अद्वितीय इंजीनियरिंग की मिसाल पनामा नहर
अक्सर मन में विचार आता रहता है कि मानव जाति के हौसलों और इरादों ने जैसे समूचे ब्रह्मांड पर विजय का संकल्प ले लिया हो। क्या कुछ नहीं पा लिया है मनुष्य ने। यहां तक कि जीवों के क्लोन और मनुष्य के कृत्रिम अंगों तक को अपने बलबूते बना लेने के प्रयोग सफल हुए हैं। नदियों को आपस में जोड़ देने और विशाल महाद्वीपों के विशाल भूभाग को खोदकर दो समुद्रों तक को मिला देने में अपनी मेहनत और हुनर से सफलता पाई है। विज्ञान और तकनीक ने इतनी प्रगति कर ली है कि चांद सितारों तक पहुंचने की बात तो अब बिल्कुल अविश्वसनीय नहीं लगती, बल्कि अब तो वहां हम कॉलोनियां बनाने के उपाय सोचने लगे हैं।
मनुष्य के अदम्य साहस और संघर्ष से जो दुनिया के लोगों ने पाया है उनमें से बहुत सी उपलब्धियां हमें चमत्कृत कर देती हैं। उनमें से एक है मानव निर्मित पनामा नहर और उसका मेकेनिज्म।
उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका के मिलन भूभाग को चीरकर नहर बना देना और दुनिया के जलमार्ग परिवहन को सुगम बना देना, सचमुच जानने समझने का विषय है।
हमारे बहुत से प्रिय घुमक्कड़ विश्व पर्यटन करते हुए पनामा देश और पनामा नहर की यात्रा कर चुके हैं। परमवीर सिंह (पैसेंजर परमवीर) और नवांकुर चौधरी (डॉक्टर यात्री) के पनामा ट्रैवल वीडियोस हमने देखे। इन वीडियो को देखते हुए इस महत्वपूर्ण नहर को महसूस करने और उसकी प्रक्रिया के प्रति जिज्ञासा जब बहुत बढ़ गई तो संबंधित जानकारी जुटाते हुए चकित होना स्वाभाविक था।
पनामा नहर दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण जलमार्गों में से एक है, जो अटलांटिक महासागर और प्रशांत महासागर को जोड़ती है। यह नहर पनामा देश में स्थित है और इसका निर्माण 20वीं शताब्दी की शुरुआत में हुआ था। यद्यपि पनामा नहर से पहले कई प्रमुख जलमार्ग नहरें बनाई गई थीं, जिनमें से प्रमुख हैं:, बीजिंग-हांग्जो ग्रैंड कैनाल जो विश्व की सबसे लंबी मानव निर्मित नहर है, जिसकी लंबाई 1,776 किमी है। इसका निर्माण 5 वीं सदी ईसा पूर्व में हुआ था और यह चीन में स्थित है। सूएज नहर मिस्र में स्थित एक महत्वपूर्ण नहर है, जो भूमध्य सागर को लाल सागर से जोड़ती है। इसका निर्माण 1869 में पूरा हुआ था। इन नहरों के निर्माण के अनुभवों से निश्चित ही पनामा नहर निर्माण को आगे बढ़ाने का साहस भी मिला होगा हमारे इंजीनियरों को।
पनामा नहर के निर्माण से पहले, पोत परिवहन में कई दिक्कतें आती थीं। अटलांटिक महासागर से प्रशांत महासागर तक जाने के लिए जहाजों को दक्षिण अमेरिका के दक्षिणी सिरे के चारों ओर जाना पड़ता था, जिसे केप हॉर्न कहा जाता है। यह रास्ता बहुत लंबा और खतरनाक था। इस लंबे रास्ते के कारण, जहाजों को अधिक समय और ईंधन की आवश्यकता होती थी, जिससे परिवहन की लागत बढ़ जाती थी। केप हॉर्न के आसपास का समुद्र बहुत अशांत और खतरनाक था, जिससे जहाजों को दुर्घटना का खतरा रहता था। पनामा नहर बन जाने से अमेरिका के पूर्वी और पश्चिमी तटों के बीच की दूरी इस नहर से होकर गुजरने पर तकरीबन 8000 मील (12,875 कि॰मी॰) घट जाती है क्योंकि इसके न होने की स्थिति में जलपोतों को दक्षिण अमेरिका के हॉर्न अंतरीप से होकर चक्कर लगाते हुए जाना पड़ता था। पनामा नहर को पार करने में जलयानों को अब 8 घंटे का समय लगता है। नहर के माध्यम से जहाजों की आवाजाही से समय और ईंधन की बचत होती है, जिससे परिवहन की लागत कम हो जाती है। जहाजों की आवाजाही अधिक सुरक्षित हुई है, क्योंकि यह रास्ता खतरनाक समुद्रों की हलचलों से भी बचाता है। इसके साथ ही जहाजों की जल्दी आवाजाही से व्यापार और वाणिज्य में वृद्धि हुई है, क्योंकि यह माध्यम दुनिया के विभिन्न हिस्सों के बीच कम समय में सीधा संपर्क प्रदान करता है।
दरअसल पनामा नहर का विचार 16वीं शताब्दी में आया था, जब स्पेनिश खोजकर्ताओं ने इस क्षेत्र का अन्वेषण किया था। हालांकि, नहर का निर्माण 1881 में फ्रांस ने शुरू भी किया किंतु परियोजना कई कारणों से असफल हो गई, जिनमें हजारों मजदूरों की मलेरिया जैसी बीमारी से मर जाना प्रमुख था, उस वक्त मच्छरों से होने वाली इस भयानक बीमारी की पहचान और इलाज खोजा नहीं जा सका था। बाद में अमेरिका ने 1904 में इस परियोजना को अपने हाथ में लिया और 1914 में नहर का निर्माण पूरा किया।
पनामा नहर का निर्माण एक जटिल और चुनौतीपूर्ण कार्य था। नहर की लंबाई लगभग 80 किमी है और इसमें तीन जोड़ी तालाब या झीलें हैं जो जहाजों को एक महासागर से दूसरे में जाने में मदद करती हैं। नहर के निर्माण में लगभग 2.7 करोड़ घन मीटर मिट्टी और पत्थर का उत्खनन किया गया था।
पनामा नहर की कार्यप्रणाली में इन्हीं तालाबों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जब एक जहाज नहर में प्रवेश करता है, तो उसे तालाबों के जल स्तर को ऊपर नीचे उठाकर एक महासागर से दूसरे में ले जाया जाता है। जहाजों को पूरी तरह नहर प्रबंधन को सौंप दिया जाता है।
समूचा प्रबंधन पनामा नहर प्राधिकरण (Panama Canal Authority) द्वारा किया जाता है, जो पनामा सरकार की एक एजेंसी है। यह प्राधिकरण नहर के संचालन, रखरखाव और सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होती है। ये ही नहर पार करवाने में संपूर्ण तकनीकी प्रक्रिया पूरी करते हैं। बड़े जहाजों को जल सतह से हम स्वयं ऊपर नीचे होते देख पाते हैं। समुद्र तल से ऊपर उठाकर फिर उसे दूसरे समुद्र के तल पर पहुंचा दिया जाता है। यह बहुत रोमांचक दृश्य होता है, जिसमें कुछ घंटों का समय लगता है।
पनामा नहर स्थल पर एक ऑडिटोरियम में पर्यटकों को इसके इतिहास, निर्माण आदि के बारे में एक फिल्म प्रदर्शन द्वारा जानकारी भी उपलब्ध कराई जाती है।
पनामा नहर का निर्माण 1881 में शुरू हुआ था और 1914 में पूरा हुआ था जिसकी
लंबाई 82 किमी, औसत चौड़ाई 90 मीटर और न्यूनतम गहराई 12 मीटर है। जो वर्तमान की स्थितियों में विस्तार की जरूरत महसूस करने लगी है। नहर के विस्तार की परियोजना चल रही है, जिसमें नए लॉक सिस्टम का निर्माण शामिल है ताकि बड़े जहाजों को समाहित किया जा सके। इसी के साथ निकारागुआ में भी एक नई नहर की योजना है, जो प्रशांत महासागर और अटलांटिक महासागर को जोड़ेगी। यह परियोजना अभी निर्माणाधीन है।
इन नहरों का निर्माण और विस्तार वैश्विक समुद्री परिवहन और व्यापार को सुविधाजनक बनाने में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इंजीनियरों की मेहनत और उनके ज्ञान विज्ञान और संघर्षों के लिए संसार उनका सदैव कृतज्ञ रहेगा।
ब्रजेश कानूनगो
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