क्या है यह रेनबो गैदरिंग !
प्रसिद्ध घुम्मकड़ गैब्रियल ट्रेवलर का एक ट्रेवल व्लाग उनकी यूट्यूब चैनल पर देख रहा था। गैब्रियल बहुत सालों से लगभग बीस पच्चीस वर्षों से दुनिया की सैर कर रहे हैं और ट्रेवल वीडियो बना रहे हैं। उन्होंने कई देशों की कई कई यात्राएं की हैं। अपने देखे घूमें स्थानों पर वे बरसों बाद पुनः यात्रा पर आते हैं और स्थितियों और दृश्यों में आए परिवर्तनों का विश्लेषण भी बहुत प्रभावी रूप से करते हैं। उत्तर भारत की देवभूमि उत्तराखंड, उत्तर के हिमालयीन सौंदर्य के अलावा नेपाल आदि में पैदल भ्रमण करते हुए उनकी बातचीत बहुत प्रभावी और दिलचस्प रही है। हाल फिलहाल में उन्होंने मध्यप्रदेश के मांडू, ओंकारेश्वर, महेश्वर और उज्जैन की यात्राएं की हैं। मांडू में उनको ऐसे स्थानों पर हमने साइकिल से भ्रमण करते देखा जहां हम जैसे स्थानीय पर्यटक भी नही गए होंगे। पर्यटन में देखने समझने और उनकी व्याख्या से हमे भी नई दृष्टि या नजरिया मिलता है।
पिछले दिनों इन्ही का एक वीडियो देख रहा था जिसमे गैग्ब्रियल यूनाइटेड स्टेट के नॉर्थ केलीफोर्निया में एक पर्वत पर ट्रैकिंग कर रहे थे। हमेशा की तरह चलते चलते हाथ में कैमरा थामे वीडियो बनाते हुए बातचीत भी करते जा रहे थे। उनकी बातों में मुझे एक नया शब्द मिला, वह था, रेनबो गैदरिंग। उसके बारे में वे बताते भी जा रहे थे।
रेनबो गैदरिंग ( इंद्रधनुषी सभा) के बारे में मैं पहली बार ही सुन रहा था। वह किसी दिन के गैदरिंग की बात कर रहे थे, 2014 के गैदरिंग की यादें ताजा कर रहे थे। पगडंडियों के रास्ते पर्वत पर चढ़ते भी जा रहे थे और यह बताते भी जा रहे थे कि 2014 में किस तरह इसी पर्वत पर वे आए थे और गैदरिंग में हिस्सा लिया था। उनके परिवार के कुछ सदस्यों ने इसमें हिस्सा लिया था। जिसके कुछ चित्र भी उन्होंने में वीडियो में बताए। इस तरह जब मुझे रेनबो गैदरिंग के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई तो मैंने कुछ जानकारी जुटाई।
दरअसल रेनबो गैदरिंग को घुम्मकड़ प्रकृति के जागरूक लोगों का एक सम्मेलन कहा जा सकता है। इसमें शांति, सद्भाव, स्वतंत्रता और सम्मान भाव में विश्वास रखने वाले लोग जंगलों, पहाड़ों के बीच इकट्ठा होते हैं, मिलते-जुलते हैं और कुछ दिन के लिए कैंपिंग करते हैं। सबसे पहले इसकी शुरुआत संयुक्त राज्य अमेरिका के नॉर्थ कैलिफोर्निया में हुई थी। अब ये आयोजन दुनिया के अन्य देशों में भी किए जाने लगे हैं। रेनबो गैदरिंग परिवार एक तरह से स्वैच्छिक आधार पर बना समूह होता है। एक सप्ताह, दो सप्ताह वहीं निवास करते हैं, कैंप लगाते हैं। सामान्यतः पहाड़ों, जंगलों के बीच स्थित झील के किनारे को इस आयोजन के लिए चुना जाता है। आयोजन की सूचना समुदाय के लोगों को काफी समय पूर्व ही हो जाती है।
इसकी एक बड़ी विशेषता यह है कि इसमें लोग आपस में बातचीत करते हैं, बातचीत के सत्र होते हैं। इसके अलावा मानव श्रृंखलाएं बनती हैं, ट्रैकिंग होता है, गीत होता है, संगीत होता है, कैंप फायर होता है, कला चर्चाएं और प्रस्तुतियां होती है। इस एकत्रीकरण में एक उल्लेखनीय बात यह होती कि इस आयोजन में शराब सेवन से दूरी बनाए गई है। यद्यपि कहा जाता है कि कुछ नशीले पदार्थों या ड्रग्स वगैरा का सेवन अब होने लगा है। कुछ लोग इन्हें बूढ़े हिप्पियों का समूह भी आरोपित करते रहे हैं, कुछ इसे होपी लोगों की मान्यताओं से प्रेरित भी बताते हैं किंतु ऐसा नहीं माना जा सकता। अपने को मानव जाति के बच्चे और भाई बहन कहने वाले रेनबो परिवार में ऐसे अच्छे लोग होते हैं जो मनुष्य के हितों से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करते हैं, वातावरण बनाते हैं। सांस्कृतिक चर्चा के साथ इसमें धर्म से जुड़े कुछ लोग भी शामिल होते हैं।
उत्तरी अमेरिका के नॉर्थ कैलिफोर्निया में 1 जुलाई 1972 को इसका पहला आयोजन हुआ था। उसके बाद तो हर साल यह होते हैं। अब ये आयोजन अमेरिका से बाहर भी होने लगे हैं। मैंने कहीं पढ़ा था कि भारत के उत्तरीय इलाके में भी कहीं यह हुआ था।
मुझे अच्छा लगा कि लोग इस तरह इकट्ठा होते हैं। हमारे यहां कुछ इसी तरह सुरम्य और शांत स्थानों पर साहित्यिक या वैचारिक मंथनों के लिए शिविरों के आयोजन होते रहे हैं। पहाड़ों के बीच में भी होते हैं।
इस आयोजन के कुछ नकारात्मक पक्ष भी हैं। वन्य सेवाओं और वन विभाग की दृष्टि में ये आयोजन ठीक नहीं है। जंगलों के बीच इन आयोजनों का दुष्प्रभाव प्रकृति पर पड़ता हैं, प्राकृतिक संपदा पर पड़ता है, वनों पर पड़ता हैं। समय के साथ इसमें धीरे-धीरे बुरे लोग,अपराधी लोग,नशेड़ी लोग भी किसी तरह से घुसपैठ जमाने लगे हैं। इसके भी बुरे परिणाम दिखाई देने की आशंकाएं बड़ गई हैं। रेनबो परिवार की मूल भावना में उपभोक्तावाद, पूंजीवाद और मीडिया से अधिकतम मुक्त रहने का विचार रहा था, लेकिन अधिक लोगों को आकर्षित करने के उपक्रम में धीरे-धीरे इन चीजों का भी इसमें समावेश होता गया है।
मैं जानता हूं कि यह सब बातें बहुत लोगों को ज्यादा अच्छी तरह मालूम होगी। इंटरनेट पर भी सब कुछ उपलब्ध है लेकिन मेरा उद्देश्य मात्र इतना है कि लोग इस तरह की नई चीजों को भी जानें और दुनिया को देखने समझने के प्रयास में थोड़ा सा नवोन्मेष तरीका भी अपनाते रहें। हमारे आसपास से हटकर भी एक दुनिया है जिसमें बहुत सारा अभी भी हमसे अंजाना बचा हुआ है।
ब्रजेश कानूनगो
No comments:
Post a Comment