Monday, 16 September 2024

स्लम्स और झुग्गियों में घूमता घुमक्कड़

स्लम्स और झुग्गियों में घूमता घुमक्कड़


किसी भी देश की मलिन और झुग्गी बस्तियों को ढंक देने के प्रयास अक्सर उस वक्त होते रहते हैं जब वहां अंतरराष्ट्रीय महत्व का कोई आयोजन हो रहा होता है। स्लम या झोपड़पट्टियों का होना किसी भी सरकार और वहां के नागरिकों के लिए अपमान जनक बात कही जा सकती है। इनकी उपस्थिति चांद जैसे खूबसूरत शहरों पर बदनुमा धब्बे की तरह माना गया है। 

दरअसल, झुग्गी बस्ती या झोपड़पट्टी या स्लम ऐसे घने रहवासी क्षेत्र होते हैं, जहां जीर्ण शीर्ण घरों के छोटे छोटे से कमरों में कई लोग बड़ी कठिनाइयों के साथ रहते हैं, यहां कई बार धूप भी बमुश्किल से दिखाई देती है, स्वच्छता का अभाव होता है, शुद्ध हवा का प्रवाह नही रहता, पेय जल की अस्वास्थकर व्यवस्थाएं होती हैं। ये तमाम ऐसी स्थितियां होती हैं बस्तियों में जिन्हे मानव जीवन के विकास के लिए उपयुक्त नहीं माना जा सकता। कई जगह कचरा, गंदगी का साम्राज्य होता है, सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति बदतर होती जाती हैं। स्कूलों की दशा और वहां के साधन बदहाल होते हैं। 

अनेक प्रयासों के बावजूद कई बड़े देशों के बड़े महानगरों के सौंदर्य के बीच इनकी उपस्थिति आज भी बनी हुई है। यह अलग बात है कि सरकारें और कई स्वैच्छिक संगठन इन बस्तियों के उद्धार और यहां के निवासियों के कल्याण के लिए काम करते हैं। किंतु स्लम्स या झुग्गियों का होना आधुनिक समाज में एक कड़वी सच्चाई है। 

दिलचस्प बात यह है कि प्राकृतिक और मानव निर्मित रमणीय स्थलों की सैर करना विश्व के पर्यटक बहुत पसंद करते हैं, वहीं दुनिया के बड़े स्लम्स और झुग्गी बस्तियां भी घुमक्कड़ों को आकर्षित करती रहती हैं। कई घुमक्कड़ों को हमने यूट्यूब पर दुनिया की घनी बस्तियों और झोपड़पट्टियों में भ्रमण करते, वहां के जनजीवन और स्थितियों पर ब्लागिंग करते देखा है। कई तरह की जोखिमपूर्ण स्थितियों के बावजूद ये घुम्मकड़ हम दर्शकों को भी वहां का आभासी मुआयना करवा देते हैं।  

पिछले दिनों हमने ऐसे ही कई वीडियो देखे। नोमेडिक टूर चैनल के तोरवशु के साथ दक्षिणी अमेरिका के ब्राजील में रियो डी जेनेरो के सबसे बड़े स्लम जिसे फावेला कहा जाता है की आभासी सैर की। इससे पहले कुछ अन्य व्लॉगरो के अलावा डॉक्टर यात्री के नवांकुर का भी वीडियो हमने देखा था। दरअसल ब्राजील, रूस,कनाडा,चीन, यू एस ए के बाद विश्व का पांचवा सबसे बड़ा देश है। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया और भारत का क्रम आता है। 

ब्राजील के स्लम पर्यटन के संदर्भ में यहां कुछ बातें जान लेना भी दिलचस्प होगा।  यहां पूर्व में पुर्तगालियों का साम्राज्य रहा था। पुर्तगाली भाषा में रियो डी जेनेरियो का अर्थ है,जनवरी की नदी। यह शहर  गुआंडू नदी के पास बसा है। दरअसल यह शहर अटालंटिक महासागर का तट है जिसे जनवरी की नदी कह दिया गया था।  
ब्राज़ील में शहरी केंद्रों के पास जो झुग्गी-झोपड़ियाँ हैं उन्हें ही फावेला कहा जाता है। ये अनौपचारिक अवैध बस्तियाँ तब बनीं जब बेघर लोग रियो डी जेनेरियो और साओ पाओलो जैसे बड़े शहरों के नज़दीक खाली ज़मीन के भूखंडों पर आकर बसने लगे। झुग्गी झोपड़ी की यह बसाहट लगभग सन 1930 के आसपास शुरू हो गई थी। इन इलाकों में बसने वाले लोग अपने घरों का निर्माण उन सामग्रियों से करते हैं जिन्हें वे सहजता से जुटा सकते हैं। नालीदार पतरे, कार्डबोर्ड बॉक्स, प्लास्टिक शीट और प्लाईवुड आदि जैसा कबाड़ की तरह निकलने वाली सामग्री इनके निवासियों के लिए बड़ी उपयोगी हो जाती है। यहां की एक विशेष वनस्पति से भी फावेला शब्द की उत्पत्ति का संबंध बताया जाता है। शायद उसी तरह जिस तरह कुछ लोग गाजरघास शब्द का प्रयोग हमारे यहां की झोपड़पट्टियों की बसाहट के संदर्भ में करते रहते हैं। 

एक जानकारी के अनुसार 2010 की जनगणना के अनुसार, ब्राज़ील में लगभग 11 मिलियन लोग, या कुल आबादी का लगभग 6%, फावेला में रहते हैं। विश्व के लोगों ने 2002 की फ़िल्म सिटी ऑफ़ गॉड के माध्यम से भी यहां की अनूठी बसाहट और अपराध और हिंसा को थोड़ा बहुत जाना है। तोरवशु ब्लॉगर के वीडियो को देखते हुए हमने जाना कि इन बस्तियों में कई जगह तो सूर्य की किरणे तक नहीं पहुंच पाती। भूलभुलैया सी तंग गलियों से बाहर निकलना भी बेहद कठिन हो जाता है।

रियो डी जेनेरियो जैसे बेहद खूबसूरत शहर और विश्व के सात आश्चर्यों में शामिल कारकोवादो  पर्वत के शिखर पर स्थित ईसा मसीह की विशाल प्रतिमा के लिए विख्यात रियो यहां की हिंसात्मक और अपराधिक गतिविधियों के लिए भी कुख्यात है। फावेला बस्तियों के सकारात्मक और नकारात्मक दोनो पक्ष हैं किंतु पर्यटकों को अकेले वहां जाने की सलाह नहीं दी जाती। किसी स्थानीय व्यक्ति या गाइड को साथ लेकर ही यहां पर्यटक जा पाते हैं। 

ब्राजील की इन बस्तियों को देखते हुए भारत में मुंबई महानगर में बसी धारावी की बसाहट और जनजीवन का दृश्य भी सामने आने लगता है। इस बस्ती में भी बड़ी संख्या में पर्यटकों का आना बना रहता है। धारावी दुनिया के पर्यटकों की सूची में स्लम पर्यटन की दृष्टि से सबसे ऊपर क्रम की ख्वाहिश रहती है।  यह दुनिया की सबसे बड़ी झुग्गियों में से एक है। एक जानकारी के अनुसार भौगोलिक क्षेत्र का आकार सिर्फ़ 2.39 वर्ग किलोमीटर है, लेकिन इसकी आबादी लगभग 3 से दस लाख लोगों तक आकलित की गई है। इसका मतलब है कि धारावी दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले रिहायशी इलाकों में से एक कहा जा सकता है।

माना जाता है कि 1884 से  जब शहर में ग्रामीण इलाकों से शहरी मुंबई की ओर लोगों का भारी पलायन हुआ था तो वे धारावी इलाके में बसते गए। यह शहर का वह इलाका था जहाँ आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों की सबसे ज़्यादा आबादी रहती थी। जैसे-जैसे उद्योगों की संख्या बढ़ी, झुग्गी-झोपड़ियों का आकार भी बढ़ता गया।

यह बहुत महत्वपूर्ण है कि अपनी तंग बस्तियों और चुनौतीपूर्ण  स्थितियों के बावजूद, यहां के निवासियों ने एक संपन्न सूक्ष्म अर्थव्यवस्था, रीसाइक्लिंग उद्योग का निर्माण करने में कामयाबी हासिल की है। मुंबई के लगभग 60% प्लास्टिक कचरे को धारावी में रीसाइकिल किया जाता है।  धारावी का चमड़ा उद्योग एक और फलता-फूलता व्यवसाय है, जिस पर यहां की अर्थ व्यवस्था निर्भर करती है। कुशल कारीगर उच्च गुणवत्ता वाले चमड़े के सामान बनाने से लेकर उन्हें ठीक करने तक के काम में लगे हुए हैं। अनेक पर्यटक तो यहां के इन उद्योगों की कार्यप्रणाली देखने समझने के लिए ही आते रहते हैं। 

धारावी की संभवतः सबसे बड़ी ताकत है यहां की  सांप्रदायिक विविधता और बेहतरीन सामाजिक समभाव और भाईचारा। धारावी का अविश्वसनीय रूप से मिलजुला समुदाय यह सब संभव बना देता है। मुंबई का यह इलाका संस्कृतियों, भाषाओं और धर्मों का एक सुखद मेल है। भारत के विभिन्न हिस्सों से आए लोग इस जगह को अब अपना घर कहते हैं और वे इसे बेहतरीन बनाने के लिए हर संभव प्रयास करते रहते हैं।

अगर हम सहजता से जानना चाहें कि स्लम टूरिज्म क्या है, तो बस धारावी पर थोड़ी जानकारी इकट्ठी करें। हर साल 15,000 से अधिक पर्यटक धारावी आते हैं। ट्रेवलर्स चॉइस एक्सपिरिएंस की एशियाई सूची में वर्ष 2019 में इसका स्थान पहले दस स्थानों में रहा था। स्लम डॉग मिलेनियर जैसी प्रसिद्ध फिल्म की शूटिंग यहां की गई थी। 

इसके अलावा भारत में दिल्ली की भलस्वा,चैनई की नोचिकुप्पम, बैंगलुरू की राजेंद्रनगर बस्ती, कोलकाता की बसंती झुग्गी बस्तियां भी बड़े स्लम्स हैं।  सन 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में कोई 6.5 करोड़ आबादी झुग्गियों में रहती हैं जिनमे से लगभग 1.8 करोड़ महाराष्ट्र में निवास करती हैं। एक आकलन यह भी है कि भारत के 6 शहरी व्यक्तियों में से 1 झोपड़पट्टी में रहता है। जिन के विकास और कल्याण के लिए प्रयास होते रहते हैं। 

स्लम पर्यटन के जरिए भी जनसंख्या के एक ऐसे बड़े वर्ग पर व्लोगर ध्यान आकर्षित करते हैं जिनके कल्याण और विकास के लिए समाज और सरकारों को अभी बहुत कुछ करना शेष है। 

ब्रजेश कानूनगो  

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