पदयात्राएं : शब्द वीणा और प्रकृति का सौंदर्य
एक जानकारी के अनुसार वर्ष 2024 में, भारत में 4.78 मिलियन विदेशी पर्यटकों का आगमन हुआ, जो 2023 के 4.38 मिलियन से अधिक है, लेकिन 2019 के 5.29 मिलियन से कम है. 2024 में घरेलू पर्यटन की संख्या 56.2 करोड़ रही, जो 2023 के मुकाबले 610.22 मिलियन कम है. 2024 की पहली छमाही में, भारत में 4.78 मिलियन विदेशी पर्यटकों का आगमन हुआ, जो 2023 के 4.38 मिलियन से सुधार दर्शाता है.हालांकि, यह संख्या 2019 के 5.29 मिलियन आंकड़ों से कम है, जो कोविड-19 महामारी के पूर्व की स्थिति थी. 2024 में, भारत में घरेलू पर्यटकों की संख्या 56.2 करोड़ थी. यह संख्या 2023 में 610.22 मिलियन थी, जो कोविड-19 महामारी के दौरान हुई थी, जबकी कई पर्यटन स्थल बंद थे। इसका सीधा अर्थ यही है कि 2024 में, विदेशी पर्यटकों के आगमन में सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी 2019 के स्तर से कम है। घरेलू पर्यटन में वृद्धि देखी गई है, लेकिन यह 2023 के स्तर से भी कम है।
भारत के विशेष संदर्भ में घरेलू पर्यटकों की बात करें तो इसमें सर्वाधिक संख्या उन धार्मिक और आस्थावान पर्यटकों या तीर्थ यात्रियों की रहती है जो हमारे तीर्थों, धार्मिक महत्व और आस्था के स्थलों पर पहुंचते हैं। बारह वर्षों के अंतराल पर होने वाले कुंभों, सिंहस्थों और महाकुंभों के अलावा पवित्र नदियों, पर्वतों और धार्मिक स्थलों की लंबी पदयात्राओं को भी एक तरह से धार्मिक पर्यटन के रूप में भी स्वीकार किया जाना भी सर्वोचित ही है।
पर्यटन के क्षेत्र में अब सोशल मीडिया और घुमक्कड़ों के ट्रैवलॉग वीडियोस ने भी नए पर्यटकों और आम व्यक्तियों को यात्राओं की ओर आकर्षित किया है। जो किन्हीं कारणों से यात्राएं कर पाने में असमर्थ होते हैं वे घर बैठे भी इन घुमक्कड़ों, यायावरों के कैमरों की नजर से यूट्यूब माध्यम से साक्षात स्क्रीन पर पर्यटन और तीर्थाटन का आभासी आनंद तो एक सीमा तक उठा ही लेते हैं।
पिछले दिनों इसी तरह ब्लॉगरों के साथ विश्व की आभासी यात्राएं करते हुए हमने भी धार्मिक यात्राओं का सुख घर बैठे उठाया। हमारा माध्यम बने इंदौर के रंगकर्मी और मीडिया कर्मी ओम द्विवेदी के वीडियोस जो उन्होंने अपने ओम दर्शन यूट्यूब चैनल पर साझा किए हैं। इनके वीडियोस की अनेक विशेषताएं हैं जो अन्य घुमंतुओं से इन्हें विशिष्टता प्रदान करती हैं। दो दशक तक हिंदी रंगमंच में एकल अभिनय के अलावा मीडिया के क्षेत्र में प्रतिष्ठित पदों पर रहे ओम द्विवेदी को कुछ वर्ष पहले नर्मदा से जुड़े साहित्य पढ़ने के साथ नर्मदा परिक्रमा वासियों को करीब से जानने का मौका मिला। इसके बाद वह अपने आप ही उनसे प्रेरित हो गए. उन्होंने भी नर्मदा की पैदल परिक्रमा करने का निर्णय लिया। इसके बाद उन्होंने 5 महीने की कठिन 3600 किलोमीटर की नर्मदा परिक्रमा पूरी की। जिसके बाद वे नर्मदा तट के प्राकृतिक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जीवन में रम गए। इसी दरमियान कुछ साधु-संतों और प्रकृति प्रेमियों से भी उनकी भेंट हुई।
जिसके बाद उन्होंने उत्तराखंड चार धाम यात्रा के रोमांचक प्रसंग सुने। तब उन्होंने देवभूमि की यात्रा करने का भी संकल्प लिया. उत्तराखंड से जुड़े कई अनजाने क्षेत्रों और रहस्य की पहचान हुई. इसके बाद उन्होंने खुद पैदल चलते हुए ऋषिकेश, यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ बदरीनाथ होते हुए पुनः ऋषिकेश तक यात्रा की. इसी बीच उन्हें पांच केदार, सप्त बदरी और पंच प्रयाग के दर्शन किये।
दरअसल धार्मिक पर्यटन इस दृष्टि से बड़ा महत्वपूर्ण है जो कि लोगों को न सिर्फ अपने धर्म के बारे में जानने का मौका देता है बल्कि व्यापक आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करने और विभिन्न संस्कृतियों, क्षेत्र विशेष के लोगों की जीवनशैली और रीति-रिवाजों के बारे में जानने का अवसर और समझ प्रदान करता है। दुर्गम और पर्वतीय वन आच्छादित इलाकों, कलकल करती नदियों, प्रपातों सहित धरती के सौंदर्य और प्रकृति के संगीत को आत्मसात करना तब और सुगम हो जाता है जब आभासी यात्रा ओम द्विवेदी जैसे संत प्रवृत्ति पद यात्री यायावर के कैमरे से प्रांजल वाणी से देखा सुना जा रहा हो।
अचानक एक दिन ओम द्विवेदी जी के फेसबुक पेज पर हमारी नजर पड़ी जहां उन्होंने नेपाल भ्रमण के कुछ चित्र पोस्ट किए थे, हमने अनुरोध किया कि आप इन्हें वीडियो के रूप में भी साझा कर दें तो हम भी इसका लाभ लेते रहे घर बैठे। जवाब में उन्होंने लिखा था कि मैं यात्रा से लौटने पर वीडियो बनाता हूं और यूट्यूब चैनल पर साझा करता हूं। मुझे तब तक पता नहीं था कि उनकी एक चैनल भी है ओम दर्शन के नाम से। मैने तब जाना कि ओम द्विवेदी जी कई यात्राएं कर चुके हैं और उनके कई वीडियो ओम दर्शन चैनल पर उपलब्ध है। हमने धीरे-धीरे नियमित देखना शुरू कर दिया। बहुत अद्भुत है सारे वीडियोस। अन्य ट्रैवलरों से बहुत अलग भी हैं लेकिन यात्रा वीडियोस की सारी खूबियों के साथ। हमने उनकी इन वीडियो श्रृंखलाओं में बहुत सी नई बातें अनुभव की। इसको देखते हुए असीम आनंद का अनुभव होता है। दरअसल ओम द्विवेदी जी ने हिमालय क्षेत्र में अनेक यात्राएं की है जिसमें चार धाम यात्रा, यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ, ये दुर्गम यात्राएं उन्होंने पैदल की। इन सभी वीडियो को देखते हुए हम उनमें डूबते जाते हैं, अपने अस्तित्व को खोते हुए प्रकृति से एकाकार होते चले जाते हैं। हिमालय दर्शन पदयात्राओं के वीडियो में मुझे सबसे महत्वपूर्ण बात यह लगी कि उनकी जो प्रांजल भाषा है, जो हिंदी वे बोलते हैं, वह बहुत सुंदर है। लगा कि हम तो वह भाषा शायद भूल ही चुके हैं। लेखन के क्षेत्र में होते हुए भी मुझे अफसोस हुआ कि इतनी सुंदर प्रांजल हिंदी को हम कैसे भूलते चले गए। जब वह सामान्य चलन से दूर होते गए खूबसूरत और अर्थवान शब्द बोलते लगते हैं तो पश्चाताप होता है, हम अपनी भाषा के सामर्थ्य और सटीकता से कितने भटक गए हैं। वे अपने को तीर्थयात्री या सैलानी नहीं कहते यायावर बोलते हैं। कितनी मधुर है कितनी शुद्ध और परिभाषिक है हमारी भाषा, बिना दूसरी भाषाओं का सहारा लिए भी काम चल सकता है।
महाकुंभ के एक वीडियो में ओम द्विवेदी सभी भाषाओं के सम्मान और हिंदी की उदारता की बात करते हैं, शाही, मुकाम, खालसा आदि जैसे अनेक शब्दों की व्याख्या और औचित्य बताते हैं, वे हिंदुस्तानी की बात करते हैं, ओम जी इसी उदार भाषा का प्रयोग करते हैं। जो बोलते हैं उनके उच्चारण और प्रवाह इतना प्रभावशाली होता है जैसे कोई संत बोल रहा हो। वैसे लगभग उन्होंने संत का स्वरूप अपना भी लिया है, संत का जीवन ही वह जी रहे हैं यात्राओं के दौरान। इन दिनों उनका पहनावा उनका रहन-सहन सब कुछ एक संत की तरह है। जब उनके साथ आभासी यात्रा करते हैं तो लगता है कि हम किसी संत की टोली के साथ ही भ्रमण कर रहे हैं। प्रकृति की हरीतिमा में खोते जा रहे हैं, उसकी खुशबू को महसूस कर रहे हैं।
उत्तराखंड के प्रमुख तीर्थ जो हमारे धाम है वहां तक पैदल यात्रा तो वे करते ही हैं लेकिन जो निकट में कुछ ऐसे दुर्गम स्थल होते हैं उन पर भी वे कठिन चढ़ाई चढ़ जाते हैं। तब सच में उनके पत्रकार रूप, लेखक रूप और उसके दृष्टिकोण के दर्शन होते हैं। वे बोलते हैं तो लगता है हम कोई आध्यात्मिक प्रवचन सुन रहे हैं, कोई दार्शनिक हमारे सामने बोल रहा है। यही दार्शनिक की भाषा है उसमें कई अर्थ होते हैं, उसमें अनेक बिंब भी होते हैं। मुझे याद है ऐसे ही हिमालय के पहाड़ों में घूमते हुए जब वह एक स्थान पर जाते हैं, शायद उसको चंद्रशिला कहा गया है। कठिन चढ़ाई चढ़ते हुए वे ऊपर तक जाते हैं और वहां उसका वर्णन करते हैं, लगता है सचमुच एक प्रबुद्ध भारतीय ट्रैवलर जो आध्यात्मिकता और दर्शन से भरा हुआ है, उसकी नजर से उसके सार्थक शब्दों से हम उस स्थल को साक्षात अपने सामने स्क्रीन पर देख पाते हैं। एक जगह एक वन में गुजरते हुए, वह एक पेड़ देखते हैं, जिस पेड़ पर किसी चित्रकार ने एक किसी नारी का चित्र उकेर दिया था। दरअसल पेड़ की छाल उखड़ गई थी किसी कलाकार ने उसमें पेंट कर एक स्त्री का चित्र बना दिया था। इस तरह का रूप दे दिया था कि वह वनदेवी सी लगती है। ओमजी पूरे एपिसोड में केवल उस चित्र को स्थिर करके जो व्याख्यान देते हैं, जो चर्चा करते हैं, जो विश्लेषण करते हैं वह अद्भुत है। पूरे एक एपिसोड में लगभग बीस मिनट तक एक चित्र को देखते हुए हमें लगता ही नहीं कि यह स्थिर चित्र फ्रेम है। अहा! कितनी अच्छी स्क्रिप्ट, सटीक वक्तव्य। वह कितनी मेहनत से लिखा गया होता है।
यह भी मन को भाता है कि किस तरह से वे संतों से बात करते हैं किस तरह से उनके अनुभव सुनते हैं, कितने भी रोमांचक प्रसंग और अनुभव सुनते हैं। किस तरह से वह जब नदियों को देखते हैं, पहाड़ों को देखते हैं, तो किस तरह से उनसे बात करते हैं, स्वयं से बात करते हैं, हम दर्शकों से बात करते हैं, जैसे हम भी उनके और प्रकृति के साथ बह रहे हैं। कलकल करती नदी बहती है तो लगता है वीणा बज रही है और वादक ओम द्विवेदी होते हैं जो वीणा बजाते हैं शब्दों की। प्रकृति का राग बजता है, मौसम की जुगलबंदी होती है। सुबह का कोहरा राग, मध्यान्ह की तपिश, शीतल हवा तो कभी पसीना पसीना देह सब कुछ बजता रहता है शब्द वीणा के साथ साथ। जब चढ़ते हैं तो बात करते हैं उतरते हैं तो बात करते हैं, बीमार होते हैं उसकी बात करते हैं, बुखार आता है तो बात करते हैं, किस तरह से कहां आश्रय लेते हैं बात करते हैं, बताते जाते हैं। मसूरी जैसे बड़े व्यावसायिक पर्यटन स्थल पर पहुंचकर कहते हैं, कि यहां तो रहना हमारे बस की बात नहीं है, कहीं और चलते हैं। थोड़ा आगे चलकर किसी कुटिया में, आम आदमी के साथ झोपड़ी में विश्राम करते हैं, भोजन भी वहीं मिल जाता है। एक संत की तरह यात्रा करते हैं। उनके वीडियो को जो तथ्य खास बनाते हैं, सबसे अलग रखते हैं निसंदेह इसके पीछे उनका लेखक पत्रकार होना, उनका वृहद धार्मिक, पौराणिक ज्ञान,दार्शनिक नजरिया और उनका एक कुशल रंगकर्मी होना भी है।
उन्होंने कई एकल अभिनय किए हैं, उनके बड़े प्रसिद्ध नाटक भी हैं जो लोकप्रिय हुए। वह कई जगह वे महाभारत की बात करते हुए अश्वत्थामा का अभिनय करते हैं। हिमालय की बात करते हैं। पांडव अपने को गलाने को ही, समाप्त करने के लिए ही हिमालय की बाहों में अपने को समर्पित कर दिया था। पग पग पर पांडवों का जिक्र होता है, भीम के घमंड और बजरंग बली की पूंछ की चर्चा होती है। पहाड़ों में पौराणिक प्रसंग जीवंत होते रहते हैं। लोक साहित्य और लोकरूचि की बातें मनुष्य के मन की गहराई से स्क्रीन पर उभरती रहती हैं।
कहा जाता है कि पहाड़ों में कोई साथ हो ना हो कुत्ते हमेशा हमेशा हमारे साथ हो जाते हैं। ओम जी के साथ भी ऐसा ही होता है, कभी कभी कोई कुत्ता उनके साथ चलने लगता है, अपने क्षेत्र तक उनके साथ जाता है और फिर लौट आता है, वहां से दूसरा कुत्ता उनके साथ हो जाता है अगले चरण तक। वे कहते हैं हमारे साथ एक भैरव महाराज चल रहे हैं। श्वानों को हमारे यहां भैरव महाराज का स्वरूप भी माना गया है। कभी एक तो कभी दो दो भैरव उनके साथ हो लेते हैं। यही कठिन समय में आस्था का ईश्वर है। कभी कोई राहगीर, कभी कोई किसान, मजदूर,घोड़े वाले, अगले पड़ाव तक पथ प्रदर्शक बन जाते हैं। राह में एक श्याम श्वान उनके आगे आगे पथ प्रदर्शक बन जाता है, उसके पिछले दोनों पांवों में पोलियो है, लंगड़ा लंगड़ा के ओम जी के साथ आगे आगे चल रहा था। ओम जी कहते हैं जब लक्ष्य सामने हो तो शरीर नहीं, हौसलों से काम होता है। श्वान अपने कष्टों और विकलांगता के बावजूद आगे बढ़ रहा था। अपनी दैहिक सीमाओं के साथ अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए ओम जी का संकल्प नया हौसला पा लेता है।
हिमालय दर्शन पदयात्रा में ओम द्विवेदी देवभूमि के चारों धामों के अलावा पंच केदार और सप्त बद्री और अनेक दुर्गम स्थानों तक पदयात्राएं करते हैं। पुजारियो की कुटिया ,सामान्य बसेरों, मंदिरों और आश्रमों में उन्हें आश्रय मिला, भोजन प्रसादी और लोगों के स्नेह ने उन्हें ऊर्जा दी। सुबह-सुबह तीन चार बजे उठकर फिर आगे की यात्रा के लिए पांव पांव वे आगे बढ़ते, चढ़ते उतरते गए।
ये पदयात्राएं आध्यात्मिक और धार्मिक होते हुए भी जिस तरह से प्रकृति के सौंदर्य के दर्शन कराती है, जीवन के दर्शन कराती है, जन और वनजीवन के दर्शन कराती है वह अद्भुत है। हम जान पाते हैं कि किस तरह से सादगी और अभाव के बीच भी हम खूबसूरत और शांत जीवन जी सकते हैं। ओम द्विवेदी जी की वीडियो श्रृंखलाओं को देख कर सहज समझा जा सकता है। शुभकामनाएं।
ब्रजेश कानूनगो
No comments:
Post a Comment