Tuesday, 30 July 2024

भोजन वही जो हम चाहें, कीमत वही जो तुम चाहो

भोजन वही जो हम चाहें, कीमत वही जो तुम चाहो


बहुत से ट्रेवल व्लॉगर्स पूर्व तैयारियों के साथ अपने वीडियो बनाते हैं। अपने हाथों में कैमेरा या मोबाइल स्टिक थामें हुए दृश्य का फिल्मांकन नहीं करते, बल्कि उनके साथ उनकी एक टीम होती है, कैमरामैन होता है, ड्रोन कैमेरा सहित आधुनिक तकनीक वाले अन्य उपकरण अपने साथ लेकर वे पूर्व निर्धारित डेस्टिनेशन या विशिष्ठ महत्व के स्थलों की सैर करते हैं।  जिन ऐसे व्लॉगरों के वीडियो हम यूट्यूब माध्यम पर नियमित देखते हैं उनमें पहला नाम वीजा टू एक्सप्लोर के हरीश बाली का लिया जा सकता है। 

हरीश बाली की विशेषता यह है कि वह जिस क्षेत्र में जाते हैं वहां के समूचे परिवेश पर उनकी नजर रहती है। वहां के स्थानीय खानपान के अलावा वहां के ऐतिहासिक महत्व, वहां की लोककलाएं, प्राकृतिक सौंदर्य, इतिहास और पर्यटन को वे समग्रता से शामिल करने की कोशिश करते हैं। इसके लिए आवश्यकता होने पर गाइड की सेवाएं लेकर भी वीडियो को असंदिग्धता और प्रामाणिकता मिल जाती है। प्रायः हरीश बाली पर्यटन विभागों के गेस्ट हाउसों या उनके द्वारा संचालित होटल में ठहरने को प्राथमिकता देते हैं। अन्यथा अन्य होटलों का चयन भी वे सूझबूझ के साथ करते हैं। 

जिस क्षेत्र में वे जाते हैं तो वहां के स्थानीय भोजन का जरूर आनंद उठाते हैं।  छत्तीसगढ़ जाएंगे तो  वहां का भोजन करना पसंद करेंगे, उड़ीसा में जाएंगे तो उड़ीसा के स्थानीय परंपरागत, वहीं का बना, उन्हीं से बनवाया हुआ भोजन खाएंगे।  मध्यप्रदेश के पचमढ़ी और कान्हा अभ्यारण्य की यात्रा में उन्होंने इसी तरह का भोजन किया।  स्थानीय ग्रामीणों के हाथों का बना भोजन किया। अपने दर्शकों को वे उस भोजन के जायके और उसमें प्रयुक्त सामग्री से भी बखूबी परिचित करवाते जाते हैं। स्थानीय स्ट्रीट फूड का जायका तो हरेक पर्यटक या व्लॉगर लेता ही है। बाली भी ऐसे वीडियो बनाते हैं। जोधपुर की कचोरी प्रसिद्ध है तो वहां कचोरी खाएंगे अगर कहीं का गुलाब जामुन या पेठा मशहूर है तो उसका आनंद भी उठाना ही है।  इंदौर का पोहा जलेबी, गराडू और भुट्टे का कीस कैसे छोड़ा जा सकता है। 

ट्रेवल व्लॉगरों के वीडियो में खानपान के दृश्यों को देखने में भी बड़ा आनंद आता है।  इसी तरह से डेली मैक्स जैसे विदेशी ब्लॉगर तो मुंबई या अहमदाबाद से केवल इंदौर में रात्रिकालीन सराफा बाजार के खाऊ बाजार के स्वादिष्ट स्वाद के लोभ में ही उड़े चले आते हैं। फिर छप्पन दुकान और इंदौर के अनेक खाऊ ठिए उन्हें तीन चार दिनों तक बांधे रखते हैं।   हालांकि ये लोग ट्रेवल ब्लॉगर हैं  लेकिन अपने वीडियो में खान-पान को भी बहुत महत्व देते हैं। यह सब देखते हुए  दर्शक न सिर्फ भारतीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय व्यंजन संस्कृति से परिचित हो पाते हैं।  

राजस्थान के बंसी बिश्नोई जो बहुत अच्छे ट्रेवल ब्लॉगर हैं, जब चीन का दौरा करते हैं, तो उनको दो दिन तो समझ में ही नहीं आता है कि शाकाहारी भोजन कहां व कैसे मिलेगा।  उन्हे बहुत परेशानी होती है तो मुंह से शब्द निकल जाते हैं, घर से जो भाभी ने लाडू (लड्डू) बनाकर साथ में रखे हैं उनसे ही काम चलाऊंगा। देखते हुए अच्छा लगा कि ये लोग भी घर की बनी चीजें अपने साथ रखकर चलते हैं। हमारे यहां तो यह परंपरा रही है कि  लंबी यात्रा पर जाने से पूर्व लिट्टी, परांठे, थेपले, पूरियां साथ में मां अवश्य बांध ही दिया ही करतीं थीं। कुछ ब्लॉगर लोग अपने दो-तीन दिन के नाश्ते का सामान घर से साथ में ले कर निकलते हैं। मुझे याद है हमारी दादी दूध में गूंथे आटे की रोटियां और कैर सांगली की सब्जी यात्राओं के समय साथ लेकर चलती थीं, ये चीजें अधिक समय तक खराब नहीं होती हैं। भारतीय व्लॉगरों को भी ऐसा करते देख हम अतीत में पहुंच जाते हैं। नीदरलैंड के हमारे प्रिय सौरव और मेघा (देसी कपल ऑन द  गो ) भी वेजिटेरियन हैं और खानपान के मामले में  कई बार इनको बहुत दिक्कत आती हमने देखी है। ये लोग सबसे पहले सर्च करते हैं कि भारतीय रेस्टोरेंट कहां है, शाकाहारी खाना कहां मिलता है।  तो वहां जाकर खाते हैं, और जब वहां भी कुछ नहीं मिलता है तो मैंने उन्हें यह भी कहते सुना कि अब तो हॉस्टल जाकर अपने को थेपले ही निकालना पड़ेंगे। गुजराती थेपला, और उसके साथ दही और दूध तो हर जगह मिल ही जाता है। तो इससे काम चलाते हैं।  

वैसे समूची दुनिया में जितने रेस्टोरेंट है उनमें थोड़े प्रयास से हमको भारतीय खाना मिल ही जाता है, भारतीय कुक और खानसामें  मिल जाते हैं। भारतीय भोजन और रेस्टोरेंट काफी लोकप्रिय भी हैं।  कई वीडियो में देखा कि ज्यादातर शाकाहारी भोजन बनाने वाले कुक उत्तराखंड से आते हैं, कुछ नेपाल, बांग्ला देश और पाकिस्तान के भी मिल जाते हैं, हमारे साउथ इंडियन भाई  भी वहां भारतीय भोजन पकाते खिलाते मिलते हैं। 

विदेशी धरती पर भूख से व्याकुल किसी भारतीय को दाल मखानी, राजमा चावल, पालक पनीर, पकौड़ा कड़ी और छोला पूरी मिल जाए तो और क्या चाहिए! भोजन जो हम चाहें,कीमत जो तुम चाहो। 

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ब्रजेश कानूनगो 

 

साइकिल पर सवार घुमक्कड़ का खानपान

साइकिल पर सवार घुमक्कड़ का खानपान 


हर व्यक्ति की कुछ नैसर्गिक जरूरतें होती हैं। वह आप हम जैसा सामान्य व्यक्ति हो या सार्वजनिक क्षेत्र का कोई विशिष्ठ व्यक्ति, नेता, अभिनेता ही क्यों न हो, रोजमर्रा के कुछ कार्य तो करना ही होते हैं। घुम्मकड़ और पर्यटक भी इनसे अलग नही होते बल्कि इन्हे तो थोड़ी अधिक ही परेशानियों का सामना करना पड़ता है।   

जीवन का अधिकतम समय यात्रा, घुम्मकड़ी और पर्यटन में गुजार देने वाले दुस्साहसी ट्रैवल व्लॉगर इन सबके बीच हमारे लिए वीडियो भी बनाते हैं और दुनिया के खूबसूरत नजारों, जनजीवन के दृश्यों को हमारे टीवी, मोबाइल स्क्रीन तक पहुंचा देने का कार्य करते रहते हैं।  उन्हे देखते हुए उनके अनुभव हमारे अनुभव में बदलते जाते हैं।यह एक तरह से ब्लॉगर का रचनात्मक योगदान ही कहा जाएगा।  

घुम्मकड़ को भी अपनी यात्रा और प्रवास के दौरान भूख सताती है, अपने को स्वच्छ और स्वस्थ बनाए रखना होता है। विदेशों में घुम्मकड़ी के दौरान खासतौर से शाकाहारी लोगों को समस्याएं आना बहुत स्वाभाविक है। चीन और कई साउथ एशियन देशों में तो हमारे यहां का सामिष याने नॉन वेजिटेरियन व्यक्ति भी मुश्किल में पड़ जाता है। अनेक जीवों से बनाए भोजन की कल्पना से ही सिहरन होने लगती है। अनेक घुम्मकड़ भारतीय रेस्टोरेंट ढूंढते हैं सर्च करते नजर आते हैं।  

जो साइकिल से घुम्मकड़ी करते हैं वे खाने का प्रबंध कैसे करते हैं,  उसके बारे में चर्चा करना बड़ा दिलचप होगा।  विश्व साइकिल यात्री साइकिल बाबा जिनका वीडियो हम देखते हैं अब तक 109 देशो की यात्रा साइकिल से कर चुके हैं। साइकिल चलाते हुए अगर रास्ते में कुछ साधन नहीं मिलता है तो सामान्यतः वे सड़क के किनारे अपना कैंपिंग कर लेते हैं, चाहे पेट्रोल पंप पर हो या कोई कैंपिंग एरिया अपना तंबू तान लेते हैं। अपने साथ में एक छोटा सा फोल्डिंग स्टोव रखते हैं, जो गैस के छोटे से गैस सिलेंडर से जुड़ जाता है। ट्रेवलर्स इसे अच्छी तरह जानते हैं, बहुत आम है। इस पर आप अपना खाना पकाना कर सकते हैं। साइकिल बाबा भी एक बर्तन रखते हैं,  कुछ ऐसी सामग्री अपने साथ रखते हैं जो रेडी टू ईट होती हैं। सब्जियां, चाय,काफी पाउच,मैगी कुछ फल भी साथ होते हैं उनके। उनकी साइकिल पर पानी की बोतलें लगाने के लिए व्यवस्था होती है। रास्ते के पेट्रोल पंप से जहां स्टोर होता है या किसी सुपरमार्केट से अपने खाने पीने का सामान थोड़ा-थोड़ा खरीद कर रखते हैं, अगले पड़ाव तक के लिए उतना ही होता है यह सब। किसी ओट के सहारे हवाओं से बचते हुए वहीं सड़क किनारे या कैंपिंग स्थान पर वहीं पर अपना खाना पकाते हैं, और खा लेते हैं। यह सब उन्हे करते हुए देखना भी बड़ा अच्छा लगता है।  थोड़े आराम के बाद या अगली सुबह फिर आगे की यात्रा पर निकल पड़ते हैं, अपनी धन्नो साइकिल पर तिरंगा लहराते हुए। 

वे कभी होटल में भी ठहर जाते हैं, कोई होम स्टे भी मिल जाता है, हॉस्टल की डोरमेट्री का भी उपयोग कर लेते हैं। सबसे दिलचस्प तो यह होता है कि पूरे विश्व में उनके भारतीय प्रशंसक और सब्सक्राइबरों का आतिथ्य उन्हे मिल जाता है। कई बार वे उन भारतीयों के परिवारों, दोस्तों के साथ भी खूबसूरत लम्हों को जीते हैं। दोस्तों के घर पर चार-पांच दिन भी रह लेते हैं। उनके साथ स्थानीय भ्रमण करते हैं, उन्ही लोगों के घर उनके साथ ही भोजन करते हैं।  यह देखकर बहुत अच्छा लगता है कि जब वह वहां से अगले पड़ाव के लिए यात्रा शुरू करते हैं तब मेजमान परिवार उनके साथ यथोचित भोजन भी साथ पैक करके देता है। वही पराठे,खिचड़ी या अन्य पकवान जब रास्ते में कहीं रुककर खोलते हैं तब जिस आत्मीयता से मेहमान परिवार को याद करते हैं तो बड़ी मार्मिक अनुभूति होती है।  बहुत अच्छा लगता है यह देखना कि भारतीय लोग पूरे विश्व में किस तरह से फैले हुए हैं और किसी भारतीय साइकिल यात्री का जिस प्रकार स्वागत सम्मान करते हैं, वह सचमुच देखने लायक होता है, मन को भिगो देता है।  

अफगानिस्तान, ईरान या इस तरह के अन्य देशों में जब विश्व साइकिल यात्री अपनी साइकिल से किसी हाईवे से गुजर रहे होते हैं तो अनेक कार या ट्रक चालक अपने वाहन रोक कर उनके पास चले आते हैं। बहुत से ट्रक चालक साउथ एशियन देशों के हमारे बंधु भी होते हैं जो थोड़ी थोड़ी हिंदी, उर्दू और भारतीय भाषाओं को समझते हैं, धन्नों पर तिरंगा लहराते देख साइकिल यात्री के स्वागत में प्रफुल्लित इन अजनबियों से मुलाकात गदगद कर देती है।  कोई अफगानिस्तान का होता है, कोई पाकिस्तान का होता है, बांग्लादेश का होता है कोई म्यामार का भी। जो एक दूसरे की भाषा नही जानते समझते वे भी बड़ी आत्मीयता से मिलते हैं। 

सबसे दिलचस्प तो तब होता है वे ट्रक ड्राइवर साइकिल यात्री को अपने ट्रक के पास ले जाते हैं, ट्रक में बने एक विशेष दराज को खोलते हैं तो पूरा किचन टेबल बाहर निकल आता है जहां पूरी रसोई का सामान सजा होता है। उसी पर खाना पकाना होता है और साइकिल बाबा को भी पेश किया जाता है। 

सड़क से गुजरते सद्भाव से भरे कार चालक और शुभचिंतक पानी की बोतलें और स्वल्पाहार उन्हे ऑफर करते हैं। जरूरत होती है तो वे स्वीकार लेते हैं, जरूरत नहीं होती तो धन्यवाद और मुस्कुराते हुए शुभकामनाएं व्यक्त कर देते हैं।
 
मुस्कुराहट, सद्भाव और सौहार्द्र की भाषा तो समूची पृथ्वी पर सब जानते ही हैं, साइकिल बाबा को जो निश्छल प्रेम मिलता है यह देखना सचमुच अद्भुत आनंद से हमें लबालब कर देता है। यूट्यूब पर साइकिल बाबा के नाम से उनका ट्रेवलॉग चैनल है जिसको देखते हुए हम भी कुछ हद तक उनके हमसफर बन जाते हैं और दुनिया के खूबसूरत लोगों और नजारों के  मानस साक्षी बन जाते हैं।  

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ब्रजेश कानूनगो

Monday, 22 July 2024

जीवित ज्वालामुखी और लावा पर कैंपिंग

जीवित ज्वालामुखी और लावा पर कैंपिंग 

स्कूल के शुरुआती दिनों में याने प्राथमिक, माध्यमिक कक्षाओं के समय हर साल भूगोल विषय की किताबों में पृथ्वी की उत्पत्ति से लेकर इसकी संरचना,वनस्पति, महासागरों, नदियों,पहाड़ों, प्राकृतिक  घटनाओं आदि के बारे में पढ़ाया जाता था। सातों महाद्वीपों के आकार प्रकार, विभिन्न महासागरों की विशालता और गहराई के बारे में समझाया जाता था। हरेक की जलवायु और उनकी भिन्न प्रकृति की जानकारी दी जाती थी। इसके लिए हम लोग पुस्तक विक्रेता से एक एटलस याने मानचित्रों की एक पुस्तक भी खरीद लाते थे, जिसमे इन्ही सब बातों को सचित्र दर्शाया गया होता है।

इसी दौर में हमने भूगर्भीय हलचलों के बारे में पढ़ा। भूकंप और ज्वालामुखियों के बारें में पढ़ते हुए बहुत रोमांचित हो जाते थे। ऐसी घटनाएं हमारे लिए उस वक्त अजूबा होती थीं। किस तरह धरती कांपती है और किस तरह जनजीवन अस्त व्यस्त हो जाता है। समाचार पत्रों में कभी कुछ पढ़ने को मिल जाता था तो अनुमान लगाकर काल्पनिक ताल मेल बैठाने की कोशिश करते थे। लेकिन जब से दूरदर्शन या टीवी आया तब से नई पीढ़ी ने उसके जीवंत दृश्यों को स्क्रीन पर साक्षात देखा है। ज्वालामुखी कैसे होते हैं, किस तरह वे लावा उगलते हैं, यह सब नई पीढ़ी के साथ साथ उम्रदराज लोग भी अब इंटरनेट के माध्यम से साक्षात देख पाते हैं।

प्राकृतिक प्रकोप से सुरक्षित भूभाग के आम लोगों के लिए भी भूकंप, सुनामी और ज्वालामुखी की भयानक घटनाएं अब कल्पना और अनुमान की बातें नहीं रहीं।  आधुनिक टेक्नोलोजी की बदौलत इनसे हुआ विध्वंस, प्रभाव और खौफनाक मंजर अब सबकी आंखों के सामने घटित होता नजर आता है। अब तो मनुष्य समाज को इतनी सुविधाएं प्राप्त हो गईं है कि वह ज्वालामुखी फटने जैसी खौफनाक घटना को भी भौतिक रूप से घटना स्थल के सामने खड़े होकर अपनी आंखों से देख सकता है। ज्वालामुखी तक पहुंचने के लिए अब पर्यटन व्यवस्थाएं भी काफी चलन में आ गईं हैं।

जीवित ज्वालामुखी पर्यटन कोई नई बात नहीं रही है। कई शताब्दियों से सक्रिय ज्वालामुखियों की कष्ट साध्य यात्रा करते रहे हैं। वर्तमान समय में भी हर साल लाखों पर्यटक सक्रिय और निष्क्रिय ज्वालामुखियों को देखने जाते हैं। वे इनकी भयानकता के बावजूद इसके शानदार नज़ारे देखना चाहते हैं। वे ज्वालामुखी पर्वतों के पास के खूबसूरत सूर्योदय और सूर्यास्त का आनंद लेना चाहते हैं। विस्फोटों और धधकते लावा के बहाव को अनुभव करते हुए उसकी शानदार तस्वीरें दुनिया के अन्य लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।

कई देसी विदेशी घुम्मकड़ों,पर्यटकों  को ऐसा करते हमने यूट्यूब पर अनेक ट्रेवल विडियोज में देखा है कि वे किस तरह ऐन ज्वालामुखी की तलहटी तक पहुंचते हैं, कैंप में सोते हैं और विस्फोटों के समय उन दृश्यों को देखते हैं और कैमरों में कैद कर लेते हैं। विडियोज बनाते हैं। 

इसी वर्ष (2024) के मार्च की एक खबर पढ़ी थी कि आइसलैंड के दक्षिणी हिस्से में ज्वालामुखी फटने के बाद वहां आपातकाल की घोषणा कर दी गई। इससे पहले इस यूरोपीय देश के रेकजेन्स प्रायद्वीप में बीते साल दिसंबर 2023 के बाद यह चौथा ज्वालामुखी विस्फोट था। इसी बात से इसकी भयावहता का अनुमान लगाया जा सकता है कि ज्वालामुखी से निकला लावा पास के कस्बे ग्रिंडाविक  तक पहुंच गया और उसको खाली करवा लिया गया। इसके अलावा पर्यटकों की पसंदीदा जगह ब्लू लगून के पास मौजूद लोगों को भी वहां से हटाकर सुरक्षित जगह पहुंचाया गया। ज्वालामुखी से निकलने वाला लावा दो या अधिक धाराओं में अलग-अलग दिशाओं में बहने लगता है। स्थानीय प्रशासन को हमेशा अपने नागरिकों और पर्यटकों की चिंता बनी रहती है।

सामान्य जानकारी हेतु यहां बताना उचित होगा  कि आइसलैंड में 33 सक्रिय ज्वालामुखी हैं। यह देश मिड-एटलांटिक रेंज पर है जहां पृथ्वी की दो सबसे बड़ी टेक्टोनिक प्लेट्स मिलती हैं। पूरी पृथ्वी पर लगभग 1500 से ज़्यादा सक्रिय ज्वालामुखी हैं। हर साल लगभग 50-70 ज्वालामुखी फटते हैं। यूरोप में 82 ज्वालामुखी हैं और इनमें से 33 आइसलैंड में हैं। भारतीय भूभाग में दो ज्वालामुखी हैं, पहला, बैरन ज्वालामुखी जो बैरन द्वीप अंडमान निकोबार दीप समूह में मध्य अण्डमान के पूर्व में स्थित है तथा दूसरा, नारकोंडम ज्वालामुखी जो अंडमान निकोबार द्वीप समूह के उत्तर अण्डमान के पूर्व में है। बैरन ज्वालामुखी को सक्रिय या जागृत ज्वालामुखी माना गया है।

बहरहाल, यहां बात ज्वालामुखी पर्यटन की ही करते हैं। इन क्षेत्रों में कई ट्रेवल कंपनियां हैं जो पर्यटकों को ज्वालामुखी पर्यटन कराती हैं, जिनमें उनको वहां तक ले जाना, खाने पीने की व्यवस्था करना, गाइड के नेतृत्व में ट्रेकिंग करवाना आदि शामिल होता है। यह सुरक्षित तो होता है लेकिन बहुत थका देने वाला भी। यूट्यूब माध्यम से हमने आइसलैंड और इथोपिया के कुछ जीवित ज्वालामुखियों पर दीपांश, शुभम, बंसी वैष्णव तथा कुछ अन्य विदेशी पर्यटकों के व्लॉगरों के वीडियो से यहां की रोमांचक यात्रा का मानस अनुभव लिया है। 

इथोपिया के ट्रेवल एजेंसी के लोग इन पर्यटकों को शक्ति शाली एस यू वी गाड़ियों से रेतीले मरुस्थल से होकर एर्टा ऐल ज्वालामुखी की तलहटी तक ले जाते हैं। यहां गिट्टियों की तरह का पुराना काला लावा बिखरा होता है जिसे समतल करके ट्रेवल एजेंसियों ने यहां खाने पीने की व्यवस्था लगाई होती है। रात को यहीं पर गाड़ियों पर लाद कर लाए गए गद्दों को बिछा दिया जाता है। हरेक पर्यटक की अलग रजाई, कंबल, बिस्तर होता है। ठंडे लावे के फर्श पर किसी धर्मशाला में ठहरे बारातियों की तरह सेवाएं की जाती हैं। कैंप क्षेत्र से रात भर विस्फोटों की आवाजें अवश्य सुनाई देती हैं किंतु ज्वाला और आग के दर्शन नहीं होते यहां से।

सुबह तड़के कोई चार बजे ज्वालामुखी के मुहाने के करीब पहुंचने का ट्रेकिंग शुरू हो जाता है। थोड़ी देर में ताजा निकला लावा दिखाई देने लगता है। यह कोई एकाध महीने पूर्व का लावा है। पैर रखने पर चटकने लगता है। कुछ यात्रियों के पैर भी जख्मी हो जाते हैं। कष्ट की कोई परवाह नहीं है। जीवित ज्वालामुखी को देखने का असीम उत्साह थकने नही देता, पीड़ा की अनुभूति नहीं होती। यही नजारा आइसलैंड के ज्वालामुखी पर्यटन का है।

थोड़ा और आगे पहुंचने पर अंधेरे में लाल लाल चमकती धाराएं नजर आने लगती हैं। ये बहते गर्म लावा की धाराएं हैं, जिनमे अंगारे बह रहे हैं। थोड़ा और आगे बढ़ने पर ज्वालामुखी पर्वत नजर आते हैं, आग उगलते दानव की तरह। धरती ने अपना मुंह खोल दिया है। चिंगारियां बरस रही है। पहाड़ के मुख से गर्म लावा कई धाराओं बहकर नीचे की ओर बहुत धीमी गति से कोई 20 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चला आ रहा है। गनीमत है पर्यटक ऊपर पहाड़ पर हैं।

थोड़ा और आगे ताजा दो तीन दिन पुराना लावा है अभी ठंडा नहीं हुआ है। जैसे सिगड़ी के भीतर अंगारों की आंच अभी बाकी है। आइसलैंड में बच्चो के साथ आया पर्यटक परिवार इन अंगारों पर अपने साथ लाए सींक टिक्के को गर्म करता है। अपने साथियों को भी देता है। यह अद्भुत है रोमांचक है। टीवी स्क्रीन पर हम आंखें गढाए इन बच्चों को आग के पास नहीं जाने की, उससे नहीं खेलने की चेतावनी देते लगते हैं। लेकिन वे सुरक्षित हैं, अब तक शायद घर भी लौट आए होंगे, तभी तो हम यह वीडियो देख पा रहे हैं।

जीवित ज्वालामुखी के इतने करीब पहुंच कर हम तक इन विडियोज को पहुंचाने के लिए आभार के साथ शुभकामनाओं के अलावा हमारे पास देने के लिए इससे बेहतर और क्या हो सकता है।


ब्रजेश कानूनगो

Saturday, 20 July 2024

क्या है यह रेनबो गैदरिंग !

क्या है यह रेनबो गैदरिंग !

प्रसिद्ध घुम्मकड़ गैब्रियल ट्रेवलर का एक ट्रेवल व्लाग उनकी यूट्यूब चैनल पर देख रहा था। गैब्रियल बहुत सालों से लगभग बीस पच्चीस वर्षों से दुनिया की सैर कर रहे हैं और ट्रेवल वीडियो बना रहे हैं। उन्होंने कई देशों की कई कई यात्राएं की हैं।  अपने देखे घूमें स्थानों पर वे बरसों बाद पुनः यात्रा पर आते हैं और स्थितियों और दृश्यों में आए परिवर्तनों का विश्लेषण भी बहुत प्रभावी रूप से करते हैं। उत्तर भारत की देवभूमि उत्तराखंड, उत्तर के हिमालयीन सौंदर्य के अलावा नेपाल आदि में पैदल भ्रमण करते हुए उनकी बातचीत बहुत प्रभावी और दिलचस्प रही है। हाल फिलहाल में उन्होंने मध्यप्रदेश के मांडू, ओंकारेश्वर, महेश्वर और उज्जैन की यात्राएं की हैं। मांडू में उनको ऐसे स्थानों पर हमने साइकिल से भ्रमण करते देखा जहां हम जैसे स्थानीय पर्यटक भी नही गए होंगे। पर्यटन में देखने समझने और उनकी व्याख्या से हमे भी नई दृष्टि या नजरिया मिलता है।

पिछले दिनों इन्ही का एक वीडियो देख रहा था जिसमे गैग्ब्रियल यूनाइटेड स्टेट के नॉर्थ केलीफोर्निया में एक पर्वत पर ट्रैकिंग कर रहे थे।  हमेशा की तरह चलते चलते हाथ में कैमरा थामे वीडियो बनाते हुए बातचीत भी करते जा रहे थे। उनकी बातों में मुझे एक नया शब्द मिला, वह था, रेनबो गैदरिंग। उसके बारे में वे बताते भी जा रहे थे।

रेनबो गैदरिंग ( इंद्रधनुषी सभा) के बारे में मैं पहली बार ही सुन रहा था। वह किसी दिन के गैदरिंग की बात कर रहे थे,  2014 के गैदरिंग की यादें ताजा कर रहे थे।  पगडंडियों के रास्ते पर्वत पर चढ़ते  भी जा रहे थे और यह बताते भी जा रहे थे कि 2014 में किस तरह इसी पर्वत पर वे आए थे और गैदरिंग में हिस्सा लिया था। उनके परिवार के कुछ सदस्यों ने इसमें हिस्सा लिया था।  जिसके कुछ चित्र भी उन्होंने में वीडियो में बताए। इस तरह जब मुझे रेनबो गैदरिंग के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई तो मैंने कुछ जानकारी जुटाई।

दरअसल रेनबो गैदरिंग को घुम्मकड़ प्रकृति के जागरूक लोगों का एक सम्मेलन कहा जा सकता है।  इसमें  शांति, सद्भाव, स्वतंत्रता और सम्मान भाव में विश्वास रखने वाले लोग जंगलों, पहाड़ों के बीच इकट्ठा होते हैं, मिलते-जुलते हैं और कुछ दिन के लिए कैंपिंग करते हैं। सबसे पहले इसकी शुरुआत संयुक्त राज्य अमेरिका के नॉर्थ कैलिफोर्निया में हुई थी। अब ये आयोजन दुनिया के अन्य देशों में भी किए जाने लगे हैं।  रेनबो गैदरिंग परिवार एक तरह से स्वैच्छिक आधार पर बना समूह होता है। एक सप्ताह, दो सप्ताह वहीं निवास करते हैं, कैंप लगाते हैं।  सामान्यतः पहाड़ों, जंगलों के बीच स्थित झील के किनारे को इस आयोजन के लिए चुना जाता है। आयोजन की सूचना समुदाय के लोगों को काफी समय पूर्व ही हो जाती है।

इसकी एक बड़ी विशेषता यह है कि इसमें लोग आपस में बातचीत करते हैं, बातचीत के सत्र होते हैं। इसके अलावा मानव श्रृंखलाएं बनती हैं, ट्रैकिंग होता है, गीत होता है, संगीत होता है, कैंप फायर होता है, कला चर्चाएं और प्रस्तुतियां होती है। इस एकत्रीकरण में एक उल्लेखनीय  बात यह होती कि इस आयोजन में शराब सेवन से दूरी बनाए गई है। यद्यपि कहा जाता है कि कुछ नशीले पदार्थों या ड्रग्स वगैरा का सेवन अब होने लगा है। कुछ लोग इन्हें बूढ़े हिप्पियों का समूह भी आरोपित करते रहे हैं, कुछ इसे होपी लोगों की मान्यताओं से प्रेरित भी बताते हैं किंतु ऐसा नहीं माना जा सकता। अपने को मानव जाति के बच्चे और भाई बहन कहने वाले रेनबो परिवार में ऐसे अच्छे लोग होते हैं जो मनुष्य के हितों से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करते हैं, वातावरण बनाते हैं। सांस्कृतिक चर्चा के साथ इसमें धर्म से जुड़े कुछ लोग भी शामिल होते हैं।

उत्तरी अमेरिका के नॉर्थ कैलिफोर्निया में 1 जुलाई 1972 को इसका पहला आयोजन हुआ था। उसके बाद तो हर साल यह होते हैं।  अब ये आयोजन अमेरिका से बाहर भी होने लगे हैं।  मैंने कहीं पढ़ा था कि भारत के उत्तरीय इलाके में भी कहीं यह हुआ था।

मुझे अच्छा लगा कि लोग इस तरह इकट्ठा होते हैं। हमारे यहां कुछ इसी तरह सुरम्य और शांत स्थानों पर साहित्यिक या वैचारिक मंथनों के लिए शिविरों के आयोजन होते रहे हैं। पहाड़ों के बीच में भी होते हैं। 

इस आयोजन के कुछ नकारात्मक पक्ष भी हैं।  वन्य सेवाओं और वन विभाग की दृष्टि में ये आयोजन ठीक नहीं है। जंगलों के बीच इन आयोजनों का दुष्प्रभाव प्रकृति पर पड़ता हैं, प्राकृतिक संपदा पर पड़ता है, वनों पर पड़ता हैं।   समय के साथ इसमें धीरे-धीरे बुरे लोग,अपराधी लोग,नशेड़ी लोग भी किसी तरह से घुसपैठ जमाने लगे हैं। इसके भी बुरे परिणाम दिखाई देने की आशंकाएं बड़ गई हैं। रेनबो परिवार की  मूल भावना में उपभोक्तावाद, पूंजीवाद और मीडिया से अधिकतम मुक्त रहने का विचार रहा था, लेकिन अधिक लोगों को आकर्षित करने के उपक्रम में धीरे-धीरे इन चीजों का भी इसमें समावेश होता गया है। 

मैं जानता हूं कि यह सब बातें बहुत लोगों  को ज्यादा अच्छी तरह मालूम होगी।  इंटरनेट पर भी सब कुछ उपलब्ध है लेकिन मेरा उद्देश्य मात्र इतना है कि लोग इस तरह की नई चीजों को भी जानें  और दुनिया को देखने समझने के प्रयास में थोड़ा सा नवोन्मेष तरीका भी अपनाते रहें।  हमारे आसपास से हटकर भी एक दुनिया है जिसमें बहुत सारा अभी भी हमसे अंजाना बचा हुआ है।

ब्रजेश कानूनगो

Friday, 19 July 2024

मंगोलिया का गोबी रेगिस्तान

मंगोलिया का गोबी रेगिस्तान

 

नोमेडिक इंडियन के दीपांशु और नोमेडिक शुभम के शुभम के साथ हमने यूट्यूब वीडियो के माध्यम से विश्व के पांचवे सबसे बड़े रेगिस्तान में से एक गोबी रेगिस्तान की रोमांचक यात्रा की है।

गोबी रेगिस्तान है कहां ? दरअसल यह विशाल गोबी रेगिस्तान पूर्व और मध्य एशिया में लैंडलॉक देश मंगोलिया में स्थित है। उत्तर में रूस,दक्षिण पूर्व और पश्चिम में चीन से घिरा है। देश की कुल जनसंख्या के 38 प्रतिशत लोग राजधानी उलान बटोर में निवास करते हैं।  पूर्व दिशा में मात्र 38 किलोमीटर दूर खूबसूरत कजाकिस्तान  स्थित है। 

ऐतिहासिक योद्धा चंगेज खान का नाम तो आपने जरूर सुना होगा। मंगोल साम्राज्य के विस्तार में उसकी बड़ी जबरदस्त भूमिका रही है। घुमंतू जाति के इस व्यक्ति ने अन्य घुमंतू जातियों को एकजुट करके सत्ता हासिल की थी। अपनी अद्भुत संगठन क्षमता, असीम शक्ति और बर्बरता के लिए विख्यात, कुख्यात चंगेज अपने बड़े साम्राज्य विस्तार के लिए जाना जाता है। मंगोल साम्राज्य ने मध्य एशिया और चीन के महत्वपूर्ण हिस्सों पर उसके नेतृत्व में कब्जा कर लिया था। सन 1221 से 1327 के दौरान मंगोल साम्राज्य ने भारतीय उपमहाद्वीप पर भी आक्रमण किए थे। इल्तुतमिश के शासनकाल के दौरान चंगेज खान के अधीन मंगोल साम्राज्य ने भारत पर बहुत से आक्रमण किए थे। 

ऐसा नहीं है कि चंगेज खान ने सिर्फ बर्बर काम ही किए,बहुत से अच्छे काम भी उसके शासन में होते रहे। लेखन पठन के लिए विशेष उईधूर लिपि को अपनाया उसका विकास किया। धार्मिक सहिष्णुता को प्रोत्साहित करने के प्रयास किए। जो विश्व प्रसिद्ध सिल्क रूट था, जो एक ऐतिहासिक व्यापार मार्ग रहा है, जिसका उपयोग दूसरी शताब्दी से 14 वीं शताब्दी तक मुख्यरूप से हुआ करता था, एशिया से लेकर भूमध्य सागर तक इसका विस्तार था, तथा चीन, भारत, फारस,अरब, ग्रीस और इटली से होकर गुजरता था, उस समय इसमें ज्यादातर रेशम का व्यापार होता था इसलिए उसे सिल्क मार्ग कहा गया था तो इस सिल्क मार्ग को राजनीतिक तौर पर संचार व व्यापार हेतु एकरूपता और स्वीकार्यता देने में भी चंगेज खान को याद किया जाता है। उसने यह एक बड़ा अच्छा काम किया था। 

सोलहवी सत्रहवीं शताब्दी में मंगोलिया तिब्बतीय बौद्ध धर्म के प्रभाव में आया। सन 1911 में किंग राजवंश के पतन के साथ मंगोलिया ने अपने को स्वतंत्र देश घोषित किया और 1945 में लंबे इंतजार के बाद इसे संपूर्ण अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिल गई। अब यह एक संसदीय गणराज्य है।

बहरहाल, जहां तक हमारी गोबी रेगिस्तान की यात्रा का सवाल है, जब हमने अपने प्रिय ब्लॉगर्स के माध्यम से अनुभव किया तो आगे और चीजों को जानने समझने की उत्कंठा और बढ़ती गई। 

मंगोलिया के बारे में एक बात और प्रसिद्ध है कि यहां की संस्कृति भारत के बहुत करीब है। भारत से कई बौद्ध धर्माचार्य  और यात्री छठवीं शताब्दी से ही मंगोलिया का भ्रमण करते रहे। यहां संस्कृत का इतना प्रभाव है कि यहां का राष्ट्रीय ध्वज 'स्वयंभू ' कहलाता है स्थानीय भाषा में इसको सोयुंब कहते हैं। यहां आयुर्वेद का प्रचलन है। महीनो के नाम भी और दिनों के नाम भी भारतीय संस्कृति से निकलकर आते हैं। सोमवार को सोमिया ,रविवार को आदित्यवार, मंगलवार के लिए संस्कृत में अंगारक शब्द है, बुधवार को बुद्ध, ब्रीहसपत गुरुवार के लिए, शुक्र शुक्रवार के लिए, साचिर शनिवार के लिए। यहां के बौद्ध विहारों में अनेक भारतीय पुस्तकों, संस्कृत के ग्रंथों, श्लोक और मंत्रों को खूब देखा, पढ़ा व सुना जा सकता है। भारतीय महापुरुषों के प्रति यहां बहुत आदर और सम्मान है।

गोबी रेगिस्तान मंगोलिया में तो स्थित है लेकिन इसका विस्तार चीन और मंगोलिया दोनों तक फैला हुआ है। यह एक ऐसा रेगिस्तान है जिसकी गिनती ठंडे रेगिस्तानो में की जाती है। यहां का तापमान शून्य से नीचे माइनस 40 डिग्री तक गिर जाता है।  मंगोलियन भाषा में गोबी का अर्थ जल रहित स्थान होता है। यहां जल बहुत कम है, वर्षा केवल बारिश के कुछ दिनों में ही होती है। 50 से 100 मिली मीटर तक ही बारिश हो पाती है। नदी नाले केवल वर्षा ऋतु में ही थोड़े बहुत पानी भरे दिखाई देते हैं। 

अधिकांशतः  गोबी डेजर्ट रेत की तुलना में चट्टानों से अधिक बना है। यद्यपि हमने जो मानस यात्रा की वह रेतीले गोबी रेगिस्तान की ही दीपांशु और शुभम  ब्लॉगर मित्रों के साथ की। 

कहा जाता है इस पांचवे सबसे विशाल रेगिस्तान में पहले कभी समृद्धशाली भारतीयों की बस्ती हुआ करती थी।  यह  डेजर्ट इतना बड़ा है कि इसको तीन भागों में विभक्त करके देखा जाता है, तकला माकन, अलशान  और ऑर्डिश रेगिस्तान। यहां की आबादी बहुत विरल है। उत्तर और दक्षिण के घास के मैदानों में कुछ जनजातियां निवास करती हैं।  जिस क्षेत्र में जहां पानी है, वहां बकरियां और अन्य पशु पाले जाते हैं। थोड़ी बहुत खेती भी होती है। लेकिन यहां बेकेटेरियन ऊंट (दो कूबड़ वाले) होते हैं, हमारे भारत में जो उंट होते हैं उनसे थोड़ा अलग है , इनके दो कूबड़ निकले होते हैं। कुछ जंगली गधे, विशेष तरह के भालू हालांकि अब यह लुप्त प्रायः हो गए हैं, इस रेगिस्तान में पाए जाते हैं। पत्ती विहीन घास ही सामान्यतः यहां दिखाई देती है जिससे मिट्टी का थोड़ा बहुत क्षरण रुक पाता है।

दीपांशु और शुभम ने इस रेतीले रेगिस्तान की रोमांचक पैदल यात्रा की तो उन्होंने बहुत संघर्ष किया। तेज हवाओं रेतीले तूफानों से बचते बचाते विडियो बनाते हुए उन्होंने यह यात्रा की।  बहुत संघर्ष किया। पानी की बोतले उनकी समाप्त हो गई तो जैसे खुद उनके शरीर रेगिस्तान में बदलते जा रहे थे। मरणासन्न से हो गए थे। रात को ही उनको अंधेरे में कहीं कुत्तों के भौंकने की आवाज भी सुनाई देती है तो वे आश्रय की तलाश में उधर जाते हैं। एक खानाबदोश के घर में उनको थोड़ा सा स्थान मिल जाता है, किसी तरह वे रात बिताते हैं। यह उनकी बहुत अद्भुत यात्रा थी। उनके लोकप्रिय और दर्शनीय वीडियो की सूची में यह सीरीज बहुत याद की जाती रहेगी। इसे बार बार देखा जाता रहेगा।

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ब्रजेश कानूनगो

धरती पर बिखरे इंद्रधनुष

धरती पर बिखरे इंद्रधनुष


सतरंगी इंद्रधनुष केवल आकाश में ही अपनी छटा नहीं बिखेरते। धरती पर भी ऐसे कई स्थान हैं जहां रंगों का मेला लगा है। दुनिया का वह ठंडा प्रदेश हो या उबलता भूभाग, इंद्रधनुष का सौंदर्य मन मोह लेता है। ऐसे ही दो खूबसूरत स्थलों की चर्चा आज यहां करते हैं। 

रेनबो माउंटेन
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जंपिंग प्लेसेस ट्रेवल व्लाग के युवा दंपति के साथ यूट्यूब पर हमने पेरू गणराज्य के विनिकुंका पर्वत की मानस ट्रैकिंग करते हुए खूबसूरत इंद्रधुनुषी चादर को ओढ़े जिस पहाड़ का खूबसूरत नजारा देखा उसे स्थानीय भाषा मे मोंटाना डी सिएट कलर्स कहते हैं। अंग्रेजी में पर्यटक इसे रेनबो माउंटेन के रूप में जानते हैं। हिंदी में इसे इंद्रधनुषी पर्वत कहा जा सकता है।

कुदरत का यह करिश्मा दक्षिण अमेरिका के पश्चिम भूभाग में स्थित पेरू गणराज्य की नैसर्गिक धरोहर है। सामान्यतः पेरू के इस पर्वत के तल पर तापमान 10 डिग्री सेल्सियस रहता है और हम जब इसके शिखर तक पहुंचते हैं तो वहां का तापमान शून्य से कम होकर माइनस पांच से लेकर माइनस दस तक गिर जाता है। धरती पर दूर तक फैले इस अलौकिक सौंदर्य को देखने के लिए पर्यटक को लगभग 2 घंटे में 400 मीटर की खड़ी चढ़ाई या ट्रैकिंग करनी पड़ती है। साल के 12 महीने में से 8 महीने यह रंगीन छटा पर्यटकों का इंतजार करती रहती है। इसी दौरान दुनिया भर के लोग इसका आनंद उठाते रहते हैं। 

रेनबो पर्वत हमेशा से ऐसे नहीं थे।  बहुत पहले ये पर्वत सामान्य पर्वत ही थे जैसे आमतौर पर भूरे,काले दिखाई देते हैं लेकिन धीरे-धीरे इनकी ऊपरी सतह का क्षरण हुआ,मिट्टी हटी तो यह सतरंगी छटा ज्यामितीय रूप से रंगीन पट्टियों की शक्ल में उभर आई। समुद्र तल से लगभग 5200 मीटर ऊपर पहाड़ों पर बिखरा यह सौंदर्य अद्भुत है। इसे देखना अलौकिक अनुभव होता है। निश्चित रूप से इंद्रधनुषीय यह आभा विभिन्न खनिजों की रंगीन सतहों के कारण दिखाई देती है। यूट्यूब पर जंपिंग प्लेसेस के युवा दंपत्ति द्वारा साझा इस खूबसूरत वीडियो में ठंडे क्षेत्र के रेनबो माउंटेन की इंद्रधनुषी छटा ने हमारा मन मोह लिया है। 

डेलोल इथोपिया
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ऐसे ही एक दूसरे रंगबिरंगे नजारे को हमने दुनिया के सबसे गर्म क्षेत्र की धरती पर देखा और रोमांचित हुए। यह इंद्रधनुष भी आकाश में नहीं जमीन पर ही बिखरा पड़ा है।  दुनिया में सबसे ज्यादा गर्म रहने वाले दस स्थानों में से एक है इथोपिया का डेलोल इलाका। इस भीषण गर्म क्षेत्र में रहना, ठहरना या घूमना बहुत मुश्किल होता है।  बारहों महीने बहुत गर्मी पड़ती है। औसत तापमान 45 डिग्री के आसपास बना रहता है, लोग बताते हैं कि कभी कभी अधिकतम 59 डिग्री सेल्सियस तक भी यहां का तापमान पहुंच जाता है।  

पूर्वी अफ्रीका भूभाग के हॉर्न क्षेत्र में इथोपिया एक लैंड लॉक देश है जो सोमालिया, केन्या,सूडान जैसे अन्य देशों से घिरा हुआ है। यह बहुत पिछड़ा देश है किंतु अपने खनिज भंडारों में बहुत समृद्ध है। आर्थिक रूप से बहुत कमजोर है। यहां काफी गरीबी है। डेलोल यात्रा के लिए पर्यटक को गाइड के अलावा एक गनमैन को साथ ले जाना भी अनिवार्य होता है। दरअसल इथोपिया में इसी तरह सुरक्षित पर्यटन करना आवश्यक हो जाता है। 

यद्यपि डेलोल एक बेहद गर्म स्थानो में से एक है लेकिन यह निर्जन नहीं है। कुछ जनजातियां यहां अभी भी निवास करती हैं। इस क्षेत्र की सुंदर छटा को देखने के लिए पर्यटक टूर एजेंसी के साथ ही यात्रा प्रबंधन कर पाते हैं। दरअसल यह समुद्र के सूख जाने के बाद खाली हुआ प्रदेश है, जहां नमक के मैदान हैं। आयरन, जिंक तथा अन्य खनिजों,अयस्कों युक्त मिट्टी तथा नमक के रण  का अनोखा सौंदर्य तब और बढ़ जाता है जब उसमे पीले सल्फर के स्रोत आ मिलते हैं। गर्म उबलते पानी के नीले सोते दृश्य में घुलमिल जाते हैं।  नमक के मैदाने के बीच सल्फ्यूरिक स्रोत से सल्फर की खुशबू आती रहती है। गंधक का पीला रंग फैलता हुआ नीला, पीला, हरा, लाल, केसरिया में बदलता, घुलता मिलता जाता है। यह इंद्रधनुष हम नमक के मैदान के साथ-साथ चलते हुए अनुभव करते हैं। आगे जाकर सल्फर का पूरा स्रोत सुंदरता बिखेरता फैल जाता है। यहां एक झील भी है छोटी सी जिसमें हल्का एसिडिक पानी है। दरअसल यह एक ऐसा सतरंगी दृश्य होता है जिसे देख हम चकित हो जाते हैं।
  
डेलोल की यह रोमांचक मानस यात्रा हमने बहुत प्रिय ब्लॉगर नोमेडिक इंडियन के दीपांशु और नोमेडिक शुभम के शुभम के साथ की थी। हाल ही में हमने फिर से इस स्थान की सैर और उसकी स्मृति को राजस्थान, गुजरात बॉर्डर के निवासी व्लॉगर बंसी वैष्णव के विडियोज के साथ ताजा की। 

धरती पर बिखरे इंद्रधनुष के खूबसूरत नजारे दुनिया में और भी कई रूपों में मिल जाते हैं, कहीं फूलों के रंग हैं तो कहीं पानी के। कहीं मिट्टी, चट्टान, वनस्पति और खनिजों के रंग बिखरकर मन मोह रहे हैं। यही इस धरती का, प्रकृति का मनुष्य जाति को बहुमूल्य उपहार है, इसे सहेजने का दायित्व हमारा ही है। तरीका चाहे जो हो किताबों में, वीडियो में या फिर अपनी स्मृतियों में इसे हमेशा के लिए संग्रहित कर लिया जाना चाहिए।  

ब्रजेश कानूनगो 

Thursday, 18 July 2024

पर्यटन में काउच सरफिंग और हिच हाइकिंग

देखा पढ़ा: 

पर्यटन में काउच सरफिंग और हिच हाइकिंग 


यूट्यूबरों के पर्यटन वीडियो देखते हुए बहुत सारी नई चीजों से परिचय होता रहता है। पर्यटन वृतांत को देखते सुनते हुए नए शब्द और संदर्भ भी मिलते हैं। विषय से संबंधित विशिष्ठ शब्दावली का विकास भी हो जाता है। 
बहुत संभव है मेरे लिए जो नया हो वह दूसरों को शायद उतना नया न भी लगे। इन सब बातों की चर्चा में किसी की अधिक रुचि हो न हो किंतु  मुझे इस तरह बहुत कुछ सीखने समझने को मिल रहा है।  जानकारी इकट्ठी करने में बहुत सा नया पढ़ने को मिल रहा है। 

कैसे कैसे सैलानी
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पर्यटक भी कई तरह के होते हैं। कई तरीकों और साधनों से वे अपनी यात्राओं और पर्यटन का प्रबंधन करते हैं। कुछ ट्रेवलर्स अकेले-अकेले यात्रा करते हैं, पीठ पर एक बैग लादकर सैर को निकल पड़ते हैं। इन्हे सोलो या एकल बैग पैकर्स  कह सकते हैं। कई युवा, प्रौढ़ युगल भी अपने अपने पिट्ठुओं को लादे पूरी दुनिया को नापने निकल पड़ते हैं। कुछ समूहों में यात्रा और पर्यटन करते हैं। पूर्व निर्धारित किसी टूर प्रोग्राम के अंतर्गत एक साथ घूमते हैं, साथ में उनका एक गाइड होता है। जिसकी अगुवाई में पर्यटकों का दल एक साथ दुनिया की खूबसूरती और धरोहरों को निहारता है।  चीन में समूह में पर्यटन करना बहुत लोकप्रिय है, हमारे यहां भी जैसे धार्मिक पर्यटन के लिए कई बार समूहों के लिए ऐसे टूर प्रोग्राम संचालित होते रहते हैं।  
लेकिन हम यहां उन सैलानियों की बात यहां कर रहे हैं जो लगभग बारहों महीने घर से बाहर रहते हुए नित्य पर्यटन पर बने रहते हैं। कुछ पर्यटक अपने परिवार के साथ ट्रैवल करना पसंद करते हैं।  बच्चों के साथ जिसमें पति-पत्नी और उनके बच्चे होते हैं। हमने एक ऐसे ही परिवार के साथ भी मानस यात्राएं करीं जिनका व्लॉग ' बैग्स पैक्ड फैमिली ' के नाम से है, दोनों पति-पत्नी जिनके अलग-अलग उम्र के तीन छोटे-छोटे बच्चे हैं पूरा परिवार मौज मस्ती के साथ घूमता रहता है।  हमें यह समूह बहुत अच्छा लगा इनको हम अक्सर देखते हैं।  कई बार कुछ सोलो ट्रेवलर्स कई स्थानों पर जब मिलते हैं तो कपल ट्रेवलर्स की तरह हो जाते हैं और साथ-साथ यात्राएं करते हैं, अपने अपने अलग वीडियो बनाते हैं। मसलन दीपांशु और शुभम गोबी डेजर्ट में साथ साथ यात्रा करते हैं, उनका साझा संघर्ष देखते ही बनता है। डॉक्टर यात्री के नवांकुर और सेंटी भाई अपने सोलो ट्रैवल तो करते हैं लेकिन यूएसए में कई जगह साथ हो जाते हैं। आगे कभी आपको अंटार्कटिका की यात्रा के संदर्भ में बताऊंगा तब कैसे नवांकुर के साथ एक पंजाबी ट्रेवलर उनके साथ यात्रा करते हैं। ये यात्राएं और अधिक दिलचस्प हो जाती हैं। 

काउच सरफिंग 
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इन्ही विडियोज को देखते हुए पर्यटन क्षेत्र के संदर्भ में दो नए शब्द मिले, एक है ' काउच सरफिंग ' और दूसरा है ' हिच हाइकिंग '। 
ये दोनो टर्म्स या शब्द आपको बहुत बार सुनाई देंगे। दोनों को जान लेना काफी दिलचस्प होगा।  

पहले हम काउच सरफिंग की बात करते हैं। जब हम बहुत छोटे थे, बचपन के दिनों में इलाहाबाद, वाराणसी आदि से हमारे घर एक पंडा जी पधारते थे।  हमारे यहां ही रुकते, बैठक के फर्श पर एक दरी या चटाई बिछाकर दिन में पूजा पाठ करते, दोपहर को नगर भ्रमण को चले जाते। फिर शाम को पूजा पाठ, ध्यान आदि करके उसी चटाई या दरी पर रात्रि शयन करते। खाना पीना खुद अपना बनाते हमारी ही रसोई में। थोड़े दिन बाद वे किसी और मेहमान के यहां अतिथि हो जाते थे।  

पंडा जी के उस प्रवास को आज की पर्यटन भाषा में हम काउच सरफिंग कह सकते हैं।  आमतौर पर  काउच सरफिंग में पर्यटक पूर्व सूचना पर ही आता है। उसको ठहरने का स्थान चाहिए होता है, दैनिक कार्यकलापों के साथ भ्रमण करके आगे निकल जाता है, किसी दूसरे घर की तलाश में, किसी दूसरे मुकाम पर किसी दूसरे होस्ट के यहां।  देश विदेश के ट्रैवलर्स एक दूसरे से संपर्क में रहते हैं और इस तरह से काउच सरफिंग के माध्यम से अपने भिन्न देशों में एक दूसरे के अतिथि होते हैं।  कई बार पूरा-पूरा घर ही होस्ट अपने गेस्ट को सौंप कर चाबी थमाकर निश्चिंतता से अपने काम पर चले जाते हैं। 

काउच सरफिंग, होम स्टे से एक मायने में बिल्कुल अलग है। इसमें मेहमान पर्यटक, मेजमान और उसके परिवार के साथ ही रहता है, उठता,बैठता,खाता पीता है। 

अक्सर मेजबान और मेहमान दोनों अलग-अलग देश के होते हैं,उनकी अलग-अलग भाषा होती है, अलग-अलग खान पान और जीवन शैली होती है तब पर्यटक उनके साथ रहकर नए अनुभव को भी प्राप्त करता है। उसके बनाए वीडियो से हम जैसे दर्शक भी उस अनुभूति से गुजरते हैं। 

पर्यटन के क्षेत्र में इस काउच सरफिंग का महत्व सन 2004 से बहुत बढ़ गया।  उसका कारण यह है कि इस साल एक वेबसाइट लांच हुई थी।  जिसके माध्यम से पर्यटक एक दूसरे के संपर्क में बने रहते हैं। उसका लाभ उठाते हैं। 

बहुत से ट्रेवलर्स काउच सरफिंग करते हैं।  सोलो ट्रेवलर दीपांशु नॉर्थ ईस्ट में चकमा जाति के लोगों के बीच उनके घर में बहुत दिनों तक रहे थे।  उनके साथ ही खाना खाया उनके बीच ही रहे।  अद्भुत अनुभव था।  उनके साथ रहकर नॉर्थ ईस्ट के जनजाति परिवार के जीवन को जानना। उनकी खुशियों, कठिनाइयों का भागीदार बनना। 
इसी तरह इंडियन टूर व्लॉग के तोरवशु ने किसी ग्रामीण रूसी या चीनी होस्ट के फॉर्म पर कुछ दिन बिताए थे।  उनके यहां रहकर अनुभव प्राप्त किया कि चीन में या रूस के गांव में किस तरह से जीवन होता है। उज़्बेकिस्तान के एक गांव में व्लॉगर बंसी वैष्णव काउच सरफिंग करते हैं।  उन्होंने अनुभव प्राप्त किया कि किस तरह से घोड़ों को चराया जाता है, कैसे घोड़ियों का दूध दुहा जाता है, कैसे घोड़े पर बैठकर चारागाह में घोड़ा समूह को संभाला जाता है। खेतों में कैसे फसल की देखभाल की जाती है।  

काउच सर्फिंग में एक चीज यह भी देखी गई है कि कुछ बेघर लोग सरफिंग के बहाने एक अपना अस्थाई आश्रय तलाशते रहते हैं, लेकिन यह पर्यटक के लिहाज से ठीक नहीं कहा जा सकता। ज्यादातर इसकी सकारात्मक उपयोगिता ही रही है। और इसका  नए विकल्प के रूप में बहुत महत्व बना है। 

हिच हाइकिंग 
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यात्राओं के लिए पर्यटक कई प्रकार से, कई साधनों से अपनी यात्रा का प्रबंधन करते हैं। 
विश्व यात्री डॉक्टर राज अपनी साइकिल से पूरे विश्व की यात्रा पर निकले हुए हैं। कुछ यात्री मोटरसाइकिल से करते हैं, कुछ एयरवेज से अन्य देशों में पहुंचकर स्थानीय लोक परिवहन, टैक्सी ट्राम, बुलेट ट्रेन आदि से दर्शनीय या पर्यटन स्थलों तक पहुंचते हैं। बहुत से ग्रेब्रियल ट्रेवलर की तरह खूब पैदल चलते हैं, ट्रेकिंग करते हैं। कुछ यात्री जिसे हम हमारे यहां लिफ्ट लेकर यात्रा करना कहते हैं वैसी भी अनुरोध यात्रा करते हैं। गुजरती कारों और वाहनों को इशारों से रोककर उनसे गुजारिश करते हैं। इसमें सेवा का पैसा नहीं दिया जाता। मुफ्त सेवा की आकांक्षा और अनुरोध सर्वोपरि होता है। इसे ही पर्यटन के क्षेत्र में हिच हाइकिंग कहा जाता है।  

हिच हाइकिंग का अपना बहुत अलग ही आनंद है। आप अपरिचित देश में अपरिचित लोगों के बीच सड़क के किनारे खड़े होकर हाथ दिखाते हुए उनसे अनुरोध करते हैं कि हमें अगले किसी मुकाम तक जहां तक भी जा रहे हैं या अगर वह हमारे डेस्टिनेशन तक जाने वाला हो तो वहां तक या जहां तक उसे सुविधा हो अपने वाहन में ले चले। 
आमतौर पर हिच हाइकिंग के अभिलाषी पर्यटक सड़क किनारे या पेट्रोल पंप पर खड़े हो जाते हैं, जहां उन्हें ज्यादा से ज्यादा वाहन उपलब्ध हो सकें। बहुत सी बार अपनी होटल से टैक्सी कर के वे हाई वे तक पहुंचते हैं और वहां से किसी बड़े ट्रक, ट्राला, कार या जो भी साधन इनको मिलता है, उसको रोकते हैं।  कई बार कुछ रोक लेते हैं, कुछ नहीं रोकते, कुछ ले जाते हैं, कई नहीं भी ले जाते।  इसमें पर्यटक को बहुत धैर्य रखना पड़ता है।  कई बार पांच मिनट में उनको सुविधा मिल जाती है, कई बार घंटे बीत जाते हैं इंतजार करते हुए और कई बार खाली हाथ वापस होटल लौटना पड़ता है।  लेकिन उनका लक्ष्य यही होता है उस दिन कि हमको आज किसी भी हालत में हिच हाइकिंग ही करना है। 

इसमें बड़ा मजा आता है।  मान लीजिए चीन में यात्रा कर रहे हैं, जापान में यात्रा कर रहे हैं, हिच हाइकिंग के लिए खड़ा है कोई इंडियन। वह क्या करेगा? बहुत मुश्किल है, कोई रोकता नहीं, भाषा समझता नहीं। तब पर्यटक  एक पोस्टर बनाता है और उसे स्थानीय भाषा में किसी स्थानीय व्यक्ति से अपने अगले पड़ाव का नाम 
 बड़े-बड़े अक्षरों में लिखवा लेता है। पोस्टर थामकर खड़े हो जाते हैं सड़क किनारे। कोई दयालू समझदार व्यक्ति सहायता कर ही देता है। कोई ट्रक मिल जाता है या कुछ और वाहन मिल ही जाता है।  उसमे बैठा लेते हैं चालक महोदय।  फिर तो नजारा ही कुछ और होता है। जो रिश्ता कायम होता है खास तौर से ट्रक ड्राइवर और ट्रैवलर के बीच में वह देखना बहुत सुकून देता है।  रेल यात्रियों की तरह ही ट्रक ड्राइवर और उनका स्टाफ उस ट्रैवलर के साथ इतने घुल मिल जाते हैं कि खाना पीना तक उनके साथ ही होने लगता है। कई बार ट्रेवलर को ड्राइवर अपने घर ले जाता है। परिवार के साथ रखता है। एक पर्यटक ने तो उसके परिवार के बीच पूरे तीन दिन स्थानीय विवाह समारोह में बिताए। 

काउच सरफिंग और हिच हाइकिंग के बहुत ही रोमांचक और मार्मिक प्रसंगों को इन विडियोज के जरिए हमने खूब देखा है और भीतर बाहर भीगते भी रहे हैं। ये अद्भुत अनुभव हैं हमारे। अविस्मरणीय और प्रेरक भी। 

ब्रजेश कानूनगो 
 

दुनिया की सैर : नए विकल्प

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दुनिया की सैर : नए विकल्प


महात्मा गांधी ने एक बार कहा था कि यदि अपने देश को जानना है, संस्कृति को समझना है तो हमे रेल यात्राएं करना चाहिए, लोगों के बीच जाना चाहिए। 
उस दौर में यह एक अच्छा तरीका हो सकता था जब हम रेल यात्रा से देश और दुनिया को जान सकते थे। बापू ने यह करके दिखाया भी था। भारतीय समाज को समझने में उनका यात्राओं का यह तरीका बहुत कारगर भी रहा। 
एक अन्य तरीके से भी यह कार्य संभव होता रहा है। किताबों के जरिए भी संसार को जाना गया है। उन लोगों की लिखी पुस्तकों को पढ़कर जिन्होंने दुनिया को प्रत्यक्षतः देखा, लोगों के बीच गए,जीवन शैली को देखा, वहां की प्रकृति को अनुभव किया और फिर उन अनुभवों को अपनी रचनाओं में ,वृतांतों में सहेज लिया।  ऐसी पुस्तकों और उन यात्रियों के लिखे को पढ़ेंगे तो भी हम देश और दुनिया को बहुत कुछ जान समझ सकते हैं। बहुत से लोगों ने इसका लाभ भी उठाया है।   यात्रा वृतांत को पढ़ते हुए, सैलानियों और विचारकों द्वारा लंबे समय में निष्ठा, लगन और संघर्ष से अर्जित अनुभवों और विश्लेषणों को उनसे सुनकर, चर्चा करके या उनकी लिखी पुस्तकों को पढ़कर भी दुनिया को समझने की अपनी जिज्ञासा को शांत किया जा सकता है। या तो यह सब हम खुद करें या पुस्तकों से गुजर कर थोड़ा सा उनमें अपने आपको अनुभूत करें। पहले विकल्प से दूसरा विकल्प सामान्यतः सरल कहा जा सकता है। 

समय के साथ बहुत कुछ बदलता जाता है। आज का समय टेक्नोलॉजी, इंटरनेट और डिजिटल मीडिया का समय है। पुस्तकों का स्थान दृश्य श्रव्य माध्यम ने ले लिया है। अब विचारक, विशेषज्ञ और सैलानी सब लोग इसी माध्यम पर सक्रिय हैं। खासतौर से जो ब्लॉगर्स होते हैं जो ट्रेवल व्लॉग बनाते हैं, या कोई अन्य विषय पर अपनी बात कहते हैं वे सब वीडियो के रूप में  आज इंटरनेट पर, यूट्यूब पर उपलब्ध होते गए हैं।  हम उनको देखकर, महसूस करके, उनके साथ यात्राएं करते हुए भी बहुत सी चीजों को जान समझ सकते हैं। बदलती परिस्थितियों और तन मन के सामर्थ्य के चलते हमने यही विकल्प चुना। पिछले कुछ समय में घर बैठे दुनिया भर की मानस यात्रा यूट्यूब पर करते रहे और जो लोग इस सफर में हमारे माध्यम बने, किस तरह से यह सब होता रहा, पाठकों से साझा करने का मन हो रहा है।  

कोरोना काल के कठिन समय जब घरों में कैद होकर कोई अन्य आउटडोर उपाय नहीं रहा था तब हम लोग यूट्यूब की ओर मुड़े थे। टीवी के रेगुलर चैनल देखना तो काफी पहले बंद कर दिया था लेकिन जब हमें यूट्यूब पर कुछ ट्रेवल वीडियो देखने को मिले तो फिर हमारा रुझान दुनिया देखने की तरफ होता चला गया। अनेक ट्रेवलर,यूट्यूबर हमारे आभासी दोस्त बनते चले गए। यद्यपि सबसे पहले हमने जवाहरलाल नेहरू जी की किताब ' डिस्कवरी ऑफ इंडिया ' पर आधारित दूरदर्शन के धारावाहिक ' भारत एक खोज का ' पुनरावलोकन यूट्यूब पर किया। पंडित नेहरू ने  जिस दृष्टि से दुनिया को देखा, भारत को देखा, भारत के इतिहास को देखा उससे हमे विश्व पर्यटन की मानस यात्रा करने की इच्छा प्रबल होती गई।  

सबसे पहले यूट्यूब पर हिंदी में दिल्ली के हरीश बाली जी का वीजा टू एक्सप्लोर नामक ट्रेवल व्लॉग देखने को मिला। उन्होंने अपनी नौकरी छोड़कर इस काम में हाथ डाला था, लगभग पूरा भारत घूम चुके हैं। उनकी तीन लोगों की टीम होती है और वह हिंदी में अपनी यात्राओं में उस पर्यटन क्षेत्र को समग्रता से बहुत अच्छे से फिल्माते हैं। स्थान के ऐतिहासिक, पर्यटन, प्राकृतिक सौंदर्य, जीवन शैली,खान पान जैसे सभी पक्षों को अपने वीडियो में दर्शकों को बहुत सादगी से परोस देते हैं। बाली लगभग पूरे भारत वर्ष की सैर करते हुए अपने दर्शकों को भी करवा चुके हैं। भारत के बाहर फिलहाल उन्होंने केवल इंडोनेशिया, बाली की यात्रा की है।
ट्रेवल व्लॉग से इस पहले परिचय और हरीश बाली के साथ मानस पर्यटन के बाद पचीसों हमारे नए दोस्त बनते गए। 
माउंटेन ट्रेकर के वरुण वागीश, नोमेडिक इंडियन के दीपांशु, इंडियन टूर के तोरवशु, नोमेडिक शुभम के शुभम, विश्व साइकिल यात्री साइकिल बाबा के डॉक्टर राज, बंसी वैष्णव, पैसेंजर परमवीर के परमवीर, डॉक्टर यात्री के नवांकुर, मनीष कुमार सोलंकी, देसी कपल ऑन द गो के मेघा और सौरभ, आरेक्सप्लोरर के अगम्य सक्सेना, जैसे भारतीय ब्लॉगर, ट्रेवलर के अलावा अजरबैजान के दाऊद अकुजादा, जंपिंग प्लेसिस के युवा दंपत्ति, गैब्रियल ट्रेवलर, डेल फिलिप,क्रिस लुइस, डेल मैक्स,बैग पैक फैमिली का परिवार जैसे अनेक मित्रों के साथ हमने दुनिया और उसके सौंदर्य को स्क्रीन पर बहुत निकट से देखा। संसार के विभिन्न समुदायों की संस्कृति और उनकी जीवन शैली का साक्षात्कार किया। मेरा मानना है कि यदि समय और सुविधा हो तो एक बार अवश्य ही इन ब्लॉगर ट्रेवलरों के विडियोज को देखना हमारे हित में ही होगा। सुकून दायक होगा। 

आगे के मेरे आलेखों में उन सबकी अलग-अलग विशेषताओं और पर्यटन के तौर तरीकों और उनके साथ देखे, घूमे,समझे दुनिया के विभिन्न हिस्सों की बात कहने की कोशिश अवश्य रहेगी।  

ब्रजेश कानूनगो 

हिरोशिमा के विनाश और विकास की करुण दास्तान

हिरोशिमा के विनाश और विकास की करुण दास्तान  पिछले दिनों हुए घटनाक्रम ने लोगों का ध्यान परमाणु ऊर्जा के विनाशकारी खतरों की ओर आकर्षित किया है...