही संतुलन हासिल करने की उम्मीद थी जो अन्य प्राणियों के पास था। योग का यह पहलू , हठ योग के रूप में जाना जाता है। प्रकृति के साथ संतुलन के अलावा, प्राचीन भारतीय दार्शनिकों ने उचित अंग कार्य और संपूर्ण कल्याण सहित योग के स्वास्थ्य लाभों को मान्यता दी। इन स्वास्थ्य लाभों को आधुनिक संयुक्त राज्य अमेरिका सहित अन्य कई देशों में भी स्वीकार किया गया है। वहां भी बड़ी संख्या में लोग नियमित रूप से योग में भाग लेते रहते हैं। भारत सरकार ने 21 जून का दिन अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में घोषित किया है। जो विश्व में प्रतिवर्ष स्वास्थ्य चेतना में भारतीय योग के महत्व और योगदान को रेखांकित करता है।
भारत में स्वास्थ्य के प्रति अब आम लोगों में काफी जागरूकता दिखाई देती है। हर व्यक्ति अपनी फिटनेस के लिए उपाय करता नजर आता है। महंगे और आधुनिक साधनों वाले महंगे जिमों के अलावा कस्बों, शहरों में कॉलोनी के पार्कों में सामुदायिक फिटनेस क्लब और योग केंद्र संचालित हैं। लोग जुटते हैं और अपने तन और मन की फिटनेस के लिए पसीना बहाते नजर आते हैं।
ब्रजेश कानूनगो
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