जीवित ज्वालामुखी और लावा पर कैंपिंग
स्कूल के शुरुआती दिनों में याने प्राथमिक, माध्यमिक कक्षाओं के समय हर साल भूगोल विषय की किताबों में पृथ्वी की उत्पत्ति से लेकर इसकी संरचना,वनस्पति, महासागरों, नदियों,पहाड़ों, प्राकृतिक घटनाओं आदि के बारे में पढ़ाया जाता था। सातों महाद्वीपों के आकार प्रकार, विभिन्न महासागरों की विशालता और गहराई के बारे में समझाया जाता था। हरेक की जलवायु और उनकी भिन्न प्रकृति की जानकारी दी जाती थी। इसके लिए हम लोग पुस्तक विक्रेता से एक एटलस याने मानचित्रों की एक पुस्तक भी खरीद लाते थे, जिसमे इन्ही सब बातों को सचित्र दर्शाया गया होता है।
इसी दौर में हमने भूगर्भीय हलचलों के बारे में पढ़ा। भूकंप और ज्वालामुखियों के बारें में पढ़ते हुए बहुत रोमांचित हो जाते थे। ऐसी घटनाएं हमारे लिए उस वक्त अजूबा होती थीं। किस तरह धरती कांपती है और किस तरह जनजीवन अस्त व्यस्त हो जाता है। समाचार पत्रों में कभी कुछ पढ़ने को मिल जाता था तो अनुमान लगाकर काल्पनिक ताल मेल बैठाने की कोशिश करते थे। लेकिन जब से दूरदर्शन या टीवी आया तब से नई पीढ़ी ने उसके जीवंत दृश्यों को स्क्रीन पर साक्षात देखा है। ज्वालामुखी कैसे होते हैं, किस तरह वे लावा उगलते हैं, यह सब नई पीढ़ी के साथ साथ उम्रदराज लोग भी अब इंटरनेट के माध्यम से साक्षात देख पाते हैं।
प्राकृतिक प्रकोप से सुरक्षित भूभाग के आम लोगों के लिए भी भूकंप, सुनामी और ज्वालामुखी की भयानक घटनाएं अब कल्पना और अनुमान की बातें नहीं रहीं। आधुनिक टेक्नोलोजी की बदौलत इनसे हुआ विध्वंस, प्रभाव और खौफनाक मंजर अब सबकी आंखों के सामने घटित होता नजर आता है। अब तो मनुष्य समाज को इतनी सुविधाएं प्राप्त हो गईं है कि वह ज्वालामुखी फटने जैसी खौफनाक घटना को भी भौतिक रूप से घटना स्थल के सामने खड़े होकर अपनी आंखों से देख सकता है। ज्वालामुखी तक पहुंचने के लिए अब पर्यटन व्यवस्थाएं भी काफी चलन में आ गईं हैं।
जीवित ज्वालामुखी पर्यटन कोई नई बात नहीं रही है। कई शताब्दियों से सक्रिय ज्वालामुखियों की कष्ट साध्य यात्रा करते रहे हैं। वर्तमान समय में भी हर साल लाखों पर्यटक सक्रिय और निष्क्रिय ज्वालामुखियों को देखने जाते हैं। वे इनकी भयानकता के बावजूद इसके शानदार नज़ारे देखना चाहते हैं। वे ज्वालामुखी पर्वतों के पास के खूबसूरत सूर्योदय और सूर्यास्त का आनंद लेना चाहते हैं। विस्फोटों और धधकते लावा के बहाव को अनुभव करते हुए उसकी शानदार तस्वीरें दुनिया के अन्य लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।
कई देसी विदेशी घुम्मकड़ों,पर्यटकों को ऐसा करते हमने यूट्यूब पर अनेक ट्रेवल विडियोज में देखा है कि वे किस तरह ऐन ज्वालामुखी की तलहटी तक पहुंचते हैं, कैंप में सोते हैं और विस्फोटों के समय उन दृश्यों को देखते हैं और कैमरों में कैद कर लेते हैं। विडियोज बनाते हैं।
इसी वर्ष (2024) के मार्च की एक खबर पढ़ी थी कि आइसलैंड के दक्षिणी हिस्से में ज्वालामुखी फटने के बाद वहां आपातकाल की घोषणा कर दी गई। इससे पहले इस यूरोपीय देश के रेकजेन्स प्रायद्वीप में बीते साल दिसंबर 2023 के बाद यह चौथा ज्वालामुखी विस्फोट था। इसी बात से इसकी भयावहता का अनुमान लगाया जा सकता है कि ज्वालामुखी से निकला लावा पास के कस्बे ग्रिंडाविक तक पहुंच गया और उसको खाली करवा लिया गया। इसके अलावा पर्यटकों की पसंदीदा जगह ब्लू लगून के पास मौजूद लोगों को भी वहां से हटाकर सुरक्षित जगह पहुंचाया गया। ज्वालामुखी से निकलने वाला लावा दो या अधिक धाराओं में अलग-अलग दिशाओं में बहने लगता है। स्थानीय प्रशासन को हमेशा अपने नागरिकों और पर्यटकों की चिंता बनी रहती है।
सामान्य जानकारी हेतु यहां बताना उचित होगा कि आइसलैंड में 33 सक्रिय ज्वालामुखी हैं। यह देश मिड-एटलांटिक रेंज पर है जहां पृथ्वी की दो सबसे बड़ी टेक्टोनिक प्लेट्स मिलती हैं। पूरी पृथ्वी पर लगभग 1500 से ज़्यादा सक्रिय ज्वालामुखी हैं। हर साल लगभग 50-70 ज्वालामुखी फटते हैं। यूरोप में 82 ज्वालामुखी हैं और इनमें से 33 आइसलैंड में हैं। भारतीय भूभाग में दो ज्वालामुखी हैं, पहला, बैरन ज्वालामुखी जो बैरन द्वीप अंडमान निकोबार दीप समूह में मध्य अण्डमान के पूर्व में स्थित है तथा दूसरा, नारकोंडम ज्वालामुखी जो अंडमान निकोबार द्वीप समूह के उत्तर अण्डमान के पूर्व में है। बैरन ज्वालामुखी को सक्रिय या जागृत ज्वालामुखी माना गया है।
बहरहाल, यहां बात ज्वालामुखी पर्यटन की ही करते हैं। इन क्षेत्रों में कई ट्रेवल कंपनियां हैं जो पर्यटकों को ज्वालामुखी पर्यटन कराती हैं, जिनमें उनको वहां तक ले जाना, खाने पीने की व्यवस्था करना, गाइड के नेतृत्व में ट्रेकिंग करवाना आदि शामिल होता है। यह सुरक्षित तो होता है लेकिन बहुत थका देने वाला भी। यूट्यूब माध्यम से हमने आइसलैंड और इथोपिया के कुछ जीवित ज्वालामुखियों पर दीपांश, शुभम, बंसी वैष्णव तथा कुछ अन्य विदेशी पर्यटकों के व्लॉगरों के वीडियो से यहां की रोमांचक यात्रा का मानस अनुभव लिया है।
इथोपिया के ट्रेवल एजेंसी के लोग इन पर्यटकों को शक्ति शाली एस यू वी गाड़ियों से रेतीले मरुस्थल से होकर एर्टा ऐल ज्वालामुखी की तलहटी तक ले जाते हैं। यहां गिट्टियों की तरह का पुराना काला लावा बिखरा होता है जिसे समतल करके ट्रेवल एजेंसियों ने यहां खाने पीने की व्यवस्था लगाई होती है। रात को यहीं पर गाड़ियों पर लाद कर लाए गए गद्दों को बिछा दिया जाता है। हरेक पर्यटक की अलग रजाई, कंबल, बिस्तर होता है। ठंडे लावे के फर्श पर किसी धर्मशाला में ठहरे बारातियों की तरह सेवाएं की जाती हैं। कैंप क्षेत्र से रात भर विस्फोटों की आवाजें अवश्य सुनाई देती हैं किंतु ज्वाला और आग के दर्शन नहीं होते यहां से।
सुबह तड़के कोई चार बजे ज्वालामुखी के मुहाने के करीब पहुंचने का ट्रेकिंग शुरू हो जाता है। थोड़ी देर में ताजा निकला लावा दिखाई देने लगता है। यह कोई एकाध महीने पूर्व का लावा है। पैर रखने पर चटकने लगता है। कुछ यात्रियों के पैर भी जख्मी हो जाते हैं। कष्ट की कोई परवाह नहीं है। जीवित ज्वालामुखी को देखने का असीम उत्साह थकने नही देता, पीड़ा की अनुभूति नहीं होती। यही नजारा आइसलैंड के ज्वालामुखी पर्यटन का है।
थोड़ा और आगे पहुंचने पर अंधेरे में लाल लाल चमकती धाराएं नजर आने लगती हैं। ये बहते गर्म लावा की धाराएं हैं, जिनमे अंगारे बह रहे हैं। थोड़ा और आगे बढ़ने पर ज्वालामुखी पर्वत नजर आते हैं, आग उगलते दानव की तरह। धरती ने अपना मुंह खोल दिया है। चिंगारियां बरस रही है। पहाड़ के मुख से गर्म लावा कई धाराओं बहकर नीचे की ओर बहुत धीमी गति से कोई 20 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चला आ रहा है। गनीमत है पर्यटक ऊपर पहाड़ पर हैं।
थोड़ा और आगे ताजा दो तीन दिन पुराना लावा है अभी ठंडा नहीं हुआ है। जैसे सिगड़ी के भीतर अंगारों की आंच अभी बाकी है। आइसलैंड में बच्चो के साथ आया पर्यटक परिवार इन अंगारों पर अपने साथ लाए सींक टिक्के को गर्म करता है। अपने साथियों को भी देता है। यह अद्भुत है रोमांचक है। टीवी स्क्रीन पर हम आंखें गढाए इन बच्चों को आग के पास नहीं जाने की, उससे नहीं खेलने की चेतावनी देते लगते हैं। लेकिन वे सुरक्षित हैं, अब तक शायद घर भी लौट आए होंगे, तभी तो हम यह वीडियो देख पा रहे हैं।
जीवित ज्वालामुखी के इतने करीब पहुंच कर हम तक इन विडियोज को पहुंचाने के लिए आभार के साथ शुभकामनाओं के अलावा हमारे पास देने के लिए इससे बेहतर और क्या हो सकता है।
ब्रजेश कानूनगो
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