लॉस्ट चांस टूरिज्म : कितना अंतिम है यह
पयर्टन के क्षेत्र में ' लॉस्ट चांस टूरिज्म ' जैसे नए ट्रेंड के बहाने एक नया रास्ता मिला है। इससे इस उद्योग को नया बाजार भी मिला है। अंतिम अवसर पर्यटन, जिसके तहत यात्री उन स्थलों पर जाते हैं जो बदलते पर्यावरण, क्षरण और जलवायु परिवर्तन के कारण खतरे में हैं। यह एक ऐसी बढ़ती हुई प्रवृत्ति है जिसमें पर्यटक इन स्थानों के संभावित रूप से बदलने या पूरी तरह से गायब होने से पहले इनका दर्शन लाभ उठाने और सैर सपाटे की इच्छा से प्रेरित हुई है।
जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन के बारे में जागरूकता बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे इन संवेदनशील स्थानों में पर्यटक की रुचि भी बढ़ती जाती है। इसमें होता है यह है कि टूर प्रबंधन कंपनियां उन स्थानों की पर्यटकों को सैर कराते हैं जो दृश्य या चीजें इस पृथ्वी से या इस दुनिया से गायब होने के खतरों से गुजर रहीं हैं। अब इस गायब होने की अवधि कितनी लंबी होगी इसका अनुमान लगाना बहुत कठिन होगा। यह समय इतना लंबा भी होना संभव है कि हमारी कई पीढ़ियां गुजर जाएं या इतना छोटा भी हो सकता है कि कुछ वर्षों में ही यह चीजें विलुप्त हो जाएं। उनके समाप्त होने के पहले लोगों को उन तक पहुंचा देने की सारी जद्दोजहद को अंतिम अवसर पर्यटन या लास्ट चांस टूरिज्म के रूप में इन दिनों काफी चर्चा में है और एक पूरी पीढ़ी में अदृश्य होने के पहले मनोहारी और अद्भुत चीजों को देखने के प्रति रुचि बढ़ाई जा रही है या बढ़ गई है।
बहरहाल, हमारी असली चिंता यह है कि ये खूबसूरत नजारे और उनका आनंद हमारी दुनिया से गायब आखिर क्यों होते जा रहा है। इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं। इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण पृथ्वी के तापमान में निरंतर वृद्धि होना माना गया है। जलवायु में जो परिवर्तन हो रहे हैं उसका असर व्यापक रूप से दिखाई दे रहा है। बहुत सी चीजें समाप्त हो रही हैं, अदृश्य हो रही है या उनमें बदलाव आता जा रहा है। परंपरागत जनजीवन, पर्यावरण , जीव जंतु और प्रकृति पर इस परिवर्तन का असर बढ़ता दिखाई देने लगा है।
वस्तुतः ग्लोबल वार्मिंग के कारण जलवायु परिवर्तन हो रहा है। कहीं सूखा पड़ रहा है तो कहीं बाढ़ आ रही है। यह जलवायु असंतुलन ग्लोबल वार्मिंग का ही नतीजा है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण गर्मी और नमी के पैटर्न में बदलाव आ रहा है। कई नए वायरस और बीमारी फैलाने वाले कीट और मच्छरों की आवाजाही बढ़ रही है। बाढ़, सुनामी और अन्य प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि के कारण, जन धन का बड़ा नुकसान पर्वतीय और तटीय क्षेत्रों में बढ़ता गया है जिसकी वजह से सहज मानव जीवन बाधित हो जाता है।
जलवायु में वैश्विक बदलाव के कारण कई पौधों और जानवरों के आवास नष्ट हो जाते हैं। इस स्थिति में, जानवरों को अपने प्राकृतिक आवास से पलायन करना पड़ता है और उनमें से कई धीरे धीरे विलुप्त भी हो जाते हैं। यह पृथ्वी की जैव विविधता पर ग्लोबल वार्मिंग का एक बड़ा प्रभाव है।
पृथ्वी के निरंतर बढ़ते तापमान को हम लोग जिस ग्लोबल वार्मिंग के नाम से जानते हैं, इन दिनों काफी चर्चा में भी है। तापमान के बढ़ने से वर्तमान परिस्थितियों में, जलवायु में बहुत से परिवर्तन हो रहे हैं और उन परिवर्तनों के कारण पर्यटन के उद्देश्य से जिनका महत्व होता है उन चीजों में भी बदलाव हो रहे हैं, या वे विलुप्त हो रही हैं। मसलन आर्कटिक और अंटार्कटिक ध्रुवीय क्षेत्र यहां सबसे ज्यादा बदलाव हो रहा है। यहां जो पशु पक्षी रहते हैं, खास तौर से जो ध्रुवीय भालू हैं, वह सब समाप्त हो रहे हैं। ग्लेशियर और विशाल आइस बर्ग हैं वे भी जल्दी पिघलने लगे हैं। उनका सौंदर्य अनुभव करने में पर्यटक को अब धीरे धीरे निराश होने की आशंका सताने लगी है।
समुद्रों में खास तौर से ऑस्ट्रेलिया के ग्रेड बैरियर रीफ़ में बढ़ते तापमान के कारण वहां पर्यटकों के खास आकर्षण खूबसूरत कोरल्स और शैवालों में भारी कमी आई है। अनेक सुंदर जल जीवों की प्रजातियों में कमी और तादाद में कमी होती जा रही है। इटली का खूबसूरत शहर वेनिस जो अपनी वास्तुकला के साथ-साथ अपनी सुंदर जल धाराओं में पर्यटकों को मनोहारी और रोमांटिक नौकायन का सुख देता है, अपनी क्षमता खोता जा रहा है। वह समुद्र स्तर में बदलाव और बार-बार बाढ़ आने से उनकी वास्तु कला और शिल्प प्रभावित हो रहा है। इसके सौंदर्य के घटने की आशंका बलवती होती जा रही है।
पर्यटकों के आकर्षण के कई ऐसे द्वीप पृथ्वी पर मौजूद हैं जो समुद्र तल से थोड़ा सा ही ऊपर हैं। जैसे-जैसे बदलाव आ रहा है, इनके समुद्र में समा जाने की संभावना पैदा हो गई है। समुद्र किनारों पर जो खूबसूरत पर्यटन स्थल हैं, बीच हैं, सैरगाह हैं, जहां सर्व सुविधायुक्त कॉटेज बनाए गए हैं, ये सब खतरे में घिर रहे हैं। अनेक छोटे छोटे पर्यटन द्वीप हैं लुप्त होते जा रहे हैं या जल्दी ही समुद्र में डूब सकते हैं। विशेष रूप से मालदीव जो बहुत बड़ा आकर्षण का केंद्र है और लाखों पर्यटक यहां पर प्रतिवर्ष सैर सपाटे के लिए जाते हैं, वह समुद्र तल से बहुत थोड़ा सा ऊपर है, उसके अद्भुत समुद्र तट धीरे-धीरे सौंदर्य खोते जा रहे हैं, समाप्त होते जा रहे हैं। लास्ट चांस टूरिज्म ट्रेंड में इन सब स्थानों के पर्यटन का महत्व और बढ़ता जा रहा है।
इस ग्लोबल वार्मिंग के कई मानव जनित कारण भी हैं। बढ़ता औद्योगीकीकरण और शहरीकरण भी कुछ हद तक जिम्मेदार होता है। जिस तरह से शहरीकरण बढ़ता जा रहा है पर्यटन स्थलों की ओर जो बसाहट हो रही है, उससे प्राकृतिक स्थितियों में बदलाव हुआ है, पर्वतीय और तटीय पर्यटन स्थलों का सौंदर्य ही नहीं बल्कि जीवन पर भी खतरा पैदा हुआ है।
औद्योगिकरण से वायुमंडलीय प्रदूषण बढ़ा ही है, स्वास्थ्य के अलावा धरोहरों के भी क्षरण की स्थितियां देखी गईं हैं। हमने कुछ समय पहले पढ़ा था कि ताजमहल की संगमरमर पर भी प्रदूषित यायु का असर देखा गया है। ग्रीन हाउस गैसेस, कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें वायुमंडल में बढ़ती गईं हैं। धरती की मिट्टी में मौजूद पिघलता हुए परमाफ्रास्ट के क्षरण से जो गैसों का विस्फोट होता है वह भी वायुमंडल में ही अंततः प्रवेश कर जाता है। उससे भी हमारी पृथ्वी का तापमान गड़बड़ा रहा है।
अफसोस है कि अनेक सुंदर प्राकृतिक दृश्य, सुंदर द्वीप, सुंदर स्थान, सुंदर ध्रुव प्रदेश, समुद्रीय सौंदर्य और प्राकृतिक छटाएं और मानव निर्मित संरचनाएं अपने पर संकट के बादल घिरे पाते हैं और इस संकट का लाभ पर्यटन इंडस्ट्री को मिला है। अंतिम अवसर पर्यटन के हिसाब से टूर बनाए जाने लगे हैं। इससे रोजगार भी मिला है।
आखरी कब तक पर्यटन क्षेत्र में यह अंतिम अवसर रहेगा? यह तो कहा नहीं जा सकता लेकिन यह चिंता बेहद वाजिब है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण हमारी दुनिया धीरे-धीरे बदलती जा रही है। जो खूबसूरती आज है, जो दृश्य हम आज देखते हैं, हो सकता है कि कल हम उन्हें नहीं देख पाएं। अंततः सबसे बड़ी चिंता और जिम्मेदारी तो हमें इस पृथ्वी को खूबसूरत बनाए रखने की है। यह लास्ट चांस टूरिज्म, अंतिम अवसर पर्यटन कितना ही प्रचलित होता रहे लेकिन हमारा अंतिम लक्ष्य यही होगा कि इस पृथ्वी की खूबसूरती हमेशा कायम रहे, हम इसमें पूरी तरह से रुचि लेते रहें, लोगों में जागरूकता बढ़ाते रहें और प्रकृति, पर्यावरण और पृथ्वी को बचाने के हर प्रयास करते रहे।
ब्रजेश कानूनगो
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